1- युग मेरा
कवि लिखता
है कविता
पंछी पर,
रचता है
शब्दों में
उड़ान का उत्सव
कलरव की सरगम…
उकेरता है
पृष्ठों पर
कोमल पंखों के
मखमली इंद्रधनुषीय रंग,
आकाश की
नीलाभ अनंतता…
पूछता है
कवि से
पंछी की नस्ल
पंछी का वर्ण
बुद्धिजीवी
मेरे अतिप्रबुद्ध
युग का!
2- ख़ामोश
दंगे के बाद
पड़ी है सड़क पर
मसली ,कुचली
लावारिस लाश
ख़ून के कतरे
बन चुके हैं
एक खौफनाक दरिया …
बंद हैं
हमारी आंखों के
ख़ुदग़र्ज़‘फ्लड -गेट्स’
ख़ामोश है हमारी
इंकलाबी हुंकार
सब चुपचाप
जारी है
इंतज़ार-
लाश की जात
लाश का मज़हब
मालूम होने तक!
3- आज़ादी
इस बार मुझे
चाहिए आज़ादी
अपनी पैदाइश से
पहले ही !
करना चाहती हूँ
इस बंटे-कटे
जहान में
बे-जात
बे-मज़हब
बे-जेण्डर
बेखौफ गुस्ताख़ एंट्री !
रूमी के रक़्स
दरवेशों के ‘हाल’
अष्टावक्र के ‘निरंजन’ सी!
आ , मुझे अपने
आगोश में
समेट ले,ज़मीं !
कायनात !
कर खाली
मेरी ख़ातिर
कोई कोख करामाती-
बेचैन है
पैदा होने को-
इक सुबह नई…