Saturday, July 27, 2024
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गीतांजली सिंह की दो कविताएँ

1 – बातों बातों में 
बातो बातो में कभी
नम आँखों, मुस्कुराते होंठों से
कुछ बात यूँ ही निकलती है  
नातो के फटे चिथड़ो में  
वक़्त की लगायी तुरपायी
फिर एक एक कर उधड़ती है.  
चाहकर भी छुप नहीं पाती
अब वो खटास मन की,
जिसने बरसो से बिगाड़ रखा है
स्वाद सांझ सवेरे के मीठेपन का
वो अल्हड़पन की सोंधी खुशबू
दब गयी है कहीं सोचों की सीलन में 
महकती थी जिसे कभी लपेट के
अपने तन मन पर
ना बचा पायी होने से तार तार
वो गमकता साथ तुम्हारा
अब बातों बातों में उसे रोज़
किसी ना किसी से कहती सुनती हूँ . 
2 – एक अठन्नी नन्ही सी 
बरसों बाद देस से आये
लड्डू के डिब्बे से
सहमा सकुचाया
झाँक रहा था
एक नन्हा सा परचा
खत की शकल में.
डबडबायी आँखें
कांपते हाथों से
कुछ यूँ लिखा था,
तकते तकते राह
तुम्हारे गुड्डे की
मेरी गुड्डी की
उम्र होने लगी है,
अंदेशे से सूख गयी है
सारे गावं से रूठ गयी है
कमाने लगे हो डॉलर में
पर क्या करके खर्च
एक अठन्नी
लिखवा नहीं सकते
एक खत गुड्डे से
मेरी गुड़िया की खातिर ?
बस ! उस दिन
चुभ गयी मन में
वो एक अठन्नी नन्ही सी
जो दिन दूनी रात चैगुनी
बढ़ते बढ़ते कर गयी छोटा
डॉलर को वो
एक अठन्नी नन्ही सी
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