समीक्षक – रमेश कुमार रिपु
निर्देश निधि की कहानी संग्रह ‘सरोगेट मदर’ की कहानियांँ खुद बखुद बता देती हैं, कि लेखिका के पास विविधता के साथ जीवन के कई सवालों को छूने,आधी दुनिया की समस्यायें,उनके साथ हुए अन्याय और विषमता की बातें करने की छटपटाहट है। निर्देश निधि अपनी कहानियों में समाज के सवालों पर केवल ऊंगली ही नहीं रखती बल्कि, उसकी तह तक जाती हैं। ‘सरोगेट मदर’ संग्रह में गहरे जीवन बोध की बड़ी कहानियाँ हैं। कहानी में रवानी और सादापन के साथ जीवंतता और सहजता भी है। कुछ कहानियों में घटनाएंँ घटित होती हैं। ‘सरोगेट मदर’ जीकाजि,कानो में उसकी आवाज का बीज, नहीं देखा उसी में उसका होना’’ जैसी शीर्षक की कहानी में आधी दुनिया की ज़िन्दगी और उनके मन की अनुगूंज है।
संग्रह में ग्यारह कहानियाँ हैं। सभी में नारी का पक्ष,उसका संघर्ष और उसके सुख-दुख की सौंधी गंध है। ‘खो गया है मन मराला‘ औरत की जिन्दगी के उस पल की कथा है,जब पत्नी को पति समय नहीं दे पाता है,उसके हिस्से का प्यार उसे नहीं मिलता,तब वह भीगने के लिए कोई और सावन ढूंढती है। लेखा की तन्हाई के होठों को छूता है सीआरपीएफ का जवान अविराज। लेखा को समझाता है,जब पुरुष अपने मद में खुद को स्त्री से स्मार्ट मानता है,तो बड़ी उम्र की स्त्री प्रेम क्यों नहीं कर सकती? उसके तर्को से लेखी निःशब्द हो जाती है। चूंकि आगे कहानी नहीं बढ़ने से पता नहीं चलता, अविराज की ओर लेखा पूरी तरह झुकती है या नहीं अथवा उसे किस मोड़ पर छोड़ देती है।
‘नहीं देखा उसी में उसका होना’’ में अपने से कम उम्र की दिशा को ट्यूशन देने वाले मलय का मन कई बार उसकी ओर झुका। मगर उसके पिता के एहसान के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहा। दिशा के इंजीनियरिंग के बाद भी कभी जानने की कोशिश नहीं किया, कि उसके मन में क्या चल रहा है। संयोग्य से घर में ए.सी के शार्ट सर्किट से आग लग जाती। धुएं  में दम घुटने से दिशा की मौत हो जाती है। जानने पर मलय पछताता है,यदि वो वक़्त पर दिशा के घर पहुंँच जाता, तो आज वो उसकी होती।
मन की भावनाओं की अभिव्यक्ति है,‘‘कानों में उसकी आवाज़ का बीज़’’। यह ऐसे प्यार की कथा है,जिसमें लड़के को दूसरी लड़की की आवाज,अपनी प्रेमिका सी लगती है। उसे खत लिख कर बताता है,वह कहती थी,साथ रहने का रास्ता मैं खोज लूंगी,बस उस रास्ते पर मेरे साथ दौड़ भर लेना।
‘आदि पुरुष के पांँव’ समाज की खोखली मानसिकता का नकाब हटाती है। दलित पिता अपनी बेटी की शादी सवर्ण जाति के लड़के से करता है। अपना सामाजिक कद ऊंचा करने के लिए। जब बेटी मायके आती है,तब पिता को एहसास होता है,शादी अपनी बिरादरी में ही करना ठीक रहता है।
‘मै ही आई हूँ बाबा’’ कहानी बेटी के बारे में दकियानुसी सोच रखने वालों की आॅखें खोलती है। मुसीबत में अपने बाबा और गांँव के प्रधान को मोटरसाइकिल में बिठाकर गांँव जब बेटी ले आती है,तब उन्हें एहसास होता है हमारी बेटी किसी बेटे से कम नहीं हैं। बस नजरिया बदलने की जरूरत है।
हमारे आस पास की आधी दुनिया की अनोखी कहानी है ‘तुम सुन रही हो इला’। इला खुद डायवोर्सी है,मगर दीदी के लिए लडका चाहिए,कहकर वर ढूढ रही थी। उस सच से उसके अजीज मित्र का सामना होता है,तो उसे बेहद अफसोस होता है। हम जिसे चाहते हैं,यदि वही हाथ छुड़ा ले यह कह कर कि लोग क्या कहेंगे,एक तलाकशुदा से शादी करने की सोची!
‘‘सरोेगेट मदर‘‘ में माता-पिता के इगो और झगड़े का खामियाजा बेटी रवीशा किस तरह भोगती है,उसकी कथा है। दूसरी शादी कर लेने वाली माँ का सामना बरसों बाद जिला अधिकारी बनकर आई अपनी ही बेटी से होती है,तो उसकी ममता जाग जाती है। बेटी को बताती है,कि मैं उसकी माँ हूँ। बेटी के मन में माँ के प्रति प्यार नहीं उमड़ता है। बल्कि वह बताती है माँ के मायने।
 सच्ची भावुकता के अक्स में भीगी कहानी है जीकाजि। माँ के मना करने के बावजूद रीवा अपाहिज जीकाजि से अपने प्रेम को दूसरा नाम देने अड़ जाती है। कहानी में व्यक्तित्व,दोस्ती,और हालात के जरिये कई सवाल उठाये गये हैं। जैसे,शादी के बाद यदि जीकाजि के साथ जो हुआ, मेरे साथ हो जाता या जीकाजि को होता तो.?
‘‘इसे डाॅलर कभी नहीं पुकारना‘ में डीआईजी के कुत्ते को ढूंढने में लगे पुलिस वालों की फितरत और आदत को उकेरा गया है।  ‘प्रश्न तो वहीं खड़ा है‘ में जंग से उपजे हालात पर नई सोच की कहानी है। जंग सिर्फ जवान ही नहीं लड़ते,घर की सभी स्त्रियांँ लड़ती हैं कई मोर्चे पर। पति,बेटा,प्रेमी के शहीद होने पर आसान नहीं होता शारीरिक, मानिसक रूप से खड़े होना। स्त्री के मन के एहसास से गुजरना है, तो इन कहानियों को एक बार जरूर पढ़ें।
पुस्तक – सरोगेट मदर
लेखिका-निर्देश निधि
प्रकाशक-अनन्य प्रकाशन
कीमत-350 रुपये

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