पुस्तक : मंच पर उतरी कहानियाँ
रूपांतरकार / अनुवादक : कुमार संजय 
प्रकाशक :  विस्तता पब्लिशिंग, नई दिल्ली 
मूल्य : 295/-
जीवन एक नाटक ही तो है। उसे कहानियों में रचता है कथाकार। और उन कथाओं में से कुछेक को नाटक में ढाल दिया है कलमकार कुमार संजय ने।
नाटक लिखना इतना भी आसान नहीं। सब कुछ चंद दृश्यों, संवादों और चंद क्रियाकलापों से प्रकट कर देना होता है। कहानियों, वह भी विश्व प्रसिद्ध लेखकों की कहानियों को नाटक में ढालना और भी कठिन। कहानी को कहानी के कलेवर से निकाल दृश्य, एक्शन और संवाद की दुनिया में प्रत्यक्ष परोस देना दुरूह कार्य। और यह कार्य 15 नाट्य पुस्तकों के रचयिता कुमार संजय ने किया है।
नाटकों को भारत में मंचन योग्य बनाने के लिए कई तरह की छूट भी नाटककार को लेनी पड़ी है। कहानी को नाटक, फिल्म में परिवर्तित करने में ये छूट लेनी पड़ती ही है। यथा – कहानी से परे कुछ दृश्यों की रचना, आधुनिक संवादों के सहारे दर्शकों को नाटक से जोड़ने का प्रयास, भारतीय परिवेश, पात्रों का भारतीय नामकरण, स्थानीय भाषा-बोली का प्रयोग… आदि…. इत्यादि!
ग्यारह नाटकों से सज्जित पुस्तक में केवल एक भारतीय नाम है, जो वैश्विक है। वह नाम – प्रेमचंद का है। बाकी दस नामों में समाहित हैं – चेखव, लारेंस, टाॅलस्टाॅय, जेकाॅब्स, काॅनन डायल, ओ हेनरी, मोपासाँ, लीकाॅक, ली शून।
 संवाद और एक्शन की जुगलबंदी से इनकी कहानियों को नाटकीय रूप दिया गया है।
चेखव की कहानी को परिवेश, संवाद, एक्शन के सहारे शानदार रूप प्रदान करता है नाटक ‘ गिरगिट ‘….लगभग सवा सौ साल पूर्व लिखित कहानी के पात्रों का नाम, संवाद बिहारी पुट लिये हुए रोचक। पात्रों के नाम पर गौर करें- बबन, बलेसर, सुबोध बाबू, वसंत आदि। दृश्यांकन में भी छूट ली गई है। ‘ गिरगिट ‘ में आमूलचूल परिवर्तन का दर्शन होता है। पात्र, परिवेश, भाषा सब बिहारी रंग में रंगे। बिहार की बोली की मिठास एक नये रस की सृष्टि कर इस गंभीर नाटक में हास्य का तड़का लगाता है। भाषा की रवानी देखें – अवारा जंगली जानवरन को अइसहीं छोड़ दिया जाए…. अउर तुम ससुर के नाती….! भारतीयता के तड़के ने नाटक में नई जान डाल दी है।
ओ हेनरी की दो कहानियों का रूपांतरण किया है लेखक ने। एक है – कैक्टस … एक छोटा सा नाटक, प्रेम औ वियोग से रचित। नायक ट्राइसडेल मारिया को पारंपरिक ढंग से प्रपोज करता है, घुटनों के बल बैठ। मारिया भी किसी और दिन कलात्मक ढंग से उत्तर देने की बात कह उस दिन प्रत्युत्तर नहीं देती। केवल पूछ लेती है कि वह स्पैनिश भाषा तो जानता है। नायक इंकार नहीं करता। कैक्टस के साथ स्पैनिश में लिखे टैग को पाकर भी ट्राइसडेल पढ़ नहीं पाता उसका मज़मून और इस शुष्क गिफ्ट से मारिया के इंकार की प्रतिध्वनि महसूसता है, वह तटस्थ हो गया अब। कैक्टस यहाँ वियोग का कारण बन गया।
मारिया का भाई मार्टिन द. अमेरिका से आकर उसे मारिया के ‘ विवाह ‘ में ले जाता है। आख़िरी दृश्य में मार्टिन की नज़र कैक्टस पर पड़ती है, वह उस उम्दा किस्म के कैक्टस के बारे में बताता है। साथ ही टैग का मज़मून भी। टैग में उस अनोखे कैक्टस का नाम स्पैनिश में लिखा था – वेंटोमारमे!
अर्थ है – कम एंड टेक मी
बहुत खूबसूरती के साथ संवादों, दृश्य, एक्शन के माध्यम से
नाटक में सारी कहानी उतर आई है।
ओ हेनरी की दूसरी कहानी का नाट्य रूपांतर ‘ वाह री किस्मत ‘…..नायक सोपी ठंडी रातों में बर्फीली हवा, स्नो फाॅल में फुटपाथ पर सोने से बचने के लिए तीन-चार महीने के लिए जेल जाकर सर पर छत की आश्वस्ति पाना चाहता है। कुछेक छोटे अपराध कर पुलिस की निगाह में चढ़ने की पुरजोर कोशिश भी करता है। वह खुद हर अपराध के बाद कहता है कि उसने यह गलत कार्य किया है। लेकिन उसे अपराधी नहीं, पागल समझ लिया जाता है…. बार-बार… हर बार। अंत में एक चर्च के बाहर खड़े होकर वह अंदर से आती संगीत लहरी, उपदेश सुन ठानता है कि अब वह कायराना हरकत नहीं करेगा, संघर्ष करेगा। बस, उसी समय  चर्च में चोरी की योजना बनाने के इल्जाम में उसे गिरफ्तार कर लेती है पुलिस। सोपी के मुँह से निकलता है – वाह री किस्मत!
हास्य में करूणा का पुट। संवादों, क्रियाकलापों से पात्र पाठक के मर्म को छूता है। मंचित होकर दर्शक के दिल को भी छू लेगा। लेकिन मुझे लगता है, इस संवाद की आवश्यकता नहीं। अंतिम दृश्य ही शीर्षक को सार्थक रूप देने में सक्षम।
चीनी लेखक ले शून का मोनोलाॅग है – एक पागल की डायरी। मनुष्य के आदमखोर बन जाने, बनते जाने, बने रहने की त्रासद स्थितियों से त्रस्त नायक डेमिंग एकालाप का शिकार हो गया है। वह समाज से पूछता है – कोई इंसान ऐसा है जो नरभक्षी नहीं है?
अंत में उसकी गुजारिश कि मासूम बच्चों को आदमखोर बनने से बचाया जाए। बहुत खूबसूरती से अपनी बात कहता है यह नाट्य रूपांतर। एकालाप के लिए जैसी भाषा, दृश्य की आवश्यकता है, उसे समाहित किया गया है इसमें। कठिन विधा को विविधवर्णी दृश्यों के सहारे बड़ी सहजता से निभा ले जाते हैं नाटककार संजय।
प्रेमचंद के हास्य की सृष्टि करता नाटक – लाॅटरी लाॅटरी के टिकट को आधार बनाकर मुफ्त में अमीर बनने की भारतीय मानस  की स्वाभाविक इच्छा को दिखलाता है। पूरा परिवार लालच का शिकार हो लाॅटरी जीतने के लिए विविध तरह के टोने-टोटके में उलझ जाता है।
लेकिन अंत में जीत चैनलवालों के नाम….केवल और केवल चैनलवालों के नाम । यहाँ छूट लेते हुए नाटक आज के समय को प्रस्तुत करता है। हास्य और हास्यास्पद स्थिति! लंबा नाटक लेकिन उबाऊ नहीं।
नाटक – नेकलेस ( लेखक – मोपासाँ)
करुण रस से पगी रचना है। नेकलेस के इर्द-गिर्द घूमती कथा का बढ़िया नाट्य रूप। नेकलेस के खो जाने पर फाॅरिसटिअर, लाॅयसल, मटील्डा के बहुत सार्थक वार्तालाप के साथ नाटक का समापन। निःसंदेह महत्वपूर्ण नाटक दर्शकों का दिल जीतने की क्षमता रखता है।
इसी तरह सभी नाटकों के लिए कहानियों का सार्थक चयन उसके प्रस्तुतिकरण के प्रति भी आश्वस्त करता है।
नाटककार का दावा है, कहानियों की आत्मा को उन्होंने सभी नाटकों में बचा लिया है, यह प्रयोग इन विश्व प्रसिद्ध कहानियों की आत्मा से भारतीय दर्शकों को पुरजोर तरीके से जोड़ेगा। और हमें उनके दावे, विश्वास पर विश्वास कर, पाठक से दर्शक में परिवर्तित हो नाटकों का आन्नद लेना होगा।
अनिता रश्मि 
संपर्क – 1सी, डी ब्लाॅक, सत्यभामा ग्रैंड, पूर्णिमा काॅम्पलेक्स के पास, कुसई, डोरंडा,
राँची, झारखण्ड – 834002
ईमेल – rashmianita25@gmail.com

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