4 – ज़िन्दगी
ज़िन्दगी का कहाँ कोई ठिकाना है,
यहाँ तो बस आना और जाना है।
सफ़र नहीं आसां इस ज़िन्दगी का,
कभी रूठ जाना तो कभी मनाना है।
क़दर करते हुए हर किसी की यहाँ,
सर झुका के रिश्तों को निभाना है।
प्यार का जहां बसा ले ऐ मुसाफ़िर,
बसा बसाया घर यहीं छोड़ जाना है।
अना को छोड़ यहीं ओ अदने इंसा,
साथ कुछ भी न यहाँ से ले जाना है।
अति सुंदर