बधाई नीलिमा शर्मा व डॉ नीरज शर्मा इस सम्पादन के लिए ।

मैंने प्रकाशिका नीरज से विशेष रूप से ये पुस्तक मंगवाई थी। इसके कारण हैं ;

१. गुजराती कवयित्री वन्दना भट्ट ने हमें लगभग १५ वर्ष पहले बताया था कि मैं जब भी गुजराती साहित्यिक गोष्ठियों में जातीं हूँ ,कवि मना करते हैं कि स्त्रियों को प्रेम कविताएं गोष्ठियों में नहीं पढ़नी चाहिए ।

२. आदरणीय स्वर्गीय सुविख्यात,लोकप्रिय व ज़बरदस्त किन्ही सम्पादक ने नारा दिया था कि स्त्री विमर्श देह मुक्ति का नाम है। जिससे प्रेरित होकर कुछ कथाकार महिलाओं ने साहित्य में प्रेम को भी देह मुक्ति से जोड़कर कथाएं लिखीं .एफ़ बी पर लोगों ने शोर मचा दिया कि ये पोर्न लेखन है या साहित्य।

३. एक सुविख्यात आलोचक महिला ने एक सुविख्यात पत्रिका के महिला अंक में महिला कथाकारों की कहानियों का आंकलन किया जिसमें उनकी दृष्टि सिर्फ़ स्त्री पुरुष सम्बन्ध पर लिखी कहानियों पर अटककर रह गई।

उनके लेखन सरोकार ये नहीं थे कि इन वर्षों में महिलाओं ने कितने विविध विषयों पर कलम चलायी है बल्कि ये चिंता कि jayshree roy ने अपनी कहानी –`रात–`[नाम भूल रहीं हूँ] में अंत में नायिका पीछे क्यों हट  गई . 

मैं सोच रही थी कि इस संग्रह में अधिकांश कहानियां आज के उभरती लेखिकाओं की हैं तो जाने कितनी बातें देह मुक्ति की होंगी लेकिन इन कहानियों से गुज़र कर जब मैं मिली मुझे वही सभ्य ,संतुलित ,भारतीय  स्त्री नजर आई जिसके भीतर प्रेम के अंकुर तो फूटते है  लेकिनवह अपनी मर्यादा या ज़िम्मेदारी  या संस्कार नहीं भूलती।

इस कहानी संग्रह  की नायिकाएं अपने आस पास दाना डालते रिश्तेदार से मोहग्रस्त तो होती है लेकिन सम्भल भी जाती है [अंजु शर्मा ],ये प्यार कहीं और शादी हो जाने के बाद कानों की बालियों से दिखाया जाता है [योगिता यादव ]बीस वर्ष छोटे अपने पाठक के भावभीने पत्रों से अभिभूत हो भावनाओं में भीग जाती है [निर्देश निधि ].कहतें हैं न प्यार का कोई लॉजिक नहीं होता।प्यार को सिर्फ़ केमिकल रिएक्शन समझने वाली लड़की को भी प्यार हो जाता है[उपासना सियाग ]

प्यार के बहुत रंग होते हैं ,चाहे वह स्त्री हो या पुरुष कुछ लोगों के व्यक्तित्व इतने आकर्षक होते हैं कि हम उनसे आजीवन `इन्फ़ेचुएटेड `रहते हैं उनके घर आने की ख़बर से ही प्रमुदित हो जातें हैं। संपादिका नीलिमा शर्मा ने अपनी कहानी में ये रंग चुना है। कलावंती इस `इनफ़ेचुएशन `को गली के एक दादा के माध्यम से प्रस्तुत कर रहीं हैं. आकांक्षा पारे काशिव एक ही व्यवसाय से जुड़े सहज स्वाभाविक संबंध को उकेर रहीं हैं.में। कहीं पति की पूर्व प्रेमिका से मुठभेड़ हो रही है [सपना सिंह ],कहीं पुराना प्रेमी अविवाहित नायिका से फिर प्यार पाने की ज़िद करता है[प्रोमिला काज़ी ],कहीं दूसरा पछताता रह जाता है की वह पहले अपनी प्रेमिका से क्यों नहीं मिला ?[अजु चौधरी अनु ].शोभा रस्तोगी प्रेम के लिए बग़ावत करती एक विधवा ग्रामीण स्त्री से परिचित करवातीं हैं। संगीता सेठी ,लक्ष्मी यादव ,वंदना यादव रश्मि रविजा ,भी कुछ अलग कहती नज़र आ रही हैं।

डिजिटल युग के डिजिटल प्रेम की कहानी से धमाका किया है सुषमा मुनींद्र जी ने `सायबर लम्पट `कहानी से ,जो निजी जीवन में स्वयं कंप्यूटर पर काम नहीं करतीं। दूसरा धमाका है वत्सला पांडेय की कहानी `ब्ल्यू टिक `.आज की वॉट्स एप द्वारा प्रेम कहानियाँ प्रेमियों के दूर रहने से इसी ब्ल्यू टिक पर टिकी हुईं हैं।

एक बार फिर सम्पादिकाओं को बधाई कि प्रेम के नाम पर संग्रह को अश्लीलता परोसने से बचा ले गईं हैं। साहित्य में प्रेम को सही पहचान व प्रतिष्ठा दी है।

वनिका प्रकाशन को सुन्दर प्रकाशन के लिए बधाई

आप सब अमेज़ॉन से इस पुस्तक को मँगवा सकते है ।

 

 

नीलम कुलश्रेष्ठ
अहमदाबाद

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