नदी
लौट आओ नदी
पहाड़ बहुत याद
करते हैं तुम्हें
बहुत उदासियां हैं
घाटियों में
विकट अंधेरों में हैं
गांव
शहर की रिमझिम बारिश
पहाड़ के आंसू हैं
लौट आओ नदी
जुगनू भर
रोशनी लेकर
तुम्हारी कल कल
भीगते पानी में
डूबती पदचापें
बहुत भीतर
तुम्हारा निरंतर बहना
पहाड़ों को
याद है बहुत
अचानक
अंकों में भर जाना
पहाड़ से खूब
लिपट जाना
अपनी भीगी चुनरी से
ढक देना उसे
पल पल याद आता है
पहाड़ों पर जो
उगे हैं देवदारू
प्यासे हैं बहुत
सूख जायेंगे वो
बिना जल
उजाड़ हो जायेंगे
खेत
बांवड़ियां नहीं भरेगी
पानी
पनिहारने
लौट जायेगी
खाली गगरियां लिए
उदास प्यासी
लौट आओ न
बहुत प्यासे हैं
देव वृक्ष
तुम देवी हो उनकी
नदी रंग जैसी
शतद्रु…. शतु
लौट आओ शतु
पहाड़ों की सांसे लेकर
जिन्हें ले गई हो तुम
जाने अंजाने
अपने आंचल में बांधे
पहाड़
नहीं सह पाएंगे
तुम्हारा बिछोह
मछलियों की तरह
तड़पते हैं
बिना पानी
लौट आओ नदी
लौट आओ
पहाड़
उदास है बहुत।
अंधेरे
जब अंधेरे
बहुत होते हैं भीतर
चांद और सूरज भी
नहीं उगते आंखों में
आप प्यार और सच
की तलाश में
मिट्टी का दिया लिए
निकल जाते हैं
किसी लंबी यात्रा पर
रोशनी
लड़ने लगती है
अपने ही वजूद से
आंधियां
निगलना चाहती है सब
तभी कोई जुगनू
चला आता है
विकट अंधेरों को
काटता हुआ
आप कभी सोचते हैं
जैसे जीवन
अब समाप्ति पर है
रिश्ते मित्रताएं
स्वार्थ के खूह में
समा गई है
तभी कोई कोमल हाथ
या नदी रंग जैसी लड़की
थाम लेती है
आपका हाथ
तब महसूस
करते हैं आप
कि अभी सब
समाप्त नहीं हुआ है
बचा हुआ है
एक लाल गुलाब
कांटों के भारी
विरोधों के बावजूद भी
इंसानों द्वारा
तहस नहस की गई
कुछ क्यारियों में
जीवन
कांटों के बीच उगता
गुलाब ही तो है
प्रेम
तुम यदि प्रेम में हो
कुछ रंगों को
मुट्ठी में ले कर
हवा में उछाल दो
उस लड़की को याद कर लो
जो तुम्हें प्यार नहीं करती
किसी फूल की डाली को
थोड़ा सा पानी दे दो
बालकनी या आंगन में
चिड़िया को
थोड़ी सी चूग डाल लो
किसी श्वान को
रोटी का टुकड़ा खिला दो
उस मित्र की
कुछ अच्छी बातें याद कर लो
जो अब तुम्हारा
मित्र नहीं है
मधुमक्खी से पूछ लो
शहद बनाने की कला
और बया से
घर बनाने का हुनर
तुम यदि प्रेम में हो
एक किताब खरीद लो
या खरीदकर उसे
किसी के जन्मदिन पर
भेंट कर दो
अपने पुस्तकालय में
जहां तहां रखी गीता
बाइबल कुरान और
गुरुग्रंथ साहिब को
एक जगह सलीके से रख लो
मुक्त कर दो उन्हें
बंधे धागों से
तुम किसी सांप को भी
दूध पिला सकते हो
यह जानते हुए भी कि वह
फिर भी डसेगा ही
प्रेम जहर का ही तो
दूसरा रूप है
तुम यदि प्रेम में हो
किसी से प्रेम मत करो
प्रेम शब्द
कोरे कागज पर लिख
उसकी नाव बना लो
बहा दो उसे
किसी पहाड़ी निर्मल
नदी के जल में
और आंखों से ओझल होने तक
देखते रहो उसे।

एस. आर. हरनोट
वरिष्ठ साहित्यकार

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