Saturday, July 27, 2024
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शिरीष पाठक की कविताएँ

  • शिरीष पाठक

पुरानी सी किताब
एक पुरानी सी किताब की खुशबु आती है अब तुमसे
ऐसा लगता है पढ़ लिया है तुमको कई बार
और तुम्हारे मुड़े हुए पन्नों को दोहरा लेता हूँ रोज़ एक बार
क्यूंकि तुम्हारे नाम की किताब दिल के बेहद करीब रखता हूँ मैं
अच्छा लगता है तुम्हारी सियाही को महसूस करना
अपनी आँखों और अपने हाथों से
जानती हो कभी कभी कुछ सुख चुके फूल मिल जाते है
जिनकी खुशबु आज भी आती है उन पन्नों की खुशबु के साथ
मेरे हाथों में अब रोज़ नज़र आती हो तुम
कभी मेरे सिरहाने रखता हूँ तुमको
और कभी मेरे सीने पे रख के सो जाता हूँ मैं
तुम्हारे बिना मेरे दिन का बीतना मुश्किल होता है
तुमको मैं बहुत कुछ कह देना चाहता हूँ तुमको रोज़
जिससे तुम मेरे अन्दर पनप रहे उन सब एहसासों को जान पाओ
लेकिन एक डर छिपा रहता है मेरे अंदर
कहीं मेरी कोई बात तुमको बुरी न लग जाए और तुम रूठ न जाओ मुझसे
मेरे लिए तुम मेरे जीवन की किताब के उन पन्नों की तरह हो
जो मैं पढता हूँ और अपनी कहानी को पूरा करने में जोड़ देता हूँ
और हर पन्ने में खुशबु आती है तुम्हारी
बिलकुल वैसे ही जैसे की गुलाब महकता है किसी किताब के पन्नों के बीच में
कशमकश
कशमकश में बंधा पाता हूँ खुदको
जब देखता हूँ तुम्हारी आँखों को
सवाल पूछती हुई
जवाबों के इंतज़ार में
मैं नहीं जानता कैसे जवाब दूँ तुमको
खामोश रह जाना ही बेहतर समझता हूँ
तुम मुस्कुराती हुई चलने लगती हो
और इशारे से मांगती हो साथ मेरा
आसमान के नीलेपन से कुछ रंग चुराती हुई
सूरज की किरणों में गुम हो जाना आता है तुमको
शाम के ढल जाने से पहले तुमसुकून ढूंढने घाट पर आ जाती हो
कुछ देर ही सही लेकिन तुम सब कुछ भूल जाना चाहती हो
अलविदा

ज़िन्दगी के न जाने ये कैसे सवाल है
कल तक जिसको हँसते बोलते देखा हो
अचानक से खामोश हो जाता है
अलविदा कह जाता है बिना कुछ कहें
अजीब लगता है किसी ऐसे इंसान का जाना
जो मिलता है ख़ुशी के साथ हर बार
भूख प्यास के अलावा भी जीवन में कुछ और
जो हम शायद समझ नहीं पाते
इंतज़ार करना खुद की मौत के बाद भी अपनों का भारी होता है
कभी बर्फ के टुकड़ो पे लेट के और कभी टूटी हुई लकड़ियों पे
आग से जल जाना भी आसन होता है और मिटटी में खुद को छुपा लेना भी
आखिर मिल जाना हम सब को मिटटी में ही होता है
कभी जलते हुए देखा है किसी को
खुद की मौत के बाद भी जल जाना दूसरों के लिए
जानते है हम सभीको मिटटी बन जाना है
लेकिन ज़मीन में जाने का डर हमेशा रहता है
जीवन शुन्य से शुरू होकर शुन्य पे ही अंत हो जाता है
और हम सब शरीर बदल लेते है
आत्मा बस आत्मा रह जाती है
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