राकेश शंकर भारती एक लंबे अर्से से यूक्रेन के शहर द्नेप्रो में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। वे हिन्दी के प्रतिष्ठित कथाकार एवं उपन्यासकार हैं। राकेश भारती रूसी, जापानी, फ्रेंच समेत कई अन्य भाषाओं के जानकार हैं… वे यूक्रेन में अनुवादक का काम करते हैं।  रूस द्वारा यूक्रेन पर किये गये आक्रमण पर उनके अपने निजी अनुभव एवं विचार हैं। वे अपने अनुभव एवं रूस के यूक्रेन पर आक्रमण पर अपनी प्रतिक्रिया पुरवाई के पाठकों के साथ  साझा कर रहे हैं। ये उनके अपने विचार हैं। पुरवाई पत्रिका केवल उन्हें साझा कर रही है। हमारे पास उनके विचारों के तथ्यात्मक सच की जांच करने के कोई साधन मौजूद नहीं हैं।  
रूस-यूक्रेन युद्ध और भारतीय मीडिया…
  • राकेश शंकर भारती, द्नेप्रो शहर, यूक्रेन, (यूक्रेन – 09/12/2022)
24 फ़रवरी 2022 ईस्वी को सुबह सवेरे रूस ने यूक्रेन पर हमला किया। तानाशाह पुतिन इस हमले की पटकथा 2014-15 ईस्वी में ही लिख चुका था, जब मैदान क्रांति के बाद लोगों ने रूस के पिट्ठू और भ्रष्ट राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को राजधानी कीव से भगा दिया। उसके बाद यूक्रेन में आम चुनाव में पेत्रो परशेंको को यूक्रेन का राष्ट्रपति चुना गया। इसके साथ ही यूक्रेन में भ्रष्टाचार का ख़ात्मा होना शुरू हो गया।
विक्टर यानुकोविच के राजधानी से भागते ही पुतिन ने एक शातिर चाल चली और अपने एजेंटों के माध्यम से यूक्रेन के पूर्वी इलाक़े में विद्रोह करवा दिया। वैसे तो यह नाम मात्र का विद्रोह था, क्योंकि पुतिन बड़ी तेज़ी से क्रीमिया में एक बड़ी सैन्य टुकड़ी भेजकर उस प्रायद्वीप को अपने क़ब्ज़े में ले लिया। उस समय यूक्रेन के पास पेशेवर सैनिक भी नहीं थे। कुछ मुट्ठीभर सैनिकों ने बिना लड़े रूस के बड़े सैन्य टुकड़ी के सामने घुटने टेक दिये और इस तरह रूस ने वहाँ एक झूठा जनमत संग्रह करवाकर दुनिया को यह दिखाया कि यहाँ ज़्यादातर लोग रूस के समर्थक हैं और उन्होंने रूस के साथ जाने का रास्ता चुना है।
ज़ाहिर सी बात है कि ज़्यादातर लोकतांत्रिक देशों को रूस की यह हरकत रास नहीं आयी। पश्चिमी देशों ने रूस पर कुछ आर्थिक प्रतिबंध भी लगाये, रूस पर इसका कुछ ख़ास असर नहीं हुआ। क्रीमिया के रूस में विलय के साथ ही पुतिन ने दनेत्स्क और लुगाँस्क में टैंक भेज दिये। वहाँ मुट्ठीभर रूसी समर्थकों के साथ दनेत्स्क और लुगाँस्क शहर के साथ-साथ आसपास के कुछ हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर लिया। आनन-फानन में यूक्रेन के आम लोगों ने एक छोटी सेना के साथ रूस की बड़ी सेना से लोहा लिया और कुछ इलाकों से रूसियों को खदेड़ भी दिया। उसके बाद, जर्मनी और फ्राँस ने रूस और यूक्रेन के बीच मिंस्क संधि करवा दी, जिसके मुताबिक़ यूक्रेन पूर्वी यूक्रेन के इस इलाक़े को विशेष क्षेत्र का दर्जा देता और वहाँ की सरकारी भाषा रूसी होगीती।
इसके साथ ही रूस की कई और माँगें थीं। यूक्रेन ने इस संधि पर रूस के साथ हस्ताक्षर कर दिया। किंतु रूस ने हर बार युद्धविराम का उल्लंघन किया और यूक्रेन की सेना पर फायरिंग करता रहा। इसके जवाब में यूक्रेन भी फायरिंग करता रहा। रूस ने हमेशा यूक्रेन पर यह इलज़ाम लगाया कि यूक्रेन पूर्वी यूरोप में आम लोगों की हत्या कर रहा है, किंतु रूस की मंशा हमेशा से कुछ और थी। यह मंशा पिछले आठ सालों से तानाशाह पुतिन के दिमाग में खिचड़ी पका रही थी। इस गेम प्लान के बारे में पुतिन के अलावा कोई और नहीं जानता था।
क्रीमिया को बहुत आसानी से हड़पने और यूरोप और अमेरिका की नाकामी का फ़ायदा उठाते हुए उसने 2015 ईस्वी से सैन्य तैयारी करनी शुरू कर दी थी। उसे यह लगा, “यूक्रेन की सैन्य शक्ति तो रूस के सामने कुछ भी नहीं है। कुछ सालों की तैयारी के बाद अचानक यूक्रेन पर हमला करके तीन दिनों के अंदर ही पूरे देश पर क़ब्ज़ा करके यूक्रेन को रूस में विलय कर दूँगा। बेलारूस तो पहले ही रूस के अंदर आ गया है। यूक्रेन के बाद पूर्वी यूरोप के छोटे-छोटे देशों को क़ब्ज़ा करते चलूँगा। इस तरह से एक बार फिर सोवियत संघ की तरह ही रूस दोबारा अपने आसपास के सभी देशों को अपने में मिला लेगा।”
24 फ़रवरी को पुतिन ने यूक्रेन पर हमले की घोषणा की और एक दिन के अंदर ही उसकी सबसे अच्छी सैन्य टुकड़ी कीव के पास आ गयी। दुनिया के ज़्यादातर सैन्य विशेषज्ञ यही कहते हैं कीव पास भेज गयी रूसी सैन्य टुकड़ी दुनिया के सबसे बेहतरीन पेशेवर सैन्य टुकड़ियों में एक थी। इस सैन्य टुकड़ी को कीव के पास बिना किसी दूरदर्शी नज़रिये भेज देना यह भी दर्शाता है कि पुतिन पूरे यूक्रेन पर जीत को लेकर इतना ज़्यादा आश्वस्त था कि उसने कोई प्लान-बी भी नहीं बना रखा था। उसे तो हर हालत में कीव के ऐतिहासिक किले पर फ़तह हासिल करना ही था। यह वही कीव है जिसे द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर के सैनिक पाँच सालों तक घेरा डालकर बैठे रहे, फिर भी कीव का किला नहीं ढह सका।
24 फ़रवरी से मार्च के पहले हफ़्ते तक कीव के पास दोनों सेनाओं के दरम्यान भीषण लड़ाई हुई। इस भीषण लड़ाई में रूस की सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। अमेरिका और इंग्लैंड से भेजे गये एंटी टैंक मिसाइल जेवलिन और NLAW ने रूस की सेनाओं पर कहर बनकर बड़पा और तीन दिनों में कीव पर फ़तह करने की पुतिन की महत्वाकांक्षा ताश के पत्ते की तरह बिखर गयी। जर्मनी, अमेरिका से भेजे गये स्टिंगर मिसाइल ने तो एक तरफ़ जहाँ रूसी टैंकों तो तहश-नहश कर दिया, वहीं दूसरी तरफ़ रूस की वायुसेना की शक्ति पर भी बहुत बड़ा धक्का लगा।
यूक्रेन के जाँबाज़ पेशेवर पायलटों ने सोवियत ज़माने के पुराने मिग और सुखोई लड़ाकू विमान उड़ाकर ही एक हफ़्ते के अंदर ही रूस के उस मिथक पर भी बहुत बड़ा प्रहार किया कि रूस दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी वायुसेना की ताक़त है। तीन-चार दिनों के अंदर कीव के आसमान में पचास से अधिक अत्याधुनिक रुसी लड़ाकू विमान गिर गये और कीव का आसमान रूस के अच्छे पेशेवर पायलटों का क़ब्रिस्तान बन गया। यूक्रेन ने भी अपने कुछ अच्छे पायलट और लड़ाकू विमान ज़रूर गंवा दिये, किंतु रूस इतनी बड़ी वायु सैन्य शक्ति होने के बावजूद यूक्रेन के आसमान पर धाक नहीं जमा सका और अपने थल सैनिकों को वह संबल प्रदान नहीं कर सका, जैसा कि पूरी दुनिया को उम्मीद थी। इस आसमानी लड़ाई से यह तो सिद्ध हो चुका है कि आसमान की लड़ाई जीतने के लिए बहुत ज़्यादा लड़ाकू विमानों की ज़रूरत नहीं है।
आप कुछ अच्छे दक्ष पायलटों और संख्या बल में कम अच्छे मेंटेनेंस वाले लड़ाकू विमानों के साथ भी युद्ध जीत सकते हैं। इसके लिए मैं आपको इतिहास की एक चर्चित लड़ाई का उदाहरण भी देता हूँ, जिसमें इज़राइल ने कम लड़ाकू विमानों की मदद से ही मिस्र जैसी बड़ी वायु सैन्य शक्ति को बुरी तरह हरा दिया था, जिसके साथ पाकिस्तान के अलावा पूरे अरब देशों की वायु सैन्य शक्ति साथ थी।
पुतिन ने कभी ऐसा सोचा भी नहीं होगा कि दुनिया की सबसे अच्छी सैन्य टुकड़ी कीव के पास आकर पूरी तरह ख़त्म हो जायेगी। गौरेतलब है भारत और चीन की सेनाएँ भी इस ख़ास रूसी सैन्य टुकड़ी से सैन्य प्रशिक्षण लेती रही हैं। इस मामले में पूरी यकीन के साथ कह सकता हूँ कि तानाशाह पुतिन के पास प्लान- बी था ही नहीं। वह आत्मविश्वास में इतना ज़्यादा चूर था कि अपनी सबसे अच्छी प्रशिक्षित सैन्य टुकड़ी को गोस्तेमल एयरपोर्ट के पास तबाह कर दिया। सबसे आधुनिक जेवलिन और NLAW जैसे एंटी टैंक मिसाइलों को कंधे पर लादकर घात लगाकर बैठे बहादुर यूक्रेनी सैनिकों ने अपने जज़्बों का बेमिशाल परिचय दिया और रूस के बड़े आर्मर कॉलम को कुछ ही मिनटों में क़ब्रिस्तान में तब्दील कर दिया।
मैं 2015 ईस्वी से यूक्रेन में रह रहा हूँ और किसी भी भारतीय सलाहकार से ज़्यादा जानकारी रखता हूँ। मैं पूर्वी यूक्रेन में मिश्रित रूसी-यूक्रेनी नस्ल के यूक्रेनी परिवार के साथ रह रहा हूँ। मेरी पत्नी भी यूक्रेनी है और इनके पूर्वज भी रूसी हैं। यूक्रेन में रह रहे ज़्यादातर रूसी नस्ल के लोग अपने आपको मानसिक तौर पर क्रेमलिन और मोस्को के लोगों के साथ सहज महसूस नहीं करते। मोस्को के लोग हमेशा यूक्रेन और रूस के दूर-दराज़ में बसे लोगों को दोयम दर्जे के इंसान समझते हैं।
रूस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इतने बड़े देश में लोकतंत्र आने के कुछ सालों के बाद पुतिन भी लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता में आया था, किंतु कुछ सालों के बाद ही उसने अपने कुछ ख़ास लोगों के साथ लोकतंत्र का गला घोंट दिया। ज़्यादातर अच्छे ईमानदार नेताओं को ज़हर देकर मरवा दिया। 2015 ईस्वी में रूस के लोकप्रिय विपक्षी नेता नेम्त्सोव को मोस्को में दिन-दहाड़े शूट करवा दिया। एक विपक्षी नेता अलेक्सेई नेवेल्नी को कई सालों से जेल में बंद कर रखा है।
रूस में आज भी वही माफ़िया राज है, जहाँ कुछ अरबपति पुतिन को साथ देते हैं और वही सब वहाँ के साँसद ड्यूमा में बैठते हैं। वही कुछ ख़ास लोग पुतिन के साथ मिलकर देश-विदेश की नीति और रणनीति बनाते हैं। पश्चिम के देशों से तुलना करें तो हम पायेंगे कि रूस में प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। वहाँ गैस और तेल का अकूत खज़ाना है, फिर भी रूस में ज़्यादातर लोग महाग़रीब हैं। रूस के अधिकतर इलाकों में अभी भी गैस के पाइपलाइन तक नहीं है, जबकि हमें पता है कि रूस पूरी दुनिया और ख़ासकर पूरे यूरोप में गैस और तेल बेचता है।
यूक्रेन में मैंने देखा है कि कई सालों से रूस ने यहाँ के सिस्टम को खोखला बना रखा है। यहाँ के लोग किसी भी हाल में माफ़ियाओं और रूस के चंगुल से आज़ाद होना चाहते हैं। इसके लिए वे लाखों क़ुरबानी देने को तैयार हैं और आज वे क़ुरबानी दे भी रहे हैं।
रूस के आसपास के लोग और देश रूस के साथ जुड़कर नहीं रहना चाहते हैं। इसके लिए रूस और ख़ासकर क्रेमलिन में बैठ रूस के रणनीतिकार ही ज़िम्मेवार हैं। यूक्रेन के लोगों को अच्छी तरह पता है कि रूस खुद अपने लोगों को अच्छी ज़िन्दगी नहीं दे सकता तो वे यूक्रेन के लिए क्या करेंगे। कई सालों से यूक्रेन के लोग रूस के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बहुत कम पैसे पर मज़दूरी और काम करते रहे हैं, किंतु उनकी ज़िंदगी में कोई सुधार नहीं हुआ। ज़ार से लेकर तानाशाह स्टालिन तक यहाँ के लोगों ज़बरन गुलाम बनाकर साइबेरिया भेजते रहे और उनसे मुफ्त में वहाँ काम करवाते रहे, फिर वे यूक्रेनी राष्ट्रवाद को कुचल नहीं सके तो शायद ही तानशाह पुतिन यूक्रेनी आत्मा को मात देकर यूक्रेनी राष्ट्रवाद को कुचल सकता है।
रूस का हमला यूक्रेन पर अचानक हुआ। जैसे कि चीन ने 1962 ईस्वी में भारत पर अचानक हमला किया था। कोई हमलावर मुल्क पूरी तैयारी के साथ ही अपने पड़ोसी मुल्क पर हमला करता है, ताकि पड़ोसी देश को संभलने का ज़रा-सा भी मौक़ा नहीं मिले और कुछ ही दिनों में जीत सके। उसी तरह पुतिन पिछले कुछ महीनों से यूक्रेन सहित पूरी दुनिया को यही दलील देता रहा कि हमारे सैनिक यूक्रेन और बेलारूस की सीमाओं पर सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। वे सैन्य प्रशिक्षण के लिए वहाँ जमा हुए हैं। यूक्रेन पर हमला करने का कोई प्लान नहीं है, किंतु 24 फ़रवरी के सुबह तड़के इस मिथक पर भी बहुत बड़ा धक्का लगा।
रूस के सैनिक कुछ ही घंटों में कीव ओब्लास्ट के छोटे शहरों में घुस आये। रूस के सैनिक बहुत आसानी से यूक्रेन की सीमा में ज़रूर दाख़िल हुई और कुछ इलाक़ों में उसे बढ़त भी मिली, किंतु युद्ध के पहले दिन से रूस को भयंकर नुकसान होना शुरू हो गया। यूक्रेन के सैनिकों के मुक़ाबले में रूस के सैनिक की मौत दस गुना ज़्यादा थी। इसका सबसे बड़ा कारण यही रहा कि जेवलिन और NLAW एंटी टैंक मिसाइल से निकले गोले से टैंकों में बैठे रूसी सैनिकों को यह पता लगाना बहुत ज़्यादा मुश्किल होता था कि एंटी टैंक मिसाइल के ये गोले किधर से आ रहे हैं। इन एंटी टैंक मिसाइलों की सबसे बड़ी तकनिकी ख़ूबी यही है कि इनके गोले सीधे टैंकों तक नहीं पहुँचते हैं। दूसरी ख़ूबी यह है कि इनके गोले उछल-उछलकर टैंकों तक पहुँचते हैं। तीसरी ख़ूबी यह है कि टैंक में मौजूद इंधन और आग को सूँघ-सूँघकर उस दिशा में बड़ी तेज़ गति से जाकर उस ईंजन के पास जाकर विस्फोट हो जाते हैं।
कहने का आशय यही है कि जेवलिन और NLAW के निशाने 99% से भी ज़्यादा सटीक रहे। कीव, सूमी, चेर्निहिव और ख़ारकीव के पास रूस की इतनी बड़ी हार में इन एंटी टैंक मिसाइलों का बहुत ही अहम किरदार है।
युद्ध के शुरूआती दिनों में ज़्यादाटार वामपंथी और दक्षिणपंथी मीडियाओं ने रूस का जमकर साथ दिया। एक लोकतांत्रिक यूक्रेन के ख़िलाफ़ बहुत ज़्यादा भ्रामक ख़बर दिखाये। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि सोवियत संघ और भारत का संबंध बहुत मधुर रहा। भारत 1971 ईस्वी के भारत-पाक युद्ध के समय ही सोवियत संघ से सबसे बड़े हथियार निर्यातक देश के रूप में उभरा। उसके बाद अभी तक भारत रूस से सबसे ज़्यादा हथियार ख़रीदते रहे हैं। इधर कुछ सालों में भारत इज़राइल और अमेरिका सहित पश्चिम के देशों से हथियार ख़रीदने लगा। कारगिल युद्ध के समय ही हमें पश्चिम के हथियारों की कमी बहुत खली। रूस का हथियार समय के साथ पिछड़ता चला गया।
इधर कई सालों से रूस गैस और तेल के अकूत भंडार होने के बावजूद अपने देश में वो तरक्की नहीं कर सका, जो उसे करना चाहिए था। ज़ाहिर सी बात है कि उन्नत तकनीक के लिए भारत को अमेरिका और यूरोप के देशों की तरफ़ रुख करना पड़ा। यूक्रेन में रूस के क़दम लड़खड़ाते ही भारत की मीडिया के सुर में भी थोड़ी-बहत तब्दीली आयी है। समय के साथ और ज़्यादा तब्दीली आयेगी।
कीव के युद्ध हारने के बाद रूस ने खेरसोन को बहुत बड़ी जीत के तौर पर दिखलाया। पुतिन के हाथ में एक ऐसी जीत आयी, जिसपर रूस की जनता भी आधे-अधूरे मन से ख़ुश ज़रूर हुई। एक तो खेरसोन दक्षिण यूक्रेन में काला सागर और द्नेप्रो नदी के किनारे बसे होने के कारण यूक्रेन के सबसे धनी इलाक़ों में एक है। यहीं से एक नहर भी क्रीमिया चली जाती है, जो पानी की आपूर्ति के लिए भी क्रीमिया प्रायदीप का एकमात्र साधन है। खेरसोन शहर खेरसोन राज्य की राजधानी भी है।
पुतिन की सेना युद्ध के शुरूआती दिनों में ही एक हफ़्ते की लड़ाई के बाद खेरसोन शहर पर काबिज़ हो गयी थी। बाद में जब दक्षिण यूक्रेन में भी यूक्रेन की सेना की स्थिति मज़बूत हुई और रूस की सेना को निकोलाय शहर में घुसने से रोक दिया तो पुतिन ने कीव के पास से अपनी सबसे पेशेवर सेना को खेरसोन की तरफ़ ही रुख करवाया। किंतु शुरुआत के दिनों से पुतिन को खेरसोन में अपने पाँव जमाने के लिए एड़ी-चोटी के पसीने एक करने पड़े। फिर भी वह खेरसोन शहर पर नौ महीने से अधिक टिक नहीं सका।
आख़िरकार 11 नवंबर 2022 ईस्वी को यूक्रेन की बहादुर सैनिकों ने पुतिन के सैनिकों से खेरसोन शहर से खदेड़ दिया। इस तरह से पुतिन को अभी तक यूक्रेन कोई ख़ास जीत हासिल नहीं हो पायी है। समय के साथ पुतिन के सामने कई संकट आने वाले हैं।
राकेश शंकर भारती, यूक्रेन।
मोबाइल नंबरः 00 380 99 112 6041,
Email: rsbharti.jnu@gmail.com

3 टिप्पणी

  1. राकेश जी आपने यूक्रेन, रूस युद्ध पर विस्तार से
    लेख दिया है पढ़कर मन विचलित हो गया
    मानवता किस ओर जा रही है समझ नहीं आता
    जब इंसान ही नहीं होंगे तो कौन किस पर राज करेगा ।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

    • गधा लेखक है। न भाषा सही, न ज्ञान है। बस युक्रेनी नाज़ियों की डर से उलूल – ज़ुलुल लिखता है। अमेरिकी दोस्ती युक्रेन को महंगी पड़ेगी। ये नाज़ी लेखक नही लिखता कि कैसे वहाँ की आर्मी का Azov बटालियन रूसी भाषी युक्रेनी नागरिकों की हत्या करता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 15,000 से ज्यादा रूसी भाषी युक्रेनी नागरिकों की हत्या युक्रेन की नाज़ी सेना ने दोनबास (दनेस्क और लुगाँस्क) में की है। रूस वहाँ खुल कर हमला नहीं कर सकता क्योंकि युक्रेन में रूसी भाषी नागरिक मारे जा सकते हैं, क्योंकि युक्रेनी सेना उनका ढाल के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। लेकिन एक दिन सत्य विजयी होगा।

  2. ये गधा लेखक है। न भाषा सही, न ज्ञान है। बस युक्रेनी नाज़ियों की डर से उलूल – ज़ुलुल लिखता है। अमेरिकी दोस्ती युक्रेन को महंगी पड़ेगी। ये नाज़ी लेखक नही लिखता कि कैसे वहाँ की आर्मी का Azov बटालियन रूसी भाषी युक्रेनी नागरिकों की हत्या करता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 15,000 से ज्यादा रूसी भाषी युक्रेनी नागरिकों की हत्या युक्रेन की नाज़ी सेना ने दोनबास (दनेस्क और लुगाँस्क) में की है। रूस वहाँ खुल कर हमला नहीं कर सकता क्योंकि युक्रेन में रूसी भाषी नागरिक मारे जा सकते हैं, क्योंकि युक्रेनी सेना उनका ढाल के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। लेकिन एक दिन सत्य विजयी होगा।

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