1 – हँस दो ज़रा हुजूर !
आपको खिलखिलाना नहीं आता
तो हँस दीजियेगा हुजूर
हँसना नहीं आता
तो मुस्कुरा भर दीजियेगा हुजूर
सुना है हँसने-मुस्कुराने से
अवसाद रास्ते बदल देते हैं
पत्ते पक कर ज़मीन पर
गिरना बंद कर देते हैं
बागों में रंग और ख़ुश्बू की
पंगत लग जाती है
तितलियाँ भी ओढ़ती हैं
वहाँ स्वर्ण की चादर को
कागा भी बेसुरा होकर
कोयल का राग सुनाता है
देखें तो !
भौंरा हर तितली पर मंडराता है
कहता हर कली के कान में
हँसती हो तब ही खिलती हो
वर्ना रोने के लिये तो
ये पूरा ज़माना पड़ा है ..॥
2 – जीवन कैसा बीता
हाय रे ! जीवन कैसा बीता
रहीं शिकायतें करे झगड़े
कभी न धोये वो कपड़े
जिनसे लिपटा रहा अहम्
पड़े रहे वहम के चक्कर में
हाय रे ! जीवन कैसा बीता
न लाये थे साथ कुछ भी
न कुछ साथ ले जायेंगे
किस बात का घमंड करें
जब शरीर भी न साथ धरे
हाय रे ! जीवन कैसा बीता
साँसो के उतार -चढ़ाव में
बस अपना जीवन बीता
रीता, रीता रहा सभी कुछ
जो पाया वो जान न पाया
किस भ्रम का प्याला पीया
जो भी जीवन अपना बीता
रीता सा क्यों रहा सभी कुछ
सब सहा, सहा सा क्यों बीता
हाय रे ! जीवन कुछ ऐसा बीता …..।।
सुंदर कविताएँ