Saturday, July 27, 2024
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अनिमा दास के दो सॉनेट

1 – स्वतंत्रता (सॉनेट)
रच न पाऊँ एक शब्द,क्या रचूँगी कविता
स्वप्न-भारत..स्वतंत्र भारत..या नग्न भारत
क्या लिखूँ किस हेतु उदित हुआ यह सविता
इतिहास मौन वर्तमान मौन तुम भी आरत।
हुआ है विकास,अमानवीय धारणाओं का
आई है क्रांति अकल्पनीय अत्याचार की
विकास होता रहा उन्मुक्त वासनाओं का
क्रांति भी है अनवरत निर्मम अविचार की।
क्या हुआ है स्वतंत्र? कौन हुआ है स्वतंत्र?
सीमांत?पशु-पक्षी?पर्वत या स्वार्थ-नीति?
मृतवत् शरीर..अश्रुदग्ध आत्मा का अमंत्र ?
निस्तब्ध द्रष्टा मैं,हृदय में प्रश्नों की है भीति।
जीवित हूँ अथवा मृत,पृथी मेरी है क्षताक्त
वह है क्रूर आततायी,मैं सदा रहूँगी रक्ताक्त।
2 – व्यथित भारती (सॉनेट)
वह अतीत भी रक्तिम था यह समय भी रक्तिम होगा
वर्तमान के वस्त्र में एक भविष्य भी रहेगा भयभीत
सिंदूरी मृण में तल्लीन होता श्वास यदि अंतिम होगा
क्यों स्वर्ग की प्रतीक्षा में नित्य, है मौन हृदय-प्रमीत ?
जल में थल को लीन होते करती हूँ सदा निरीक्षण
अनाहूत सी रश्मि मैं,होती संकुचित अशुद्ध वायु में
न होती परिपूर्ण अतिमित अभीप्सा एवं प्रतीक्षण
मैं रहती अस्पृश्य व प्रलंबित देह की रिक्त स्नायु में ।
जिसकी सीमा उदीची हिमगिरि में होती उदासीन
जिसकी वेदना होती दक्षिण गह्वर की भित्ति प्रस्थ
क्यों आज यह म्लान, उन्मत्त, उन्मादन में है आसीन
क्या यह भारतवर्ष नहीं है मेरे कुमानस में गर्भस्थ ?
मैं समय सीमांत की स्वर्णिम भारती ! चाहूँ होना मुक्त
भ्रष्टाचार से निपीत काल से मैं,हो जाऊँ आज उन्मुक्त।

अनिमा दास
कटक, ओड़िशा
संपर्क – [email protected]
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