Saturday, July 27, 2024
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डॉ. तारा सिंह ‘अंशुल’ की कविता : मास आषाढ़ में पड़े फुहार

चले लेकर अमृतघट मेघ बरसाए अमृत धार !
वसुंधरा संग आलिंगन  को गगन करे मनुहार !!
झमाझम  बूंदे बारिश की रचें ये नया मधुमास ,
प्यासा नभ प्यासी है धरती आज बुझेगी प्यास !
सबा सुगंधित चली मेघ संग  गाती है मल्हार !
वसुंधरा संग  आलिंगन को गगन करे मनुहार !!
बरसी खुशियां झूम रहा मन,पर भीतर खामोशी,
यादों से गुलजार मेरा दिल कब आएंगे परदेसी !
बरसे धरा पर मधु सुधारस करे चपला चमकार !
सावन जैसा हुआ आषाढ  रिमझिम पड़े फुहार !!
झिमिर झिमिर रुखसार गिरकर  खिली घन बूँद ,
ये केलि करें अलकों से हर्षित होकर पलकें मूँद !
हैं पीने को आकुल अधरामृत दिल करे पुकार !
वसुंधरा संग   आलिंगन को गगन करे मनुहार!!
तपन मिटाएं दग्ध ह्रदय के रचते बादल आरेख ,
चातक दादुर मोर पपीहा पढ़ रहे सृष्टि के लेख !
चमक रही आज दामिनी करके सोलह श्रृंगार !
वसुंधरा संग  आलिंगन को गगन करें मनुहार !!
सागर देखें सरिताओं का यौवन पूर्ण उछाल पर ,
मन कलियां हैं उल्लसित भ्रमरों के  संजाल पर !!
है भीगीे तमन्ना कंत खड़े आंखों में भरकर प्यार !
यूं वसुंधरा संग   आलिंगन को गगन करे मनुहार !
मृगनयनी नवयौवना से जो  आँखें मिली हुईं चार !
हर्षित झूमे धरा अंबर मास आषाढ़ में पड़े फुहार !!
डॉ. तारा सिंह अंशुल
डॉ. तारा सिंह अंशुल
विभिन्न राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मानों से नवाजी़ गयी वरिष्ठ कवयित्री , लेखिका , कथाकार , समीक्षक , आर्टिकल लेखिका। आकाशवाणी व दूरदर्शन गोरखपुर , लखनऊ एवं दिल्ली में काव्य पाठ , परिचर्चा में सहभागिता। सामाजिक मुद्दे व महिला एवं बाल विकास के मुद्दों पर वार्ता, कविताएं व कहानियां एवं आलेख, देश विदेश के विभिन्न पत्रिकाओं एवं अखबारों में निरन्तर प्रकाशित। संपर्क - [email protected]
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