Saturday, July 27, 2024
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हरदीप सबरवाल की पांच कविताएँ

1 – आदमी और बाजार
सारे के सारे रास्ते
दोस्ती के
प्यार के
रिश्तों के भिन्न भिन्न रंगीन नामों के
और यहां तक कि अध्यात्म के भी
बाजार से होकर निकलते हैं
असल में
आदमी और बाजार
समानार्थक शब्द है…..
2 – भ्रम
खिड़की पर लगे बड़े से कांच पर
पतंगे की तरह बार बार टकरा कर
खोजता रहता है जैसे मोक्ष का मार्ग,
कार के रियर व्यू मिरर में दिखती अपनी छवि
पर बार बार चोंच मार ख़तम करने को आमादा,
पता नहीं ये इंसान धर्म को जीता है
या फिर भ्रम को…
3 – नए शब्दकोश में
शब्दकोश में इन दिनों
नहीं मिलते भाईचारे, परस्पर विश्वास
और धर्म निरपेक्षता के शब्द,
खो गए हैं
विमर्श, सूचनाएं और विचार
मोटे काले अक्षरों में
अटे पड़े हैं
कट्टरता, घृणा और उपहास,
आ गए हैं
निर्देश, भ्रम और स्तुतियां,
नए शब्दकोश में
प्रश्न करना
दंडनीय अपराध है
4 – न्याय संगत
तफ्तीश से साफ साफ पता चला
कि वर्तमान की हत्या के लिए
पूरी तरह जिम्मेदार है अतीत,
इस तरह न्याय संगत होने के लिए
वर्तमान को हक मिला
भविष्य  को सूली पर टांगने का,
वर्तमान कितना न्याय प्रिय है……
5 – सत्यमेव जयते
दंतकथाओं में जीतता है
हर बार ही सत्य,
किस्से कहानियों में गूंजता है
सत्यमेव जयते,
महाकाव्यों में स्तुति होती हैं
सत्य की जीत की,
रुपहले पर्दे पर छाया रहता है
सत्य को जीत देता नायक,
कितना सुकून भरा होता है
सत्य को विजय रथ पर देखना,
फिर भी,
बस जीवन ही है
जिसमें, हर दिन, हर जगह
झूठ के पैरों तले रौंदा जाता है
जगह जगह कुचला जाता है,
सत्य भी, सत्यमेव जयते भी……
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