• पीयूष द्विवेदी

वर्ष 2017 के आखिर में चर्चित लेखक रत्नेश्वर सिंह का पहला उपन्यास ‘रेखना मेरी जान’ आया था। अपने इस पहले ही उपन्यास में रत्नेश्वर ने न केवल ग्लोबल वार्मिग जैसा एक नया व गंभीर विषय उठाया बल्कि भाषा से लेकर कहानी की बुनावट तक उसको प्रस्तुत भी अत्यंत प्रभावी अंदाज में किया। हालांकि इस उपन्यास को जितनी चर्चा मिलनी चाहिए थी, वो अभी मिल नहीं पाई है। मगर इसके विषय को देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि जैसे-जैसे दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के खतरे के प्रति जागरूक होगी, ये उपन्यास प्रासंगिक होता जाएगा।
हालांकि यहाँ हम बात 2011 में आए रत्नेश्वर सिंह के कहानी-संग्रह ‘लेफ्टिनेंट हडसन’ की करने जा रहे हैं, लेकिन ‘रेखना मेरी जान’ की चर्चा इसलिए करनी पड़ी क्योंकि इस उपन्यास का बीज इसी कहानी-संग्रह में मौजूद है। संग्रह की कहानी ‘रेखना’ का ही विस्तार ‘रेखना मेरी जान’ उपन्यास के रूप में किया गया है। इसके अलावा संग्रह की सभी कहानियों में रत्नेश्वर के कथा-कौशल के जो-जो प्रभावी तत्व रहे हैं, उन सबका सुविकसित रूप ही ‘रेखना मेरी जान’ में देखने को मिलता है।
‘लेफ्टिनेंट हडसन’ में कुल छः कहानियाँ हैं। लगभग प्रत्येक कहानी में विषय और प्रस्तुति के स्तर पर नयापन दिखाई देता है। हिंदी में वैज्ञानिक विषयों पर केन्द्रित गंभीर कथा-साहित्य छिटपुट ही देखने को मिलता है। उसमें भी जरूरी वैज्ञानिक तथ्यों का कथानक में समावेश हो, ऐसा लेखन नहीं मिलता। रत्नेश्वर की कहानियाँ इस मामले में विशिष्ट हैं। इनमें न केवल जटिल वैज्ञानिक विषयों को उठाया गया है बल्कि उनकी प्रस्तुति को यथासंभव तथ्यपरक रखने की भी कोशिश की गयी है। ‘निर्मनु’ एक ऐसी ही कहानी है। जीन के माध्यम से बिना प्रजनन मानव द्वारा एक मानव के निर्माण की कहानी। इसमें जहां-तहां आने वाले वैज्ञानिक तथ्य, विषय पर लेखक के गहन शोध का परिचय देते हैं। एक अंश देखिये, ‘..जर्मन बोटलोग ने गेहूं के शंकर बीज का निर्माण किया। फिर धान के ताईचुड नेटिव किस्म का निर्माण हुआ। पर निर्बीज के प्रयोग ने मूल बीज को समाप्त करने की कोशिश की। जीन बैंक बना दिया गया। हाँ, बीज उसमें सुरक्षित-संरक्षित जरूर होंगे, पर वैसे ही जैसे हमें रति से वंचित कर दिया जाए और जीन बैंक में हमारे बीज सुरक्षित कर दिए जाएं जहां हमारी जगह निर्मनु मुख्य भूमिका में हो, और यह दुनिया उसीकी हो जाए।’ इस कहानी में निर्मनु जैसे बड़े वैज्ञानिक निर्माणों के परिणाम को लेकर आशंका भी व्यक्त की गयी है जो इन पंक्तियों में भी स्पष्ट है। इसके अलावा ‘रेखना’ और संग्रह की शीर्षक कहानी ‘लेफ्टिनेंट हडसन’ में भी लेखक की गंभीर वैज्ञानिक दृष्टि व शोध का दर्शन हमें होता है।
लेफ्टिनेंट हडसन मजदूरों के जीवन पर आधारित कहानी है, जो कि ऐसा विषय है, जिसपर हिंदी में खूब कलम चलाई गयी है, परन्तु इस कहानी का इतिहास से लेकर वर्तमान और विज्ञान तक विस्तृत फलक इसे विशिष्टता प्रदान करता है। मजदूरों की त्रासदी पर यह एक अनूठी कहानी है।
लेखक ने विज्ञान के प्रसंग में तथ्यपरकता का दामन यहाँ भी नहीं छोड़ा है। कार्बन डेटिंग प्रचलित चीज है, जिसकी चर्चा साहित्य में भी यदा-कदा दिखती है, लेकिन रत्नेश्वर इसकी प्रक्रिया को भी कहानी में पिरोकर सामने लाते हैं, ‘अलग-अलग कंकालों की कार्बन डेटिंग प्रक्रिया से जी. एम. काउंटर में कोबाल्ट डालकर रेडिएशन का पता लगाया गया। डॉ. भल्ला और डॉ. सेनगुप्ता ने सी आइसोटोप पर रेडियो एक्टिव किया और फिर डॉ भल्ला के मुंह से निकला – लगभग 1856 से 1878 के बीच के ये कंकाल हैं।’ इस कहानी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इतिहास और विज्ञान जैसे अलग-अलग और जटिल सिरे होने के बावजूद लेखक ने  ‘मजदूर त्रासदी’ के केन्द्रीय विषय में सभी सिरों को ऐसी कुशलता से समेटा है कि कहानी कहीं बोझिल या उपदेशक का रूप ग्रहण नहीं करती और उसकी रोचकता बनी रहती है।
विज्ञान के अलावा इतिहास और उसमें भी भारतीय प्राचीन ग्रंथों पर भी लेखक ने बात करने की कोशिश की है। ‘उफ, ये आवाजें’ कहानी है तो स्त्रियों की दुर्दशा पर केन्द्रित, परन्तु इसकी प्रस्तुति में लेखक ने साहसिक प्रयोग किए हैं। भारतीय वांग्मय में जहां-तहां रेखांकित स्त्री की के प्रति अत्याचारों के पक्ष को रेखांकित करते हुए उसका वर्तमान स्त्री-दशा से साम्य स्थापित करने की लेखक ने भरसक कोशिश की है। हालांकि कथ्य की जटिलता और भाषा-शैली के स्तर पर कुछ अधिक ही प्रयोग के कारण यह कहानी पाठ की दृष्टि से जरा दुरूह हो गयी है। परन्तु, फिर भी इसमें लेखक ने प्रयोग का जो साहस दिखाया है, वो सराहनीय है।
इसके अलावा संग्रह की एक उल्लेखनीय कहानी है – मदर लव। सामाजिक ऊंच-नीच और जाति-प्रथा पर केन्द्रित यह इस कहानी की ख़ास बात यह है कि इसमें लेखक ने कथित कुलीन जातियों के कथित निम्न जातियों के प्रति भेदभाव को तो दर्शाया ही है, लेकिन साथ ही एक अलग पक्ष भी रखा है जिसपर कम ही बात होती है कि निम्न जातियों में भी कुलीनों को लेकर भेदभाव का विचार है। जब सवर्ण रामायण चमार ललिता से विवाह का प्रस्ताव रखता है, तो दलितों के बीच से स्वागत के साथ-साथ विरोध की भी आवाजें निकलती हैं। कहा जाता है, ‘हम लोग चमार हैं तो क्या हुआ?हम लोगों की भी इज्जत है। वो ब्राह्मण हैं तो क्या हमारी बेटियों को उठाकर ले जाएंगे?’ सन्देश साफ़ है कि भेदभाव और अलगाव को बढ़ावा देने वाले तत्व सिर्फ कथित कुलीन जातियों में ही नहीं, निम्न जातियों में भी हैं।
विषय के अलावा भाषा को लेकर भी लेखक ने खुलकर प्रयोग किए हैं। ‘रेखना मेरी जान’ में जो नए तरह के शब्द मिलते हैं, उसका एक सीमित प्रभाव इन कहानियों में दिखता है। कुल मिलाकर आज से दशक भर पूर्व प्रकाशित ये कहानियां अपने में जिस नवीनता और ताजगी का समावेश किए हुए हैं, वो आज के समय से भी आगे की चीज है। दुर्भाग्यवश वर्तमान दौर में इस तरह का साहसिक लेखन हिंदी साहित्य में कहीं नहीं दिखता, जबकि साहित्य की समृद्धि के लिए इस तरह का लेखन बेहद जरूरी है।
पुस्तक – लेफ्टिनेंट हडसन (कहानी-संग्रह)
लेखक – रत्नेश्वर सिंह
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन
मूल्य – 150 रुपये
उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला स्थित ग्राम सजांव में जन्मे पीयूष कुमार दुबे हिंदी के युवा लेखक एवं समीक्षक हैं। दैनिक जागरण, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, पाञ्चजन्य, योजना, नया ज्ञानोदय आदि देश के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक व साहित्यिक विषयों पर इनके पांच सौ से अधिक आलेख और पचास से अधिक पुस्तक समीक्षाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। पुरवाई ई-पत्रिका से संपादक मंडल सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं। सम्मान : हिंदी की अग्रणी वेबसाइट प्रवक्ता डॉट कॉम द्वारा 'अटल पत्रकारिता सम्मान' तथा भारतीय राष्ट्रीय साहित्य उत्थान समिति द्वारा श्रेष्ठ लेखन के लिए 'शंखनाद सम्मान' से सम्मानित। संप्रति - शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय। ईमेल एवं मोबाइल - sardarpiyush24@gmail.com एवं 8750960603

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