हमारे हिसाब से 2024 के लोकसभा चुनावों के लिये भारतीय मतदाताओं ने कोई इशारा नहीं दिया है। एक राज्य में कांग्रेस, दूसरे में भाजपा और दिल्ली नगर निगम के लिये आम आदमी पार्टी को विजयी बना कर भारतीय मतदाता ने संदेश दिया है कि उन्हे मूर्ख न समझा जाए। वे स्थितियों के अनुसार निर्णय लेते हैं। वैसे भी भारत बहुरंगी देश है। यहां भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लोग अलग अलग व्यवहार करते हैं। सभी राज्यों के निवासी अपने हित का ध्यान रखते हुए मतदान करते हैं। मतदाताओं ने तीनों राजनीतिक दलों को समझा दिया है कि प्रत्येक दल को मतदाताओं के हित के लिये नीतियां बनानी होंगी, तभी वे आगामी चुनावों में हरी झण्डी देख पाएंगे।

भारत में लगभग एक महीने तक चुनावों की गहमागहमी चलती रही। दिल्ली नगर निगम, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव थे और उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर उपचुनाव। 
दिल्ली नगर निगम में पिछले पंद्रह वर्षों से भारतीय जनता पार्टी का राज चल रहा था। हिमाचल में 1985 से एक बार कांग्रेस और एक बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती रही है। वही रिवाज इन चुनावों में भी बरक़रार रहा। गुजरात में पिछले 27 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी का शासन चल रहा था। चुनावों को लेकर अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग दावे थे।
इन चुनावों में मुख्य दल थे भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक खेल अच्छी तरह से खेलने आते हैं। केजरीवाल की आकांक्षाएं बहुत ऊंची हैं। उसे किसी भी तरह का वक्तव्य देने में चुटकी भर भी हिचकिचाहट नहीं होती, “ओ जी, गुजरात की जनता बदलाव चाहती है जी। उसने तय कर लिया है जी कि भारतीय जनता पार्टी पर झाड़ू फिराना है जी। गुजरात में आम आदमी पार्टी की सरकार आ रही है जी।” 
अरविंद केजरीवाल को अपने आप को ख़बरों में रखना आता है। उसे मालूम था कि वाराणसी में वह कभी भी नरेन्द्र मोदी को हरा नहीं पाएगा मगर उसने भारत की राजनीति को मोदी बनाम राहुल से बदल कर मोदी बनाम केजरीवाल करने की मुहिम शुरू कर ली थी। उसने मुफ़्त पानी और बिजली का जो सिलसिला शुरू किया तो दिल्ली वालों ने उसे लपक लिया।
मगर गोवा, हिमाचल, उत्तराखण्ड और गुजरात आदि में केजरीवाल की दाल नहीं गल सकी। हिमाचल में आम आदमी पार्टी ने 67 प्रत्याशी खड़े किये थे और उन तमाम प्रत्य़ाशियों की ज़मानत ज़ब्त हो गयी। हिमाचल प्रदेश में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी केवल 1.10 प्रतिशत मत हासिल हुए और वह अपना खाता तक नहीं खोल पाई। कई विधान सभा क्षेत्रों में तो आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को ‘नोटा’ से भी कम वोट मिले।  
गुजरात में भी हाल उतना ही बुरा था। गुजरात में आम आदमी पार्टी सिर्फ़ 5 सीटों पर चुनाव जीत सकीयहां पार्टी के 181 में से 128 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। यहां तक कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पर्ची में जिन तीन उम्मीदवारों के नामों को लिखकर बड़ी जीत का दावा किया, वे भी चुनाव हार गए। इनमें गुजरात में आम आदमी पार्टी के सीएम कैंडिडेट इसुदान गढ़वी भी शामिल हैं। इसके अलावा गुजरात आप प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया को भी बड़े अंतर से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। आप नेता अल्पेश कथिरिया की जीत का दावा भी केजरीवाल ने किया था, वे भी चुनाव हार गए।
गुजरात के चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिये भी किसी दुःस्वप्न से कम नहीं साबित हुए। गुजरात में अपने अब तक के सबसे बुरे प्रदर्शन में कांग्रेस केवल 17 सीटें ही जीत सकी। उनके 44 प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त हो गयी। जहां बीजेपी ने 156 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस के 1985 के प्रदर्शन का रिकॉर्ड तोड़ा, तो वहीं कांग्रेस 62 साल के इतिहास में सबसे कम स्तर पर पहुंच गई। कांग्रेस का हाल दिल्ली नगरपालिका चुनावों में भी ऐसा ही रहा है। पार्टी केवल 9 वार्ड ही जीत पाई जबकि 2017 में कांग्रेस पार्टी 31 वार्डों में विजयी रही थी। 
भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीद लगा रखी थी कि हिमाचल प्रदेश में रिवाज बदल देंगे… राज नहीं बदलने देंगे। मगर हिमाचल वासियों ने अपनी पुराऩी आदत बनाए रखी। वे एक बार कांग्रेस को मौका देते हैं तो दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी को। इस बार में उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के गृह-राज्य में ही भाजपा को सत्ताच्युत कर दिया। कांग्रेस ने इस बार 40 सीटों पर कब्ज़ा किया जबकि भाजपा को केवल 25 सीटें ही मिल पाईं। 
हिमाचल में कांग्रेस ने बहुमत तो हासिल कर लिया है लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर घमासान मचा हुआ है। एक कुर्सी के लिए अनेक दावेदार हैं और सब अपनी अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए तमाम दांव आजमा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने खुले रूप में अपने परिवार का दावा पेश कर दिया है। 
मंडी लोकसभा सीट से सांसद प्रतिभा सिंह ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन अपने पति वीरभद्र सिंह की विरासत के तौर वो सीएम पद का दावा कर रही हैं क्योंकि कांग्रेस ने वीरभद्र के चेहरे का इस्तेमाल पूरे प्रचार अभियान में किया था। प्रतिभा सिंह को ज्यादातर विधायकों का समर्थन प्राप्त है।
हैरानी की बात तो यह है कि राज्यपाल को विधायकों की सूची लेकर भावी मुख्यमंत्री ने नहीं बल्कि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला ने राज्यपाल आर.वी. अरलेकर से मुलाकात की। उन्होंने राज्यपाल को पार्टी के विजयी विधायकों की सूची सौंपते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया है। इस दौरान उनके साथ पार्टी के दोनों ऑब्ज़र्वर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा भी मौजूद थे।
कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिये घमासान कोई नई बात नहीं है। पार्टी ने गोवा से कोई सबक नहीं सीखा। मगर फिर भी इतना तो है कि अपने नवनिर्वाचित विधायकों को ऑपरेशन लोटस से बचाने के लिये उन पर सख़्त नज़र रखी जा रही है। लगता है कि किसी फ़ॉर्मूले पर सहमति बन रही है। 
ऐसा सुनने को मिल रहा है कि पार्टी हाईकमान ने सुखविंदर सिंह सुक्खू का नाम लगभग तय कर लिया है। हालांकि, सुक्खू के अलावा मुकेश अग्निहोत्री, राजेंद्र राणा की भी चर्चा हो रही है। प्रतिभा सिंह की जगह उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को कैबिनेट में बड़ी ज़िम्मेदारी दी जा सकती है। हाईकमान को कांग्रेस के पर्यवेक्षकों ने विवाद खत्म करने के लिए मुख्यमंत्री के साथ एक उप-मुख्यमंत्री बनाने की भी सलाह दी है। अगर हाईकमान इसपर सहमति दे देता है तो प्रतिभा सिंह की जगह किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, जबकि विक्रमादित्य सिंह को उप-मुख्यमंत्री या गृहमंत्री की जिम्मेदारी दी जा सकती है। कांग्रेस के लिये ‘राह कठिन है डगर राजनीति की!’
कांग्रेस आला कमान को इस विषय में कुछ कठिन निर्णय लेने होंगे के उनके दल की स्थिति पंजाब, राजस्थान और कर्नाटक जैसी न होने पाए।
भारतीय जनता पार्टी के लिये ख़तरे की घंटी ज़रूर बज रही है क्योंकि जहां एक तरफ़ उन्हें गुजरात में रिकॉर्ड बहुमत मिला है वहीं दिल्ली नगर निगम एवं हिमाचल में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है। हिमाचल में लगभग 15 के करीब भाजपा के बाग़ी विधायकों ने कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई है। उन्हें सोचना होगा कि आख़िर ऐसा क्यों है कि नरेन्द्र मोदी का जादू लोकसभा और गुजरात के चुनावों के अलावा कहीं क्यों नहीं चल पाता। 
आम आदमी पार्टी ने अब तक शायद राजनीति में ऐसा रिकॉर्ड बना लिया है जो शायद ही कोई तोड़ पाए। राष्ट्रीय स्तर का दल बनने के चक्कर में उन्होंने जल्दबाज़ी में हर राज्य में प्रत्याशी खड़े करने शुरू कर दिये। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा, हिमाचल और गुजरात जैसे राज्यों में उनके जितने प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त ही है इतनी शायद भूतकाल में कभी किसी दल के साथ नहीं हुआ। 
गुजरात के चुनावों में एक काग़ज़ी शेर की पोल और खुल गयी। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने 13 प्रत्याशी खड़े किये थे। उनमें से अधिकांश की ज़मानत ज़ब्त हो गयी और उनके दल को केवल 0.29 फीसदी वोट मिले। यह कहना कि 0.29 प्रतिशत वोट से उनके दल ने कांग्रेस के वोट शेयर में सेंधमारी की, ज़्यादती होगी। लगता है कि असदुद्दीन ओवैसी को टीवी चैनलों ने महत्व दे-दे कर उनका कद बढ़ा दिया है। मुस्लिम मतदाताओं के भड़काने के अलावा वे कोई बयान नहीं देते। शायद इस चुनावी नतीजे से उन्हें कोई सबक मिले। 
हमारे हिसाब से 2024 के लोकसभा चुनावों के लिये भारतीय मतदाताओं ने कोई इशारा नहीं दिया है। एक राज्य में कांग्रेस, दूसरे में भाजपा और दिल्ली नगर निगम के लिये आम आदमी पार्टी को विजयी बना कर भारतीय मतदाता ने संदेश दिया है कि उन्हे मूर्ख न समझा जाए। वे स्थितियों के अनुसार निर्णय लेते हैं। वैसे भी भारत बहुरंगी देश है। यहां भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के लोग अलग अलग व्यवहार करते हैं। सभी राज्यों के निवासी अपने हित का ध्यान रखते हुए मतदान करते हैं। मतदाताओं ने तीनों राजनीतिक दलों को समझा दिया है कि प्रत्येक दल को मतदाताओं के हित के लिये नीतियां बनानी होंगी, तभी वे आगामी चुनावों में हरी झण्डी देख पाएंगे।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

27 टिप्पणी

  1. एक हद तक एकदम सही आंकलन है आपका ये अलग बात है कि ये तीनों दल इसे अपनी जीत कहेंगे या कहें कि कह रहा है

  2. चुनावी नतीजों का सटीक विश्लेषणात्मक आकलन। यह पब्लिक है सब जानती है। अधिक समय तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता।

  3. संपादक महोदय, मानना पड़ेगा कि आप बहुत गहराई से अपनी जन्मभूमि भारत से जुड़े हैं। चुनावों का इतना सही आकलन और विश्लेषण आपने किया है कि आनंद आ गया। ईश्वर से प्रार्थना है कि भारतीय मतदाता इतना समझदार हो सके कि अपना और देश/भविष्य का भला बुरा सोच कर ही मतदान करे न कि एक बोतल मदिरा और एक किलो मांस के लिए! भारत को जागरूक /स्वस्थ मतदाता और स्वच्छ चुनाव के लिए अनेक शुभकामनाएं ,आशा है सभी पाठक मेरे साथ होंगे!

  4. वर्तमान चुनावी नतीजे आने वाले समय की राजनीति और रणनीति निर्धारित कर सकते हैं ।
    अब सभी दलों का मुकाबला युवा और शिक्षित पीढ़ी की मनोभावनाओं के साथ होगा ।
    सार्थक विश्लेषण से पूर्ण सम्पादकीय है
    नमन ।
    Dr Prabha mishra

  5. हर बार की तरह इस बार भी गहरे विश्लेषण के बाद लिखा गया उत्तम संपादकीय, धन्यवाद ।
    काश भारत के मतदाता उतने समझदार हों जितना आपने ने बताया। वैसे शहर के कुछ पढ़े लिखे युवा मतदाताओं को देख कर मैं आशान्वित नहीं हो पाती। मतदाता विचार, तर्क पर नहीं, ‘हवा किसकी है’, पर मतदान करते हैं। जिसने हवा बना ली जीत उसकी।
    लेकिन आपका कथन सत्य हो और 2024 में मतदाता सही दल को वोट देकर स्पष्ट बहुमत की सरकार बना सके, बस “झूलती हुई” संसद न बने यही कामना है।

  6. हर बार आपकी सम्पादकीय “घागर में सागर भरने जैसी रहती है।यकीनन जनता मूर्ख नही है और सोच समझ कर ही अपना मत देती हैं और देगी।

  7. आपकी कलम ने भारतीय राजनीति का सही विश्लेषण किया है। दिल्ली, हिमांचल तथा गुजरात में अलग -अलग पार्टियों को बहुमत देकर जनता ने न केवल अपनी मंशा बता दी वरन EVM को भी प्रताड़ित होने से बचा लिया।

  8. अलग अलग राज्यो में पार्टियों का अपना सियासी माॅडल है। लेकिन तीन राज्यो के चुनाव से एक बात साफ हो गई, कि गुजरात माॅडल सिर्फ गुजरात के लिए है,अन्य राज्यो के लिए नहीं। दिल्ली माॅडल दिल्ली के लिए है। अन्य राज्यो के लिए नहीं। फिर भी तीन चुनाव के परिणाम से 2024 के चुनाव का ट्रेड क्या हो सकता है,इसका आकलन होने लगा है।

  9. सर आपकी यही खूबी मुझे हर बार आपका लेख पढ़ने पर विवश कर देती है कि आप सात समुंदर पार बैठने पर भी अपने देश की हर एक नीति पर पैनी नजर रखते हैं। आपने सही कहा कि अब भारत की जनता को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता शायद इसका एक कारण यह भी है की जनता अब किसी व्यक्ति विशेष को वोट ना देकर एक अच्छे कैंडिडेट को वोट कर रही है। इसी वजह से नाटो के वोटों में भी बढ़ोतरी हो रही है।

    • अंजु आप भी निरंतर पुरवाई के संपादकीय को पढ़ती हैं उस पर सार्थक टिप्पणी करती हैं। पुरवाई के साथ स्नेह बनाए रखें।

  10. गहन विश्लेषण एवं सुंदर संपादकीय।
    इस चुनाव में ऐसा लगा जैसे कांग्रेस को चुनाव जीतने की राजनीति से मन भर गया है। अब वह चुनाव जीतना नहीं चाहती। भारत जोड़ो यात्रा चुनावी यात्रा नहीं है। राज्यों में चुनाव प्रचार कम। शीर्ष नेताओं की शांति। कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन नहीं। लोग अपनी इच्छा से वोट दे दे तो ठीक वरना तुम्हारा देश है तुम जिसे वोट दो। जिसे मर्जी जिताओ। विपक्ष की भूमिका भी जोर शोर से नहीं। बस औपचारिकता। ऐसा लगता है जैसे कोई पार्टी या लोग कांग्रेस को क्या मिटायेंगे। उससे पहले कांग्रेस स्वयं को मिटा लेगी। हाल के वर्षों में जिस तरह लोगों ने गाँधी और नेहरु तथा कांग्रेस का जितना उपहास उड़ाया है। लगता है कांग्रेस सचमुच निराश हो गई हो। लड़े और मरें तो किसके लिए? इस देश को कांग्रेस अब अच्छी नहीं लगती। विजेता पार्टियाँ देश को कितना आगे ले जाएगी या कितना पीछे यह आनेवाला समय बताएगा। फिलहाल कांग्रेस की दिलचस्पी चुनावी राजनीति से समाप्ति की ओर है। परिवार को पद का मोह नहीं रहा। नेता दुसरी पार्टियों में चले जाएंगे। और कांग्रेस शायद इतिहास की पुस्तकों में।

    • भाई राजनन्दन सिंह जी आपने कांग्रेस पर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। धन्यवाद।

  11. बहुत सुंदर, सारगर्भित संपादकीय लिखा है आपने,, भारतीय परिवेश में चुनावी आकलन करना और जनता का रूख पहचानना आसान नहीं होता, परंतु आपकी सूक्ष्म दृष्टि ने इतना सटीक आकलन करके अपनी बात रखी है, जिसके लिए प्रशंसा के शब्द नहीं,, वैसे भी चुनावों में वोट देने के लिए हमारे पास कोई सही मुद्दा नहीं होता है,बस अनेक उलझे बुरे व्यक्तित्वों में से एक कम बुरे व्यक्तित्व को चुनना होता है,,पर इस बार सचमुच जनता ने सही का साथ देने की‌ कोशिश की है, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं भाई

  12. बुरे व्यक्तियों मेंं से कम बुरे व्यक्ति को चुनना है… एकदम सटीक टिप्पणी पद्मा। धन्यवाद।

  13. हर बार की भाँति अपने देश से जुड़ा सटीक चित्र। सब अपने स्वार्थ का सोचते हैं। राजनीति अपने में इतना बड़ा
    खेल है जो न कभी किसी को स्पष्ट हुआ, न होगा।
    गहन अध्ययन करके लिखा गया संपादकीय!
    साधुवाद आपको

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