इस बार की बरसात बहुत खास है। जहां कुछ लोगों ने इसको प्रबल मॉनसून कहा तो वहीं कुछ ने पर्यावरणीय बदलाव की ऐसी तस्वीर बताया, जो भविष्य के दुष्परिणामों की ओर संकेत कर रही है। 
सोशल मिडिया पर नदियों के विकराल रूप धारण करते हुए अनेक विडिओ हैं। इस तरह के दृश्य, प्रकृति की आपार शक्ति के समक्ष इंसान के बौना होने की याद दिलाते हैं। जिस सच्चाई को इंसान अक्सर भूल जाता है, प्रकृति बार-बार उसे याद दिलाती है। पहाड़ों के दरकने, सरकने, भू-स्खलन, बाढ़, आपदाओं और बर्बादी का मंजर देखकर भी इंसान सचेत नहीं हो रहा है।
वर्तमान पीढ़ी ने अपने छोटे से जीवनकाल में  प्रकृति के कठोरतम स्वरूप को ना सिर्फ देखा, बल्कि जीया भी है। सौ साल बाद आने वाली महामारी को जीत कर जो कौम आज जीवित है, जिसने सोशल मिडिया की ताकत से बाढ़, सूखा और भूकंप के प्रकोप को बहुत नज़दीक से अनुभव किया है, वह हम ही हैं। इतने अनुभवों की आंच पर पक कर हम सोना बन गए हैं। 
अपने इम्यून सिस्टम, दवाइयों और आहार प्रणाली की बदौलत हमने महामारी को हरा दिया है। हाँ, हमने वह जंग जीत ली है। मगर क्या सच में हम विजेता हैं? क्या हम अपनी सावधानी से बच गए या प्रकृति ने अभी कुछ समय ओर जीवित रहने के लिए हमारा चुनाव किया है? हम चुने गए हैं अथवा प्रकृति द्वारा कुछ ओर समय के लिए छोड़ दिए गए लोग हैं? इससे क्या फर्क पड़ता है! बात यह है कि आज हम जीवित हैं! इसका सीधा सा अर्थ यह है कि अब हमारे पास जितना भी समय बचा है, उसका उपयोग समझदारी से करना है। जितना प्रकृति से और समाज से लिया है, यह उस सबको चुकाने का समय है। अपने आसपास के माहौल, और वातावरण को सुंदरतम बनाने का समय है।
भयानक आपदाओं को लांघकर बाहर निकल आना, अपने आपमें उपलब्धि है। मगर हर दिन जीवन की जंग लड़ना कौनसी आसान बात है। वर्तमान जीवित पीढ़ी ने खुदको साबित किया है। मुझे यक़ीन है कि हम सब मिलकर अपने-अपने हिस्से में रिश्तों की, दोस्ती की, सामाजिक जीवन में काम और व्यवहारिक ईमानदारी की इबारत लिखेंगे। अपनी मेहनत से हम साबित करेंगे कि हम छोड़े हुए लोग नहीं है, बल्कि समाज, देश, विश्व और प्रकृति की बेहतरी के लिए हमारा चुनाव किया गया है। हम सब अपनी-अपनी स्तर पर अपनी मेहनत से इसको साबित करेंगे। 

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