13 नवम्बर, 2022 को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय पर निजी संदेशों के माध्यम से प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाएं

उषा साहू
इस रविवार के संपादकीय में आपने खबरों की खबर ली है। अति उत्तम।
एक हद तक, ये सारा का सारा मसला, मीडिया का बनाया हुआ है, जिसमें उन्होने सच्चाई जाने वगैर ‘कुछ भी’ रिपोर्ट दे दी और प्रशासन ने भी, आँख बंद करके उस पर अपनी सहमति जता दी।

जैसा कि कहते हैं, चोर चोरी से जाय सीनाजोरी से न जाय । एक ‘विशेष कौम’ के लोग इसी श्रेणी में आते हैं । भारत में तो करते ही हैं, अपनी हिसात्मक मानसिकता ब्रिटिश में (परदेश में) भी दिखा दी । ये एक ऐसी जाति है कि जब तक रोटी नहीं मिलती, उनकी मुंडी नीचे रहती है । जैसे ही पेट में रोटी पड़ी, उनके बेईमान खून में उबाल आने लगता है।

आपका ये कहना बिलकुल सही है कि भारतीय जहां भी जाते हैं, शांतिपूर्वक, मेहनत से और ईमानदारी से अपने काम में लगे रहते हैं। कितने भी धनवान हो जाएँ, कभी भी घमंड नहीं करते, बल्कि और भी विनम्र हो जाते हैं । जैसे कि पेड़ो की डालियाँ, फल से भर जाने के बाद और झुक जाती हैं । टाटा, बिरला, डालमियां, लक्ष्मी मित्तल आदि इसके उदाहरण हैं । इस विषय में, ‘विशेष कौम’ के लोगों का नाम कभी सुनने में नहीं आया । वे तो जहां भी जाते हैं, खून-खराबा ही करते हैं ।
विदेशियों की नजरों में तो दोनों ही, सिर्फ एशियन हैं। ऐसे में ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति का फायदा उठाया जा सकता है ।
माना कि हम शांतिप्रिय हैं, पर इतने भी नहीं कि हमारा अपमान हो, कोई हमारे कार्यों में अनैतिक दखलंदाज़ी करे और हम चुपचाप बैठे रहें।
ख़ैर ! हम भारतीय, अपनी योग्यताओं से अपना नाम विख्यात कर रहे हैं, इसीलिए पूरे विश्व में, हमारे देश के डॉक्टर्स, इंजीनियर्स कार्य कर रहे हैं । वे बड़ी – बड़ी ग्लोबल कंपनियों के उच्च पदों को तो सुशाभित कर ही रहे हैं, प्रशासन में भी अपनी सम्मानीय जगह बना चुके हैं । ये सब सच्ची लगन और समर्पण की भावना का प्रतीक है।
‘विशेष कौम’ के लोग किस तरह अपना नाम कमा रहे हैं, ये तो दुनियाँ से छिपा ही नहीं है। धन्यवाद संपादक जी।
सुरेश चौधरी, कलकत्ता
तेजेन्द्र भाई,
गम्भीर चिंतनीय विषय है, आम हिन्दू की छवि शांति प्रिय है भारत मे तो यह काम सालों से चल रहा है कि आरएसएस को बदनाम किया जाय गीता को हिंसा के लिए प्रेरित करने वाली पुस्तक बताई जाए। मेरा एक लेख भी इस विषय पर है कि रामायण महाभारत हिंसा फैलाते है और बौद्ध अहिंसा। यह जो बदनाम करने का नरेटिव है उसे सब भारतीयों के एक जुट प्रयास से ही दूर होगा।
आलोक शुक्ला
जब तक खुलकर मुस्लिम समुदाय की कट्टरता और उसकी हिंसा का विरोध नहीं करेंगे, विश्व खासतौर पर हिंदु खतरे में रहेगा और इसके लिए पूरी लेफ़्ट बिरादरी या यूं कहें कि अपने को सेक्युलर कहने वाले लोग पूरी तरह से ज़िम्मेदार हैं जिन्हें मुस्लिमों को कट्टरता, उनकी हिंसा दिखती ही नहीं है…
मीरा गौतम
सम्पादकीय में गहरे सवाल हैं. यह निहायत ग़ैर ज़िम्मेदाराना बात है दोनों तरफ के मीडिया की. भारत में राजनीतिक एनार्की है.सत्ता के लिए हर हथकंडा अपनाने वाली राजनीति को यह आसान नैरेटिव मिल गया है.
हमें अपने देश के सम्मान की चिंता है और हम वहाँ रहने वाले भारतीयों पर गर्व करते हैं . उन देशों को समझना चाहिए कि भारत के जिन हुनरमंदों ने उनके देश की आर्थिकी संभाल रखी है उनके सम्मान की रक्षा करें. हम व्यथित हैं कि बिना जाने बूझे हमारे कुशल और कुशाग्र होनहारों को असुरक्षा बोध की तरफ धकेल रहे हैं. सम्पादकीय ने उद्वेलित किया तेजेन्द्र जी.
भारती अग्रवाल
तेजेन्द्र जी,
यह ग़लत नैरेटिव फैलाया जा रहा है कि आर एस एस आतंकवादी संस्था है और भागवत काफिर बनाती हैं।
हिंदू जाति में तो वसुधैव कुटुंबकम का मूल्य है, वहां काफ़िर शब्द के लिए कोई जगह ही नहीं है। दूसरा आर एस एस केवल कुछ साल से आतंकवाद फैला रही है ? इससे पहले आर एस एस के बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा था। आर एस एस के बारे में कुछ नैरेटिव नहीं चलाया जा रहा था। एक बात और गौर करने वाली है की हमले मंदिरों पर ही हुए किसी मस्जिद पर नहीं।

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