Monday, May 20, 2024
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अमित ‘अनहद’ की कविताएँ

1 – कुछ और हो
बिछड़ने के बाद मिलो एकबार फिर,
शायद मिलने पर बात कुछ और हो।
इंतजार कर रहा है चांद भी कि,
सितारों भरी रात कुछ और हो।
तपती धरती की जो प्यास बुझा दे,
वो भीगती बरसात कुछ और हो।
तुम्हें देखें बिना ये दिल बेजा़र है,
इक नजर से हालात कुछ और हो।
इंतजार तो जैसे तक़दीर हो मेरी या,
फिर ये जज़्बात ही कुछ और हो।
मिलो तो न हो बिछड़ने का जिक्र,
इसबार ये मुलाकात कुछ और हो।
कभी तुम जीतो कभी मैं हार जाऊं,
इसबार इश्क़ की बिसात कुछ और हो।
मुक़ाबिल है ज़माना फिर से देखो ‘अनहद’,
लेकिन अबकी बार औकात कुछ और हो।
2 – अफसाना
अफसाना ढूंढ रहे थे मोहब्बत का,
देखा जबसे तुमको गुमशुदा से हैं।
मौजूद हैं महफ़िल में सामने मगर,
पता नहीं क्यों सबसे अलहदा से हैं।
जलवा-ए-यार जो दिखा भर नजर में,
उस इक झलक पे यकायक फिदा से हैं।
इंतजार नजारों का नहीं है अब लेकिन,
अरमान दिल के अभी भी पोशीदा से हैं।
सवाल था इज़हार-ए-इश़्क का सहल सा,
जवाब मगर उनके सरासर पेचीदा से हैं।
उनके जानिब असर है ये अहल-ए-दिल पे,
टुकड़े जोड़े सारे फिर भी जरा रंजीदा से हैं।
हाल-ए-आशिक जो बताया इस ज़माने ने,
बयानात ‘अनहद’ कितने उनके संजीदा से हैं।
3 – देखो तो
घनेरी जुल्फों के ख़म में जाने कितने उलझे,
दिल पे जो ढाया है इन्होंनें वो कहर तो देखो।
झुमकों को उंगली से घुमाया कुछ इस तरह,
कुर्बान हो गया इनपर सारा दहर तो देखो।
घायल ही कर डाला झुकती पलकों ने,
निगाह-ए-यार का जरा असर तो देखो।
पाजेब खनक रही है उनके जाने के बाद भी,
सुनकर थम गया है कहीं वो गजर तो देखो।
बेहिजाबन आये हैं जबसे वो आंखों के सामने,
खारिज हो चुकी तबसे बहर-ए-नजर तो देखो,
शरमा के जो सुर्खियों में कुछ लिपटे इस कदर,
खूबसूरत हो गया है कितना शजर तो देखो।
कब तक संभालता जलवा-ए-माशूक को,
बेवजूद हो चुका है जो वो बशर तो देखो।
इक अदा से लूट ली पूरी महफ़िल दिल की,
रह गई हो बाकी फिर भी कोई कसर तो देखो।
हर इक लम्हा गुजरा बमुश्किल दीदार के लिये,
आंखों ने जागकर जो काटा है पहर तो देखो।
आशनाई के चराग रोशन हो गये अंधेरे में फिर ,
सितारों ने ज़मीं पर जो उतारा क़मर तो देखो।
बर्बाद करने को हमें शामिल हो गये साथ हमारे,
कितनी बढ़िया बीत रही है ये रहगुजर तो देखो।
कितना कुछ बाकी है इश्क में कहने को अभी,
इंतजार है ‘अनहद’ बस एक बार इधर तो देखो।
अमित ‘अनहद’
लेखक का जन्म 15 जुलाई 1983 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ। लेखक ‘अनहद’ के नाम से कवितायें और गज़ल लिखते हैं । लेखन के साथ मंचीय कविता पाठ में भी रुचि रखते हैं। लेखक ने प्राथमिक शिक्षा के उपरान्त लखनऊ विश्वविद्यालय से सांख्यिकी विषय में परास्नातक किया है। लेखक वर्तमान में भारतीय रिज़र्व बैंक में सहायक महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। कविता में व्यक्त किए गये विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं एवं भारतीय रिज़र्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
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