1 – विदाई की बेला में
मेहंदी सजे हाथों से
थलवट पूज
नम आंखों से
भारी कदमों के साथ
विदा हो जाती हैं बेटियां।
बेटियां
छोड़ जाती हैं
आवरण पर नाम लिखी
अपनी कुछ किताबें,
दीवारों पर टंगी हुईं
पेंटिंग के
कोने पर अपने नाम के साथ,
बीते हुए अपने दिन
अपनी हर सुबह
हर शाम
छोड़ जाती हैं एल्बम्स में!
कुछ मुस्कराती तस्वीरें
आंगन के किसी कोने में
बचपन की कुछ निशानियां,
छोड़ जाती हैं
बेटियां
घर आंगन में
अनकही विरानियां
मन की
अव्यक्त अभिव्यक्तियों के
समाज-शास्त्र
बेटियां
सवाल नही करती
ज़वाब नहीं देती
बस!
थलियां पूज मेहंदी लगे हाथों से
स्त्री के मौन-पुराण में
स्वयं को बहाते हुए!
विदाई की बेला में
मौन रुदन से
जाने कितना-कुछ
कह जाती हैं
बेटियाँ ।
2 – उसका स्व-विलोपन
वह करती है
तुम पर आंख बंद कर विश्वास
जैसे कर रही हो प्रार्थना
और आराधना के
उस प्रत्येक पल में
पढ़ती-समझती रहती है
तुम्हारे चेहरे की रेखाओं को
अपनी चिंताओं के साथ
जो होती है सिर्फ तुम्हारे लिए।
वह नहीं जीती स्वयं के लिए
सजती-संवरती है सिर्फ तुम्हारे लिए,
सांस लेती है
या  गाती है कोई गीत,
उन सब में
सदा गूंथी होती है
जन्मों-जन्मांतर की  प्रीत।
वह करती है हमेशा परवाह
जीवन के हर एक साझा सपने की
और करती है
सदैव विनम्र प्रतीक्षा
उसके साकार होने की
अपने सुख में,
अपने दुख में।
सुख-दुःख के चक्र को
बखूबी समझती है वह
लेकिन उलझ जाती है
तुम्हारी हर तकलीफ में
अपने सुख की परवाह किए बिना!
वे ही तो होते हैं
उसकी प्रार्थना के पल
जिनमें जीना चाहती है
वो तुम्हारी हर खुशी के संग,
कर लेती है स्वयं को विलोपित
तुझमें,
तब हर बार लगता है उसे
जीवन है एक प्रार्थना
और प्रार्थना में हैं
जीवन के सभी रंग।

1 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.