Sunday, October 27, 2024
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नरेंद्र कौर छाबड़ा की लघुकथा – रुमाल

अनिल अपने ऑफिस में आवश्यक मीटिंग ले रहे थे । अपनी डायरी में जरूरी बातें नोट भी करते जा रहे थे । अचानक वह खड़े हो गए और कर्मचारियों से बोले –“ सॉरी यह मीटिंग यहीं खत्म करनी पड़ेगी , एक बहुत जरूरी काम आ गया है”। मीटिंग समाप्त कर कार में बैठ लगभग घंटे भर का सफर तय करके मां के घर पहुंचे । देखा दरवाजे पर ताला लगा है। पड़ोस में रहने वालों ने बताया आपकी मां अस्पताल में दाखिल है। अस्पताल का पता पूछ अनिल वहां पहुंचे पता लगा मां अति दक्षता कक्ष में दाखिल है और नीम बेहोशी की हालत में है। अनिल वहीं बैठ गए।
 शाम को मां ने आंखें खोली तो अनिल को सामने देख कातरता भरी नजरों से उसकी ओर देखा। अनिल ने आगे बढ़कर उनके हाथ पकड़ लिए और कहा –“ मां कैसी हो..?” मां को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि सामने उनका इकलौता बेटा खड़ा है। कुछ सामान्य होने पर बोली-“ तुझे कैसे पता लगा मैं बीमार हूं और अस्पताल में हूं?” 
मां अभी आप आराम करो बातें बाद में कर लेंगे …”कहकर अनिल ने मां के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरते हुए थपथपाया। वह कैसे बताए मीटिंग से पहले चाय पीते हुए जिस रुमाल से उसने हाथ पोंछे थे वह मां ने ही बनाया था। मां ने उसे तीन वर्ष पहले दिया था जिसे उसने बेकार समझ अलमारी में पटक दिया था। आज इत्तफाक  से हाथ में आया तो उसे जेब में डाल ऑफिस आ गया था। उसके एक सिरे पर मां ने लिखा था—” कभी-कभी मां को याद करके मिलने से जिंदगी में पछतावे की टीस से बचा जा सकता है।“
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