हिमाचल का एक जिला है सिरमौर। जहाँ आज भी एक परम्परा सदियों से कायम है लोगों की आस्था है विश्वास है कि किसी दुर्घटना में या बेमौत मरे व्यक्ति की आत्मा वापस आती है और अपने बारे में, अपनी मौत के मारे में सब कुछ सच सच बताती है। इतना ही नहीं, जिस व्यक्ति में यह आत्मा आती है वह हू-ब-हू उस दिवंगत व्यक्ति की तरह बात करता है, हरकत करता है और अपने बारे में विस्तार से सब सच बता देता हैइसे ही ‘पापड़ा’  या पाप कहा जाता है। इसी प्रथा को आधार बना कर ये कहानी बुनी गई है।

परिवार के सभी सदस्यों के गलों में दांव यानी गाय को बांधने वाली बटनदार रस्सियां डाल दी गई हैं। बिलकुल ऐसे जैसे गाय-बेल को खूंटे से बाँधा जाता है | परिवार की ब्याही बिन ब्याही बेटियां,  बच्चे-बूढ़े , छोटे-बड़े, जवान सब को भी बांध दिया गया है । ऐसी मान्यता है कि जब पापड़ा को बुलाया जाता है और वह अवतार रूप में आने में बहुत देर कर देता है तो परिवार के लोग खुद को कष्ट देने के उद्देश्य से इस प्रकार खुद को बाँध लेते हैं | उनका कष्ट देख कर वह आ जाता है | तीन दिन हो गए हैं भी रिश्ते-नाते, मित्र, सगे-सम्बन्धी, बंधू –बांधव, गांव -गली की सभी महिलाएंपुरूष सभी हाथ बांधे बैठे हैं। नींद से आंखें लाल हो गईं हैं और सूज गई हैं। सूजी हुई आँखों से सब गोरखे दिखाई देते हैं | सभी के होंठ सूख कर पपड़ी छोड़ रहे हैं । गाजे -बाजेढोल -नगाड़े , दमयानु और छनके से कान बहरे हो गए हैं । ये सभी बाद्य यंत्र पिछले तीन दिन से लगातार बज रहे हैं | कान पड़ी आवाज सुनाई नहीं देती | किसी से कुछ कहना हो या पूछना हो तो यूँ आवाज लगानी पड़ रही है जैसे चलती बस में ड्राईवर कंडक्टर को आवाज देता है पूरा जोर लगाकर |  
’’ढण-मण ढण-मण ढणण -ढणण छण-छणतिकड़- तिकड़, तिकड-तिकड़ ’’ लगातार बजाते हुए  बजंत्रियों के हाथों में छाले पड़ गए हैं । अर्ज करते तांत्रिक के मुंह का थूक सूख गया, गला बैठ गया है । तांत्रिक कुछ बोलता है तो यूँ लगता है मानो फटा हुआ स्पीकर या बांस  बज रहा हो | लेकिन डोली ( वह औरत जिसमें आत्मा अवतार रूप में आएगी) है कि अवतार लेने को तैयार ही नहीं ! सभी की आँखें बस डोली पर लगी हैं | उसे देखते आँखें पथरा गई हैं सबकी | लेकिन उस पर कोई असर ही नहीं | सब यही सोच रहे हैं कि अब या अब खेल आए और ये डोली चीखना शुरू करे ! वह थोड़ी हिलती-डुलती है तो सबके कान खड़े हो जाते हैं, सांस रोक कर सब उसकी और ध्यान लगाते हैं | वह फिर नार्मल हो जाती है तो सबको निराशा होती है |  वैसे तो अक्सर पापड़ा इसी तरह तंग करता है खेलने से पहले लेकिन अब लोगों के सब्र का बाँध टूट रहा था |
परिवार का मुखिया अस्सी साल का नंदू तीन दिन से भूखा-प्यासा बैठा, अब थर-थर कांपने लगा है । उसके पेट की अंतड़ियाँ कुलबुलाने लगी हैं | बूढ़े आदमी में वैसे भी कहाँ इतने प्राण होते हैं कि तीन दिन तक बिना कुछ खाए पीये बैठा रहे | ऊपर से तीन दिन की नींद आँखों में मानों रेत उछाल रही थी | नंदू बार-बार आँखों में ठन्डे पानी के छींटे मारता और आँखें और लाल हो कर उभरतीं | जब उस से रहा न गया तो वह उठा और डोली के पाँव से लिपट कर रो पड़ा… हाथ जोड़ कर क्षमा याचना करने लगा। ’’ अवतार रूप में आओ पाप्पा  … हम सब तेरे गुनहगार हैं….।’’ ’’अवतार रूप में आओ  ! हमें माफ करो आवतार रूप में आओ… हम सब पापी हैंमैं भी पापी हूँ … मेरी पत्नी भी और मेरा ये बेटा भी … मेरा पूरा परिवार पापी है … हम सजा भुगतने के किए तैयार हैं ! आप हमें सजा तो दो !  आओ पाप्पा आओ!’’  रिश्तेदारों ने भी नंदू की अर्ज में सुर मिलाया …। “हाँ पाप्पा आओ ! अब बहुत कष्ट हो रहा है शरीर को, क्षमा करो, आओ ! इसके साथ ही एक शमशान घाट सी शान्ति चारों ओर फैल गई। नगाड़े, दमयानु और छनका कुछ देर की शान्ति के बाद फिर से भन्नाने लगे। 
अचानक डोली जोर से चीख पड़ती है … ’’इ ..! ईईई … हु हु हु हु .. नाश कर दूंगी नाश ! सब का नाश कर दूंगी ! बीज उगाल दूंगी ! रे …. रे … तुम को तो मैं …. एक- एक को भस्म कर दूंगी . ईईई ….इसी ने मारा था मुझेये मेरा खसम … यही है मेरा कातिल ! तुझे तो मैं छोड़ूंगी ही नहीं !” ये कहते हुए डोली ने जब चीखें  मारी तो पांव के नीचे से जमीन खिसकने लगी ! सिर पर ज्यों किसी ने पानी के घड़े के घड़े उड़ेल दिए हों। सभी ने हाथ जोड़ दिए | भरे हाल में पीछे बैठे लोग अपनी जगह पर खड़े हो गए | 
’’खुल के आ पाप्पा खुल के आ… तू सच्ची हम सब झूठे! खुल के बोल, परिवार में बहुत कष्ट हैं तुझे याद किया है| और इन कष्टों से तू ही छुटकारा दिला सकती है !  ए देवी आत्मा खुल कर आओ और अपने दिल की बात कहोआज तुम्हें किसी का कोई भय नहीं है, तुम्हारे नाम का डंका लगाया है !” पीछे से लोगों का मिज़ा जुला स्वर उभरा और फिर  तांत्रिक ने अर्ज का सुर लोगों के सुर में मिलाया | उधर डोली ने बोलना शुरू किया  “हु हु हु …. हां रे बाबा ! हु हु हु …. मुझे किसी का कोई डर नहीं ! हु हु हु हु .. मैं आज सब  साफ -साफ कहूंगी। मुझे जहर देकर मारा गया … रे बाबा हु हु हु हु … और मुझे मारने वाला और कोई नहीं ! ये मेरा खसम लालू  है । इसी ने मारा है मुझे ! हु हु हु हु ….” डोली ने आखर काटा तो भीड़ में खुसर फुसर शुरू हो गई। डोली ने सीमा के अवतार में आकर लालू की ओर उंगली से इशारा करते हुए चेतावनी दी  “ईई ईई … हु हु हु हु ….तेरे  पूरे परिवार को कोढ़ लगाउंगी मैं ! तेरी सात पीढ़ियां कोढ़ी पैदा होंगी ये मेरा शाप है।… हु हु हु हु …” 
 पिछले एक वर्ष से बिस्तर पर पड़ा लालू परिवार के दो जनों का सहारा लेकर उठ बैठा और थरथराते हुए हाथ जोड़ कर क्षमा याचना करने लगा। ’’ मुझे माफ करना सीमा मैं अपना गुनाह कबूल करता हूँ मैं ही तेरा कातिल हूँ .. मुझ पर दूसरे ब्याह का भूत स्वार था… मैं… मैं सच में पागल हो गया था… मुझे मा आ फ करना … मैं  भले बूरे का अन्तर ही भूल गया था मैं !…”  कहते हुए लालू सीमा के आगे गिड़गिड़ाया। उसे उसके किये की सजा तो मिल ही रही थी | लालू को दूर- दूर तक अच्छे से अच्छे होस्पिटलों में दिखा दिया गया था लेकिन सभी ने हाथ खड़े कर दिए थे। किसी डॉक्टर को लालू की बीमारी का कोई पता नहीं चला था । 
अवतार रूप में आई सीमा का क्रोध सातवें आमान पर था | “ ईईईई ….. हु हु हु हु” उसने चीखते हुए लालू की तरफ ना में उंगली हिलाई और बोली तुझे…. माफी ! हु हु हु हु … तुझे तो तड़पा -तड़पा कर मारना हैतुझे नहीं छोडूंगी मैं…. हु हु हु ! अभी तो शुरूआत है लालू … मेरे खसम अभी तो शुरूआत है …ईईईइ हु हु हु हु  !”  डोली के शरीर में आई सीमा की आत्मा प्यास से भड़क उठी थी ! उसका मुंह सूख रहा था, बोल नहीं पा रही थी| उसकी जीभ बार- बार बाहर को आ रही थी | मान्यता है जब व्यक्ति प्यास से मरता है और उसे अंत समय में पानी न मिले तो अवतार रूप में आने पर उसे बहुत प्यास लगती है और वह बार-बार पानी मांगता है |
उसने पानी का इशारा किया तो लालू की माता दया उठी और पानी का लोटा और गिलास लेकर डरते- डरते सीमा के पास आने लगी … “ईईईईई ….. हु हु हु नहीं नहीई .. आत्मा ने चीख मारी | दया ठिठक गई। सीमा ने उसके हाथ का पानी पीने से साफ इन्कार कर दिया
“ईईईई उ उ उ ….  इधर मत आना मेरी सास! तू भी तो शामिल थी न! मेरी मौत के शड़यन्त्र में … तूने ही तो खीर पटांडे (पहाड़ी डिश) बनाए थे हु हु हु हु ….. ईई ! सुना था.. रे रे … स्त्री ही स्त्री की सबसे बड़ी शत्रु …. होती हैतुमने ये साबित करके दिखा दिया हे सासू माँ … ईईईइ  …. हु हु हु हु . तूने तो मुझे मरती बार भी पानी नहीं पिलाया …अब तेरे हाथ का पानी ! थू …!’’   सीमा ने भरी सभा में  दया की और धूकते हुए उसकी पोल खोल कर रखी तो दया यूं गायब हुई ज्यों गधे के सर से सींग ! भीड़डोली के मुंह से आत्मा की एक -एक बात सुन कर हैरान हो रही थी कि कैसे ये सब बातें जो परिवार के सिवा दिवारों को भी मालूम नहीं थीं, गिन- गिन कर बता रहा है !
 मेरी रेणु को बुलाओ  ….रे… मेरी रेणू ….उससे कहो कि मुझे प्यास लगी है … ईईई … हु हु हु .. मैं अपनी बेटी के हाथ से पानी पीउंगी । ’’उं हूं उुं … ’’ डोली ने गहरी सांस ली। कुछ लोगों ने नन्हीं रेणु के गले से रस्सी खोली उसे सहारा देकर खड़ा किया और पानी का लोटा और गिलास उसके हाथ में देकर उसकी माँ के अवतार में आई डोली के पास भेजा। 
अपनी नन्हीं बिटिया को अपने सामने देख सीमा के चेहरे पर ज्यों धूप खिल उठी हो … अपलक अपनी बेटी को निहारती रही… फिर गहरी सांस लेते हुए बोली हूँ हूँ हूँ हूँ …. इधर आओ मेरी प्यारी -प्यारी बिटिया इधर आओ मैं तुम्हारी माँ हूं। …अपनी माँ के गले नहीं लगोगी ! और बाहों से पकड़ते हुए उसने रेणु को कस के बांहों में समेट लिया . उसे बुरी तरह से चूमने लगी। दोनों माँ-धी सुबक सुबक कर रो पड़ी…. । रेणू को पहले तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये औरत मेरी माँ तो नहीं लेकिन मुझे बेटी कह रही है और इसकी आवाज और प्यार बिलकुल मेरी माँ सा … फिर जब उसने हू-ब-हू माँ की तरह बातें की तो वह भी भावुक हो कर खूब रोई.  माँ-बेटी की गंगा जमुनी अश्रुधार बहती देख भीड़ भी नयन जल से अर्घ दिए बिन न रह सकी। “निमाणी छुड़ाई मेरी धी… इन पापियों ने मुझ से निमाणी छुड़ाई… अभी तो मेरी बेटी तू केवल दो साल की ही तो हुई थी हु हु हु हु ….  ! जब मुझ से छुड़ा दी गई ! अभी तो तूने दूध पीना भी नहीं छोड़ा था कि…! ईईई … हु हु हु हु … बेटा में तो जीना चाहती थी |  तुझे  पढ़ाना -लिखाना चाहती थीबड़ा ऑफिसर बनाना था तुझे ….हु हु हु हु” सीमा ने डोली के मुख से शिकायत दर्ज करवाई । रेणु सुबकती हुईहाँ में हाँ मिलाती रही । पब्लिक से खचाखच भरे हाल में बैठे लोग सिर पर हाथ रखे हूँ हूँ कर बड़े ध्यान से सीमा की बातें सुन रहे थे। हर बात पर उनके रोंगटे खड़े हो रहे थे | औरतें आंसुओं से अपने मुंह धो रही थीं चुपचाप | कुछ तो सुबकने भी लगी थीं | 
गांव में अपने पशु-जानवरों को घास-पत्ती, धार-पानी करने गए लोग भी अब तक डोली की आवाजें सुन का आ पहुंचे थे | दरवाजे खिड़की से झाँक-झाँक कर सब देख रहे थे | डोली के शरीर में आई सीमा की चीखें इतनी जोर की थी कि बहुत से लोग तो अपने आधे-अधूरे काम छोड़ कर आ पहुंचे थे आंगन में | सभी एक दूजे का मुंह देख गिट-मिट गिट-मिट कर रहे थे। 
सीमा ने रेणु को चूम -चूम कर लाल कर दिया । जब उसका मन भर गया तो रेणु के हाथ से पानी पीया |  एक रोटी खाई और फिर से जी भर कर पानी पीया और खुश हो कर अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेर-फेर कर आशीष देती रही ।  
अब तांत्रिक ने मोरचा सम्भाला। ’’अब आखर काटो पाप्पा ! खुलकर बोलो ! क्या है तुम्हारे मन में …खुल कर बोलो । तुम्हें किसी का कोई डर भय नहीं ! पूरा परिवार दुखी है …पाप्पाइसी लिए तुम्हें याद किया है। अपने मन की गांठें खोलो अब खुल कर बोलो । तुम्हारे साथ क्या हुआ हमें किसी को कुछ भी नहीं मालूम एक- एक बात बताओ और परिवार को रास्ता लगाओ पाप्पा ! हाथ जोड़ कर अर्ज है ।  ’’ हु हु हु हु ….अब मुझे कहने दो … मैं सब सच सच कहना चाहती हूं …। मुझे किसी का कोई डर नहीं है । तुम सब ध्यान से सुनना !…. हां तो सुनो ! हमारे ब्याह  को पाँच साल होने को आए थे लेकिन …औलाद के नाम पर कुछ नहीं था। अब घढ़ कर तो कोई डाल नहीं सकता न! ईईईइ …. हु हु हु हु ….. ये सब तो उस प्रभु के हाथ की माया…. है । और ये एक पत्नी की कमी भी नहीं हो सकती ! पति में भी कोई कमी हो सकती है ! सभी पण्डित वैद्य , तांत्रिक के दर पर नाक रगड़ आए थे हम ! जो भी किसी ने कहा वो सब टूणा-टोटका कर छोड़ा | लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। चिंता मुझे भी थी!… मुझे भी थी रे बाबा …. ईई ईई हु हु | दुःख था मुझे भी, लेकिन किया क्या जा सकता था। जब कोई आस शेष न रही तो घर पर बातें होने लगीइतनी बड़ी जमींदारीइतना कारोबार किसके लिए !… इसके माँ-बाप कहने लगे कि हमारे पास एक तो हैलेकिन बेटा! …तुम्हारा तो वंश ही … खत्म .!
 हु हु हु …मेरी सास ने भी अपने बेटे  के कान  भरने शुरू किए  ! और ये … ये साला … उनकी बातों में आ गया । …आखिर नई दुल्हन का कोरा -कोमल और गठा हुआ वदन इसके खयालों में महकने लगा था।  सभी मर्द लोग ..ध्यान से सुनना ! तुम सब मर्द जात ऐसे ही होते हो! ऐसा कोई मौका छोड़ना ही नहीं चाहते…। ईईईई  …. हु हु हु हु ’’
सीमा ने सांस लीदो गिलास पानी के पीए और आगे बताया “ये मेरा खसम ! जो मेरे लिए जान देने को तैयार रहता थामेरा दुश्मन बन गया। मुझसे कहने लगा … कि मुझे तो दूसरी शादी करनी है तुम जीयो या मरो….! ’’ घर पर हर रोज झगड़े होने लगे। हंसता -खेलता घर कलह का अखाड़ा बन गया। मैंने बहुत समझाया लेकिन लालू नहीं माना !  मैं भी पढ़ी लिखी थी तो ….इतनी आसानी तो हार मानने वाली न थी ।  
मैंने भी कह दिया देख लालू अगर तू नहीं मानेगा तो मैं तुझे अन्दर करवा दूगीं ! मैं पूलिस में कम्पलेंट करवाउंगी। इतना तो तू जानता ही होगा कि एक पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह गैर कानूनी होता है ? इस पर लालू ठठा मार कर हँसा पड़ा था। कहने लगा ’’ तू नहीं जानती क्या ! हमारे यहां यानी  हिमाचल के जनपद सिरमौर के गिरिपार में बहुपत्नी प्रथा का प्रचलन है। इतना ही नहीं, हिमाचल के जनपद सिरमौर और किन्नौर के कुछ भागों में तथा केरल में तो बहुपति प्रथा भी प्रचलन में है। बहुपत्नी प्रथा का उल्लेख तो हमारे पौराणिक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। राजा दशरथ की तीन पत्नियां थीं। भगवान कृष्ण का उदाहरण हमारे सामने है । तुम्हें तो मालूम होना चाहिए कि मेरे पिता की भी दो पत्नियां हैं। पूरा परिवार एक तरफ हो गया तो मैं अकेली पड़ गई। अब मैंने भी सब ऊपर वाले पर छोड़ दिया था। 
फिर अचानक एक चमत्कार हुआ, ईईई …. हु हु हु हु … मैं गर्ववती हो गई। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। पूरे भोज (इलाके) में खुशी की लहर दौड़ गई । लेकिन मेरे परिवार में किसी को कोई खुशी नहीं हुई ! मानो कुछ हुआ ही नहीं। लेकिन मैं अब निश्चिंत हो गई थी । मैं आश्वस्त थी कि अब खतरा टल गया है।“  कहते हुए डोली की आँखें लगातार बरस रही थी । उसके कपड़े आंसुओं से भीग गए थे पर वह बोले जा रही थी … सुबकते हुए | 
 “ मैं अपने आने वाले बच्चे के लिए सपने बुनने लगी और घर के काम में खो गई। मैं तो जैसे भूल ही गई थी कि कुछ हुआ भी था। नौ महीने कब बीत गए, पता ही नहीं चला और मेरी कोख से परी सी सुन्दर बेटी ने जन्म लिया ईई ईई हू हु हु हु … यही है वो मेरी रेणु , मेरी लाडली … मेरी प्यारी हुन् .. गांव भर में खुशियां मनाई गई। लोग कहने लगे ’’सीमा की पुकार ऊपर वाले ने सुन ली ! बेटी हुई है ! अब बेटा भी हो जाएगा अगली बार। बैचारी सीमा बहुत परेशान थी। है प्रभु तेरे घर में देर है पर अंधेर नहीं है।“  
रात के दो बज चुके थे लेकिन सीमा की आत्मकथा अभी बाकी थी… “ईईईइ ….. हु हु हु हु …” डोली ने सिर झुकाना शुरू कर दिया था | गोल -गोल घूमता उसका सिर उसके घुटनों पर झुकने लगा | अब वह बोलते हुए थक भी चुकी थी बहुत अधिक … तांत्रिक ने इशारा किया…. बजंत्री समझ गए और उन्होंने फिर से सभी वाद्य यंत्रों को बजाना शुरू शुरु किया | 
सभी सगे -संबंधी रिश्तेदारगांव के बच्चेबड़े-बूढ़े सब यूँ बैठे थे ज्यों सतसंग में भक्त लोग ईश्वर के साथ एकाकार हो गए हों। असंख्य जोड़ी कान खड़े और आंखें डोली के चेहरे पर गड़ी थीं। डोली के अवतार में सीमा ने आगे कहा ’’मेरी बेटी अभी एक वर्ष की भी नहीं हुई थी कि लालू ने दूसरी शादी कर ली। मेरा कलेजा फटने को हुआ ! अब वह मेरी देखभाल भी नहीं करता था | बच्ची की ओर से उसका पहले ही मोह भंग हो गया था | जब ये नई -नवेली दुल्हन लेकर घर आया, मुझे लगा ज्यों लालू मेरी  छाती को आर्मी शूज पहन कर रोंद रहा हो … लेकिन मैं अपनी बेटी के लिए जीना चाहती थी। हु हु हु हु ’’ 
   ’’लालू ने दूसरी शादी कर ली थी …लेकिन मैं भी कहां पीछे हटने वाली  थी! …चार  दिन तक दोनों को इकट्ठे नहीं सोने दिया! इन छोटे मोटे आंधी तूफानों से तो लड़ लेती लेकिन…  मुझे इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि मेरी जिंदगी में सुनामी  आने वाली है…. जो सब कुछ बहा ले जाएगी ! हाँ सुनामी के आने से पहले एक डरावनी शान्ति जरूर छा गई थी।  
पाँचवें दिन मेरी सास ने खीर पटांडे बनाए। नई बहू के आने की ख़ुशी में, हालाँकि उसे झाझड़ा कर के लाया गया था और अभी पार्टी होनी बाकी थी लेकिन उससे पहले शायद मेरे लिए या उसके लिए ये भोज रखा गया था |  पूरे परिवार ने पेट भर खाना खाया । लालू ने अपने हाथों से मुझे खीर पटांडे थाली में परोस कर दिए। खीर में खूब घी-शक्कर  डाल कर मेरे पति ने खुद मुझे दिया ईईईई … हु हु हु हु … मैंने भी उस दिन मन का सारा मैल धोकर पेट भर खाना खाया। उस दिन मुझे जरूरत ही नहीं पड़ी कहने की! मेरा पति स्वयं ही आ कर मेरे कमरे में सो गया। न कोई लड़ाई न झगड़ा न तू तू न मैं मैं …कोई न  नुकर नहीं। मेरी आंख लगी ही थी कि मेरे पेट में तीखा दर्द होने लगा।  ’’उ … आइ … हु हु हु हु … ’’ सीमा ने जोर की चीख मारी और फिर आगे बोली  ’’ मुझे लगा मानो मेरा कलेजा खाया…जा रहा है … मेरे ही पति ने मेरा कलेजा खा लिया था कुछ अंदर ही अंदर …चुभ रहा था | मैं कातर निगाहों से पति की और देख रही थी कि मुझे कोई दवाई दे … मुझे हॉस्पिटल ले जाओ | मुझे क्या पता था कि इसने ही मुझे  खीर में डाल कर जहर दे दिया था ….ईईइ  मेरी आंखें बंद हो रही थी… तो ये लालू और इसकी नई दुल्हन  मेरे सामने गले में बाहें डाले हँस रहे थे। मुझे खून की उल्टी हुई और मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया | 
’’इ …निमाणी रह गई ! मेरी बेटी, मेरी याणी मुझ से छुड़ाई गई।  मैं अपनी बेटी को बाहों में पकड़े छाती से भींच रही थी और उधर यमराज मुझे बाहों से पकड़ अपनी ओर खींच रहा था … ईईईइ हु हु हु हु … इन्हें तो मैं कभी माफ न करूं ! सीमा ने आँखें बड़ी -बड़ी करते हुए दोनों मुट्ठियां भींचते हुए लालू की ओर उंगली करते हुए कहा तू कानून से तो बच गया लालू  ! लेकिन मुझ से कैसे बचेगा! और अपनी टांगों को भुजाओं में समेटते हुए सिर घुटनों में दे दिया हु हु हु हु ।“  
उसकी सांस सामान्य होने लगी थी | उसका रूदन अभी थमा नहीं था …सुबक सुबक के रोने से उसका गला बार- बार सूख रहा था। तांत्रिक ने इशारा किया और नगाड़े दमयानु , छनका फिर से पर्वतों को कंपाने लगे। ’’ढण-मण ढण-मण ढणण -ढणण छण-छणतिकड़- तिकड़, तिकड-तिकड़ ’’  डोली की हवा फिर से उफान मारने लगी और जाते -जाते आत्मा फिर से लौट आई  ’’इ इ …।’’ डोली की चीख के साथ ही तांत्रिक ने फिर इशारा किया और बजंत्री फिर शांत हो गए। 
अब तांत्रिक ने अर्ज किया  ’’अब गलती -फल्ती माफ करना पाप्पा!  और परिवार को रास्ता देना …इन्सान गलती का पुतला है ….हम सब तुम्हारे गुनेहगार हैं। जो भी दण्ड लगाएंगे हमें मंजूर है पाप्पा ! लेकिन घर में सुख शांति दे। हम सब तेरे चरणों में हैं पाप्पा!…
’’उ … कान खोल कर सुन भाट !  तेरी गवाही पर इन को छोड़ रही हूं। नहीं तो मैंने ठान लिया था इनका बीज ही उगाल दूं !  उनको निर्बीज करना था मुझे …अब याद रखना और भूल जाए तो मुझे दोष मत देना। छठे महीने का मेरा हिस्सा देना ! फसल कमाई से ! और मेरी बेटी को तंग मत करना ! इसे खूब पढ़ाना लिखाना…’’उ … हु ह हु इसको तंग करेंगे तो मैं फिर दोष लगाउंगी … हु हु हु हु लगाउंगी नहीं ले जाउंगी अपने साथ इस लालू को …अब मुझे इजाजत दे ,   ही…ईईई हु हु हकु हकु . ! ’’  जोर की चीखों के साथ ही डोली शांत हो गई। सीमा की आत्मा अब उसके शरीर को छोड़ कर जा चुकी थी| डोली के कपड़े पसीने में तर हो चुके थे। उसने पानी के चार लोटे गटागट पीए और वहीं अचेत हो कर गिर गई। हाल में भरी पब्लिक के बीच से खुसर- फुसर की आवाजें आने लगी। जितने मुंह उतनी बातें।
वागर्थ , विपाशा , हिमभारती , हिमप्रस्थ , गिरिराज ,हंस , बाल हंस , बाल भारती आदि अनेक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित. दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से , साक्षात्कार , कवितायेँ , ग़ज़लें एवं आलेख एवं वार्ता प्रसारित. सम्मान : अंतर्राष्ट्रीय कवि सम्मेलन नेपाल में प्रस्तुति एवं विशिष्ट प्रतिभा सम्मान , सिरमौर कला संगम ,हिमोत्कर्ष के प्रतिष्ठित पुरस्कार सहित दर्जनों सम्मान. सम्प्रति : हिमाचल सरकार में अध्यापन. संपर्क - 9418740772, anantalok1@gmail.com

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