होम ग़ज़ल एवं गीत बृज राज किशोर ‘राहगीर’ की ग़ज़ल – रोशनी को आइना दिखला रही... ग़ज़ल एवं गीत बृज राज किशोर ‘राहगीर’ की ग़ज़ल – रोशनी को आइना दिखला रही है द्वारा Editor - November 5, 2023 74 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet चाँद बाँहों में लिए इठला रही है। झील अपने आप पर इतरा रही है। चाँदनी में हुस्न दोबाला हुआ है, नूर की बारिश इसे नहला रही है। इन हवाओं ने ज़रा सा छू लिया क्या, देखिए तो किस क़दर बल खा रही है। आज इसके हौसले हैं आसमां पर रोशनी को आइना दिखला रही है। चूस लेने के लिए यह रूप का मधु, भीड़ भी भँवरा बनी मंडरा रही है। रात है, खामोशियाँ, तन्हाइयाँ हैं, वस्ल का माहौल है, शरमा रही है। बृज राज किशोर ‘राहगीर’ ईशा अपार्टमेंट,रुड़की रोड, मेरठ (उ.प्र.)-250001 ईमेल – brkishore@icloud.com संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. दिलावर हुसैन टोंकवाला की ग़ज़लें अनिला सिंह चरक की ग़ज़लें विज्ञान व्रत की पाँच ग़ज़लें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.