1 – ज़िन्दगी
इस जहां से जो मिला स्वीकार कर,
मुस्कुरा, गले लगाके प्यार कर।
मिलता वही नसीब में हो जो लिखा,
फ़ैसलों पर उसके एतबार कर।
लकीरों में जो हाथ की नहीं तेरे,
न एषणा,न उसका इंतज़ार कर।
उलझनों को छोड़,आगे तु निकल,
यों न ज़िन्दगी को निस्सार कर।
हैं इल्म की इम्तिहां ख़ामोशियाँ,
ज़िक्र उनका न ज़ार ज़ार कर।
दरिया ए मुहब्बत कभी सूखता नहीं,
खुद को न यों जहां से बेज़ार कर।
2 – ज़िन्दगी
बेवज़ह हरदम ही मुस्कुराना पड़ा,
खुश हैं,हर हाल में दिखाना पड़ा।
पथ में मिलते रहे अंधेरे घने,
दीप उम्मीदों का हमेशा जलाना पड़ा।
टूट जाये न डोर रिश्तों की कहीं,
बेमन ही सर को झुकाना पड़ा।
उम्र ढलती रही अपनी रफ़्तार से,
क़र्ज़ जीने का ताउम्र चुकाना पड़ा।
सफ़र के तूफ़ानों से लड़-लड़कर ही,
कदमों से क़दम को मिलाना पड़ा।
न है कोई शिकवा न अब कोई गम,
ज़िन्दगी से जो इस तरह निभाना पड़ा।
फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का न समझे यहाँ,
इसलिए खुद को यों समझाना पड़ा।
3 – ज़िन्दगी
ज़िन्दगी तुझसे कोई शिकायत नहीं है,
जहां में एक सी सबकी क़िस्मत नहीं है।
समझ सकता न कोई यहाँ किसी को,
किसी के पास इतनी फ़ुरसत नहीं है।
न हो इंसानियत अगर दिलों में हमारे,
ज़िन्दगी की ऐसी,कोई क़ीमत नहीं है।
दौलत,शोहरत जोड़,होगा क्या हासिल,
गर नज़रों की तेरी पाक नीयत नहीं है।
गुजरता है बेचैन सफ़र उस शख़्स का,
सर पर जिसके खुदा की रहमत नहीं है।
4 – ज़िन्दगी
ज़िन्दगी का कहाँ कोई ठिकाना है,
यहाँ तो बस आना और जाना है।
सफ़र नहीं आसां इस ज़िन्दगी का,
कभी रूठ जाना तो कभी मनाना है।
क़दर करते हुए हर किसी की यहाँ,
सर झुका के रिश्तों को निभाना है।
प्यार का जहां बसा ले ऐ मुसाफ़िर,
बसा बसाया घर यहीं छोड़ जाना है।
अना को छोड़ यहीं ओ अदने इंसा,
साथ कुछ भी न यहाँ से ले जाना है।

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