पहचान सका ना काटों को,
शमसीर उठाया फूलों पर।
भौरों की चाहत ठुकराकर,
है प्रश्न किया शुभ चिंतक पर।।
प्यार किया जिस माली को,
तकरार हुआ उस माली से।
अपने मतलब से तोड़ किया,
मौला समझा जिस माली को।।
फितरत जिनका बस चुभना है,
उन कांटों से तुम्हे बचना है।
चुभ जाएं अगर बह जाए लहू,
आगे फिर भी तुम्हे बढ़ना है।।
जीवन का खेल अज़ीब मगर,
खेलो इस खेल को हारे बगैर।
खोजो ख़ुद का आहार मगर,
औरों के हक को छीने बगैर।।

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