चाँद बाँहों में लिए इठला रही है।
झील अपने आप पर इतरा रही है।
चाँदनी में हुस्न दोबाला हुआ है,
नूर की बारिश इसे नहला रही है।
इन हवाओं ने ज़रा सा छू लिया क्या,
देखिए तो किस क़दर बल खा रही है।
आज इसके हौसले हैं आसमां पर
रोशनी को आइना दिखला रही है।
चूस लेने के लिए यह रूप का मधु,
भीड़ भी भँवरा बनी मंडरा रही है।
रात है, खामोशियाँ, तन्हाइयाँ हैं,
वस्ल का माहौल है, शरमा रही है।
बृज राज किशोर ‘राहगीर’
ईशा अपार्टमेंट,रुड़की रोड,
मेरठ (उ.प्र.)-250001
ईमेल – brkishore@icloud.com

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