ताल तलैया सूख गए हैं
मरा आँख का पानी
दुनियादारी कहाँ बची है
जनता बहरी-कानी
चिड़िया छोड़ घोसले भागी
भागी बरखा रानी
प्यासी मछली तड़प रही है
गढ़ती नई कहानी
अपना दुखड़ा किसे सुनाये
कुढ़ती बिटिया रानी
जरा जरा सी बातों पर हैं
तिल का ताड़ बनाते
मौका पाते चोंच पिजाते
और बाज बन जाते
कहाँ बची हैं बीती बातें
ममता कहाँ पुरानी
आज अभावों की गलियों से
भाव सभी हैं गुजरे
काश अभी यह मौसम बदले
चाल-चलन कुछ सुधरे
लिखे रोशनी अँधियारों पर
कोई गजल सुहानी
2 – ऐसा दौर नहीं
त्रेता से हम सहे जा रहे
बस अब और नहीं
चुप रह कर सब क्यूँ सुन लें जी
ऐसा दौर नहीं
घिसती चप्पल थकी नहीं माँ
दौड़ी गली-गली
लड़के वाले चारा चाहें
शादी ख़ूब टली
हँसता है दहेज का मौसम
अच्छे तौर नहीं
चुप रह कर सब क्यूँ सुन लें जी
ऐसा दौर नहीं
बिटिया करती काम सभी है
फिर भी सदा ख़ले
बेटा चाहे मार लगाए
लग जा पूत गले
बेटे को ही धन दौलत दे
बाटों कौर नहीं
चुप रह कर सब क्यूँ सुन लें जी
ऐसा दौर नहीं
अपने घर से बेघर होती
नाता तोड़ चली
अगला घर भी कहे परायी
सबसे गयी छली
फिर भी सबको पाले पोसे
लांघें ठौर नहीं
चुप रह कर सब क्यूँ सुन लें जी
ऐसा दौर नहीं
सहम सहम कर बीत गयीं
सब बचपन की घड़ियाँ
और जवानी रही जोड़ती
रिश्तों की कड़ियाँ
पहर तीसरा है अब भी क्यूँ
करते गौर नहीं
3 – मुश्किल बहुत किसानी
सूखा बाढ़ सहे वह निस दिन
मुश्किल बहुत किसानी
चुप्पी तोड़ नहीं कुछ कहता
ऐसा क्यों है दानी
टूटी फूटी रही मड़ैया
खेत बना है ताल तलैया
चुकता हुआ उधार नहीं है
भूख खेलती ता ता थैया
गोरू गैया बिलख रहे हैं
कब तू देगा सानी
बंजर में भी अन्न उगाता
जरा-मरा में ख़ुश हो जाता
लेकिन बेटा खेत न जाये
मन को यह भी कितना खाता
खेतिहर वर न लाना बप्पा
कहती बिटिया रानी
सूदखोर है बड़ा महाजन
नैतिकता से उसकी अनबन
चक्रवृद्धि दर ब्याज लगाता
उसका ईश्वर मात्र एक ‘धन’
उसकी ऐसी बैंड बजाओ
भूले छप्पर-छानी
आशा पर ही तो साँसे टिकी है, काश। दूसरी कविता में बहुत खरी खरी कही आपने। तीसरे पहर में ही सही, अपना जीने का हक़ तो बनता है। सब कुछ कर के बहुत कुछ सह के कुछ दिन अपने लिये मिलें नहीं तो छीनने पड़ेंगे।
किसान की दशा का मार्मिक वर्णन किया है। असली जिन्दगी की छूती हुई सच्ची सच्ची कवितायें। हार्दिक साधुवाद
बहुत सुंदर रचनाएं
आशा पर ही तो साँसे टिकी है, काश। दूसरी कविता में बहुत खरी खरी कही आपने। तीसरे पहर में ही सही, अपना जीने का हक़ तो बनता है। सब कुछ कर के बहुत कुछ सह के कुछ दिन अपने लिये मिलें नहीं तो छीनने पड़ेंगे।
किसान की दशा का मार्मिक वर्णन किया है। असली जिन्दगी की छूती हुई सच्ची सच्ची कवितायें। हार्दिक साधुवाद