Monday, October 14, 2024
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योगेंद्र पाण्डेय की कविता – युगों-युगों की तंद्रा

लिखते लिखते मैं ये भूल जाता हूं
कि लिखता हूं क्यों
अपना मन हल्का करने के लिए
या किसी के दर्द की
आवाज बनने के लिए।
मैं लिखता हूं क्योंकि
लिखना मेरा धर्म है
और सुनना तुम्हारी इच्छा।
लिखते लिखते कभी कभी
खो जाता हूं
किसी अनजान कल्पना लोक में
तभी तुम्हारी याद आती है
और टूट जाती है
युगों युगों की तंद्रा।

योगेंद्र पाण्डेय
सलेमपुर,देवरिया
संपर्क – 6394893753
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