बेशक
बारी-बारी से
सब-कुछ
फिसलता चला गया
रेत-सा
जिन्दगी का हाल
हो गया
बंजर खेत- सा
हथेलियाँ
गहरे अवसाद में हैं
अभी
कुछ देर पहले
दिल जो गा रहा था,
खुशी के
उन गीतों की
थिरकन की याद में हैं
पोरों ने कितनी अच्छी तरह
लगाकर रखी थी तह
बदला वक्त
इन दिनों बेवजह
मगर
फिर से
आएगा मधुमास
बन जाऊँगी जूही की कली
उगेंगे मेरे पैरों में
नए पंख
फुदकती चिड़िया हूँ मैं
क्षितिज पर जाकर
अगली बार
मुट्ठी में भरूँगी आकाश
प्रलय में भी
मेरे मन का डिगा नहीं विश्वास।

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