ये कविता अपने आप में सब कुछ कह देती है, किन्तु मनुष्य की दुश्वारी यही है के वो ये सब न करे तो क्या करे! प्रकृति ने मनुष्य को ये अभिशाप दिया है के उसे समय की पहचान है और आने वाले समय की कल्पना करने का विवेक!
तो बस जो कर रहें हैं करते रहें- जोड़ रहे हैं तो जोड़ते रहें बचा रहे हैं तो बचाते रहें!
ये कविता अपने आप में सब कुछ कह देती है, किन्तु मनुष्य की दुश्वारी यही है के वो ये सब न करे तो क्या करे! प्रकृति ने मनुष्य को ये अभिशाप दिया है के उसे समय की पहचान है और आने वाले समय की कल्पना करने का विवेक!
तो बस जो कर रहें हैं करते रहें- जोड़ रहे हैं तो जोड़ते रहें बचा रहे हैं तो बचाते रहें!