बृज राज किशोर ‘राहगीर’ की ग़ज़ल – रोशनी को आइना दिखला रही है
चाँद बाँहों में लिए इठला रही है।
चाँदनी में हुस्न दोबाला हुआ है,
इन हवाओं ने ज़रा सा छू लिया क्या,
आज इसके हौसले हैं आसमां पर
चूस लेने के लिए यह रूप का मधु,
रात है, खामोशियाँ, तन्हाइयाँ हैं,
बृज राज किशोर ‘राहगीर’
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