होम कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी की दो कविताएँ कविता ज़हीर अली सिद्दीक़ी की दो कविताएँ द्वारा ज़हीर अली सिद्दीकी - February 27, 2022 306 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1-चिराग मैं चिराग नही, हवा से बुझने वाला। एक चिराग मग़र, कोठरी से बचने वाला।। उन थपेड़ों की, हैसियत ही क्या है। मार से उनके ही तो, तेजी से जल उठता हूँ।। बुझी हालात में मैं वक्त की क़दर करता हूँ अंदर के उजाले को दिल से सलाम करता हूँ।। जब मैं जलता हूँ रोशन जहाँ को करता हूँ बुझी तक़दीर को जलकर मैं जला देता हूँ।। मेरी आरजू का समन्दर भी साथ देता है मझधार में भी साहिल सा प्यार देता है।। जब मैं डूबता हूँ ऊपर ही फेंकता मुझको ये समन्दर भी बुझदिली को बुझा देता है।। 2-दोष नही, दोषी मरता… शिशु को लेकर वे दौड़ रहे ख़ुद के जीवन को तौल रहे।। उस गोद मे बच्चे चिपके है जो सैन्य से हैं निर्जीव पड़े।। वे विलख रहे असहाय दिखे आंखों आंखों में विदा लिए।। तू सैन्य शक्ति को बढ़ा रहा सूली पर जीवन चढ़ा रहा।। कहता क्यों जीवन जोड़ रहा तू है जो जीवन तोड़ रहा।। क्या इसे युद्ध की संज्ञा दूँ जो मानवता को तोड़ रहा।। मानवता उससे, चिंचित है। जो रक्तपात से, सिंचित है।। शक से पनता है विजय राग वह विजय नही है बज्रपात।। मनुज सदा होता चिंतित जब दोष नही दोषी मरता।। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. हर्षा त्रिवेदी की तीन कविताएँ प्रेमा झा की कविता – माँ रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – सपने कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.