Saturday, October 5, 2024
होमग़ज़ल एवं गीतबृज राज किशोर ‘राहगीर’ की ग़ज़ल - रोशनी को आइना दिखला रही...

बृज राज किशोर ‘राहगीर’ की ग़ज़ल – रोशनी को आइना दिखला रही है

चाँद बाँहों में लिए इठला रही है।
झील अपने आप पर इतरा रही है।
चाँदनी में हुस्न दोबाला हुआ है,
नूर की बारिश इसे नहला रही है।
इन हवाओं ने ज़रा सा छू लिया क्या,
देखिए तो किस क़दर बल खा रही है।
आज इसके हौसले हैं आसमां पर
रोशनी को आइना दिखला रही है।
चूस लेने के लिए यह रूप का मधु,
भीड़ भी भँवरा बनी मंडरा रही है।
रात है, खामोशियाँ, तन्हाइयाँ हैं,
वस्ल का माहौल है, शरमा रही है।
बृज राज किशोर ‘राहगीर’
ईशा अपार्टमेंट,रुड़की रोड,
मेरठ (उ.प्र.)-250001
ईमेल – [email protected]
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest