Tuesday, October 15, 2024
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सीमा असीम सक्सेना की कहानी – काला खट्टा

सागर का किनारा है और मैं रेत पर खड़ी हुई हूँ ।  पूरे सागर को मैं अपनी बाहों में भर लेना चाहती हूँ इसलिए मैंने अपनी दोनों बाँहें फैला दी। तभी सागर की एक तेज लहर आई और मेरे पैरों के नीचे की सारी रेत बहा कर ले गयी ।  कितनी प्यारी सी गुदगुदी लग रही है, मानों मेरे पाँव के तलबों से कुछ गुफ्तगूं करके सागर फिर से लौट गया हो, एक बार फिर दोबारा से लौट आने के लिए ।  सब लोग आगे बढ़ बढ़ कर समुन्द्र की लहरों से खेल रहे हैं लेकिन मैं वहीं पर खड़ी होकर उसका इंतजार कर रही हूँ, मुझे पता है कि वो आयेगा अपनी लहरों को साथ लेकर, फिर आयेगा और हाँ, वो आया एक बार फिर से लौट जाने के लिए, मेरे पाँव जो गीली  रेतीली जमी पर है उनको अपने साथ बहा ले जाने के लिए । वे लहरें बार बार आ रही हैं  और कुछ बातें करके फिर पलट कर चली जा रही हैं । ऐसे ही कितनी देर गुजर गयी और मैं यूँ ही खड़ी रही। मेरे पाँव रेत पर मजबूती से टिके हैं लेकिन अब वे थक चुके हैं । मैं वही बैठ गयी और रेत पर अपना नाम लिखा । जी चाहा कि अपने नाम के साथ तुम्हारा नाम भी लिख दूँ लेकिन नहीं लिखा और अपने नाम को ही खूब गहरा करती रही । बार बार लहर आ रही हैं , अब वो मेरे नाम को भी छू रही हैं ऐसा महसूस हो रहा है जैसे वे मेरे नाम को चूम रही हैं । मैं वापस घर जाने के लिए मुड़ी, एक बार पलट कर सागर को देखा और मन ही मन न जाने क्या बुदबुदाई और सिर झुकाये चल दी । रेत पर चलते हुए मेरे पैर रेत से भरे हुए हैं, कि अचानक से न जाने क्या जी मे आया और जमीन पर बैठ गयी, यहाँ तक सागर की लहरे नहीं आ रही हैं । मैंने रेत पर बड़ा सा दिल बनाया और उस पर अपना नाम लिखा और तुम्हारा नाम भी उकेर दिया, ऐसा लगा मानों दिल से बड़ा बोझ उतर गया हो, जिस्म का भारीपन कम हो गया हो, आँखों से खुशी की दो बूंदें छलकीं और उस नाम पर गिर गयी। मैंने हल्के से नाम के ऊपर अपनी तीन उँगलियाँ फिराईं और होठों से चूम कर माथे से लगाते हुए बालों पर फिराया, ऐसे जैसे मैं खुद को ही आशीष दे रही हूँ । वापस लौटते कदम अब थम गए हैं और वहाँ से हिलने का नाम नहीं ले रहे हैं । अपनी दुनियाँ जो मैनें यहाँ पर उकेर है । अपने मन का संसार, जहां पर पूरी ज़िंदगी भी गुजार दूँ तब भी कम पड़ जाये।
यशिका दी, यहाँ आओ न, कृति ने ज़ोर से आवाज लगाते हुए कहा ।
अरे मैं खुद में ही इतना खो गयी हूँ कि भूल गयी कृति और सारिका भी हमारे साथ हैं ।
वे दौड़ती हुई मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर आगे खीचने लगी !
न न, मुझे आगे नहीं जाना, प्लीज मैं यही पर ठीक हूँ ।
आओ न प्लीज दी, देखो कितना मजा आ रहा है । कृति ने लाड से मेरे गले में बाहें डालते हुए कहा ।
मैंने देखा वे दोनों पूरी तरह से पानी में भीगी हुई हैं ।
नहीं बहन मेरा मन नहीं है तुम लोग जाओ मैं यहाँ खड़ी हूँ और सुनो जल्दी से आओ घर नहीं चलना है ?
अरे अभी तो आये हैं अभी कैसे वापस लौट जाएँगे, हम लोग तो आराम से जाएंगे ! मुझे याद ही नहीं रहा कि मैं मुंबई शहर में हूँ जहां रात होने का कोई मतलब नहीं होता, कोई उसका छोटा सा शहर थोड़े ही न हैं, जहां शाम के सात बजे ही रात होने लगती है और लोग घरों को लौटने लगते हैं।
लेकिन मुझे बड़े शहरों के चाल चलन भला कैसे पता होंगे, जब मैं बहुत छोटे से शहर की हूँ । चलो ठीक है भाई, तुम लोग जाओ, मैं यहीं बैठी हूँ और मैं वही रेत मे बैठ गयी । वे दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए कितनी आगे तक चली जा रही हैं, लहरों से अठखेलियाँ करती हुई ।
लहरें भी तो उनका साथ पाकर कितना आनंदित हो रही हैं ।
मैं देख रही हूँ उन लहरों को, जो किनारे तक आ रही हैं और फिर वापस लौट जाती हैं । कुछ लहरें बीच मझधार में ही अपना सिर पटक कर दम तोड़ रही हैं । उफ़्फ़ कितना गुस्सा भरा है इस सागर में जो तेजी से दहाड़ता हुआ चला आता है और फिर वापस लौट जाता है खुद में ही गुम होकर । इसे पल भर का भी चैन नहीं है ।
मैं सोचती हूँ कि फिर आखिर मुझे भी कैसे चैन आ सकता है क्योंकि मेरे भीतर भी तो सागर भरा है जो हमेशा बेचैन किए रहता है । मैं कहीं भी चली जाऊं लेकिन खुद से दूर कैसे जा सकती हूँ? आखिर खुद से दूर जाकर कहाँ जा पाऊँगी ? कितनी ही देर इसी तरह से गुजर गयी सोचते हुए और वे दोनों लहरों से खेलती रही । मैंने देखा करीब ही एक जोड़ा बैठा हुआ है अपने भविष्य के सुनहरे ख्वाब बुनता हुआ । लड़की रेत से कुछ बना रही है और लड़का कभी उसे और कभी उसके बनाए रेत के घर की तरफ देख रहा है । ये सागर ख्वाब बुनने के कितने सारे अनोखे मंजर देता है । सागर की अथाह गहराइयों की तरह हमारा मन भी तो है जहां कोई थाह ही नहीं, डूबो तो डूबते ही चले जाओ । मैंने देखा, सारिका और कृति दोनों उसकी तरफ बढ़ी चली आ रही हैं मानो सागर ने अब उन्हें अपनी लहरों से दूर छिटक दिया हो ।
चलो दी,अब पाव भाजी खाते हैं ।
नहीं, मेरा मन नहीं है ।
अरे मन नहीं है, यहाँ आकर पावभाजी नहीं खाओगी ? पता है यहाँ की पावभाजी, भेलपुरी, काला खट्टा कितना फेमस है ।
हाँ वो तो मैनें भी सुना है ।
तो चलो आओ, वे दोनों मेरा हाथ पकड़ कर खींचती हुई ले गयी ।
आज मैं खिलाती आप लोगों को । सारिका ने मुस्कुराते हुए कहा ।
तू क्यों खिलाएगी मैं बड़ी हूँ न, तो मेरा फर्ज़ बनता है । मैनें कहा ।
यह फर्ज़ वरज कुछ नहीं होता, आप बस आराम से बैठ कर यहाँ के नजारों का आनंद लो ।
सागर के किनारे बहुत दूर तक पाव भाजी, भेलपुरी और काला खट्टा के स्टाल लगे हुए हैं, बच्चों के खिलौने गुब्बारे बिक रहे हैं बिल्कुल किसी मेले की तरह माहौल हैं ।
सारिका ने दो प्लेट पवभाजी का ऑर्डर किया और अपने लिए एक प्लेट भेलपुरी का ।
अरे तू पवभाजी नहीं खाएगी ?
नहीं यार, मैं तो रोज ही खाती हूँ ।
रोज ?
रोज मतलब, अक्सर खाती ही रहती हूँ ।
कहाँ पर ? अभी तो तू कह रही कि मैं पहली बार जुहू आई हूँ ।
हाँ यही सच है कि मैं यहाँ पहली बार आयी हूँ लेकिन यहाँ और सब जगह भी पाँव भाजी मिलती है ।
लेकिन सुन यहाँ जैसी तो सब जगह नहीं मिलती होगी न ?
वो मुस्कुराई  ।
चल हम लोग शेयर करते हैं !
वाकई बहुत स्वाद है पावभाजी का, एकदम से अलग सा टेस्ट है । इतनी अच्छी भाजी, मैंने पहले कहीं नहीं खाई । शायद भूख लग आई थी इस वजह से भी बहुत अच्छी लग रही हो ? मैंने सोचा ।
यार सारिका, एक बात समझ नहीं आई कि तू यहाँ पर पाँच साल से रह रही है और तू एक बार भी यहाँ नहीं आई?
हाँ नहीं आई ।
क्यों ?
क्योंकि यहाँ आने के लिए किसी साथी की जरूरत पड़ती है ।
हाँ यह तो है, पर तेरे मम्मी पापा तो कई बार तुझसे मिलने आए होंगे ?
हाँ आये और वे लोग आकर मिलकर चले गये, उन लोगों को घूमने का कोई शौक नहीं है न और समय भी नहीं है ।
ओहह, अच्छा ।
चल अब अपन काला खट्टा खाते हैं ।
न भाई, मैं तो नहीं खाऊँगी तुम दोनों खा लो ।
क्यों खाओ न आप, पाव भाजी के लिये भी आप मना कर रही ।
देख न मुझे कितना जुकाम हो रहा है । मैं इसीलिए पानी तक में नहीं गयी।
तो छोडो भी हम नहीं खाते और उसने बेटर को बिल लाने के लिए कह दिया ।
मुझे पता है कि अगर मैं अब इससे कहूँगी कि बिल मुझे देने दो, तो यह मानने वाली नहीं है । खैर बेटर बिल दे गया और उसे सारिका ने पे कर दिया । बाद में वो माउथ फ्रेशनर दे कर गया और हम लोग बाहर आ गये।
बाहर खड़े एक बेटर ने हम लोगों से पूछा, मैडम अगर आप यहाँ रेत में कुर्सी पर बैठकर समुंदर का नजारा देखना चाहें, तो मैं कुरसियां डलवा दूँ?
नहीं रहने दो, हम लोग यूं ही समुंदर के किनारे टहलेंगे । रात का धुंधलका अब अंधेरे में बदल गया है । दूर दूर तक चमकती बल्बों की रोशनी और सामने अथाह सागर की दहाड़ती हुई लहरें और उसकी ठंडी ठंडी रेत पर टहलती हुई मैं, सारिका और कृति । बहुत ही अच्छा लग रहा है जी चाह रहा है कि मैं और सागर एकदूसरे से ऐसे ही बतियाते रहें और समय का पता भी न चले । सागर के ऊपर से गुजरते हुए हवाई जहाजों को देखकर दिल कर रहा  है कि मेरे पास भी पंख आ जाये और मैं अपने पंख फैलाकर सागर के ऊपर उड़ती फिरूँ लेकिन मैं इस सागर की अथाह चौड़ाई को अपने पंखों के सहारे कैसे नाप पाऊँगी? इसके बाद भी मैं सागर की उत्ताल लहरों के ऊपर अपने पंखों के सहारे आसमान में विचरना चाहती हूँ नीचे खुला समुंदर का हरा,नीला सा पाट और ऊपर नीला खुला आसमा, बीच में मैं ।
सुन कृति, मेरा एक दोस्त यहीं पर टहल रहा है उसने मेरे व्हाट्सअप स्टेटस को पढ़ के जान लिया कि मैं यहाँ पर हूँ  उसका मेसेज आया है कि मैं तेरे पास आता हूँ ,तो मैं उसे उधर शॉप के पास खड़े होकर देखती हूँ ।
ठीक है ।
और सुनो तुम दोनों यहीं पर खड़े रहना फिर कहीं तुम लोगों को ढूंढती ही न रह जाऊँ ।
अरे कहीं नहीं जाऊँगी, तुम बस उसे लेकर आओ । कृति ज़ोर से हँसते हुए बोली ।
उन दोनों की बातचीत और हंसी मुस्कुराहट से मेरी तंद्रा टूट गयी । क्या हुआ क्यों हंस रही हो, मुझे भी तो बताओ ?
आप पहले सोच लो, ध्यान मग्न हो लो, फिर हंस लेना ।
मुझे लगा कि जब हम इनके साथ हैं तो इनके साथ ही होना चाहिए न, खुद के साथ तो हमेशा ही रहती हूँ । सही बात है इंसान अपने अतीत और भविष्य के चक्कर में अपना वर्तमान खराब कर लेता है फिर उसे जी ही नहीं पाता ।
सारिका चली गयी है, बेहद हंसमुख और प्यारी लड़की है सारिका । मैं मन ही मन यह सोच रही हूँ  कि कृति बोली, सुनो दी  वो सामने फिल्म स्टार्स के बंगले बने हुए हैं और देखो कितने अच्छे से खुले खुले बने हैं ताकि पूरी हवा आती रहे । आज शायद कोई पार्टी चल रही है तभी इतनी रोशनी है और इतने सारे लोग भी ?
हम्म, मैनें ध्यान से देखते हुए कहा ।
सुनो दी, आप रोज तो आ नहीं पाओगी, इन सब चीजों को ठीक से अपने दिलो दिमाग में भर लो, न जाने कितनी ही बातें प्यार से समझा रही है और मैं बस सुनकर मुस्कुरा रही हूँ । तब तक सारिका भी अपने फ्रेंड को लेकर आ गयी। उसने ब्लू पैंट और सफ़ेद शर्ट पर लाल टाई लगा रखी है , ब्लैक जूते और पीठ पर बैग । उसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे वो किसी बेंक का इंप्लाई है और सीधे ऑफिस से यहीं पर (सागर किनारे) चला आया है । आते ही उसने बड़ी गर्मजोशी से सबसे हाथ मिलाया ।
ये है मेरा दोस्त सम्राट और यह बैंक मे मैनेजर है । सारिका ने उसे इट्रोडूस कराते हुए कहा और सम्राट यह है कृति और उसकी दी ।
यह सुनकर मैं मन ही मन मुस्कुराइ कि मेरा अंदाजा सही निकला ये बेंक में मेनेजर ही है ।
यही पास में ही मेरा ऑफिस है और मैं तो अक्सर ही यहाँ आता रहता हूँ । उसने अपनी टाई निकालते हुए कहा ।
हम्म ।
बहुत ही अच्छा लगता है यहाँ आकर, अकेलापन भी महसूस नहीं होता है।
ये यहाँ अकेला रहता है न । सारिका बोली ।
अच्छा ।
इसके पापा डिफेंस में हैं और माँ होम मेकर । भाई बैंगलोर में, पापा बिहार में, माँ उड़ीसा और मैं यहाँ । जाब के कारण सब अलग अलग बिखरे हुए हैं । कोई मिल ही नहीं पाता एकदूसरे से, खैर मैं तो मम्मी से मिलने हर तीसरे महीने चला जाता हूँ ।
हाँ जाना भी चाहिए ।
पता है पिछली बार तो बिना बताये पहुँच गया । तीन दिन की छुट्टियाँ एक साथ पड गयी है, फौरन टिकिट्स कराये और चला गया । माँ की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा । उनका करीब सौ ग्राम खून बढ़ गया होगा ।
मेरे लिए माँ की खुशी के सामने पैसों की कोई अहमियत ही नहीं है । वो बोलता जा रहा है और हम लोग उसकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे हैं ।
किसी की बातों से ही उसके बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है । वो मुझे एकदम संस्कार से जुड़ा हुआ इंसान लगा ।
सारिका ने बताया हम बचपन के दोस्त हैं, जब मैं पहली बार मुंबई आई तो इसके घर में ही रुकी ।
चलो आओ, वहाँ रेत पर बैठते हैं ।
ठीक है, हम लोग सागर से थोड़ा पीछे जाकर रेत पर बैठने की जगह ढूंढ रहे, तभी सम्राट को अपना कोई द्दोस्त वहाँ बैठा दिख गया । वो किसी लड़की के साथ बैठा है, लड़की रेत पर कुछ बना रही है और लड़का उसमें खोया बातों में मशगूल है ।
सम्राट ने उसे कहा यार प्रशांत, उसने सुना ही नहीं ।
हम आगे बढ़ रहे हैं तभी उस लड़की ने उसे बताया कि शायद कोई तुम्हें आवाज लगा रहा है, तब तक हम लोग थोड़ा आगे निकल आए है ।
ओय सम्राट तू यहाँ ? उसके दोस्त प्रशांत ने ज़ोर से पुकारा ।
हाँ यार ! अभी आया हूँ, तू कब आया ? और यह सब कब से चल रहा है ? मुझे बताया तक नहीं ?
वो सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया ।
आता हूँ, वो उठकर आने लगा तो सम्राट ने उसे मना करते हुए कहा, नहीं यार तुम इंजॉय करो ।
बहुत अच्छी बातें करता है सम्राट, उसकी बातों में कब दो घंटे गुजर गए समय का पता ही नहीं चला ।
चलो अब चलते हैं ।
नहीं अभी मेरे साथ चलो, डिनर हमारे साथ ही करना ।
वो सारिका से न कहकर हम दोनो से बराबर अपने घर ले चलने की बात कर रहा है ।
सारिका चुपचाप सिर नीचे किए रेत से खेल रही है ।
यशिका जी पहली बार आई हैं,  उनको डिनर कराना हमारा फर्ज़ है ।
हमें समझ ही नहीं आ रहा है कि आखिर यह इतना क्यों कह रहा है और सारिका कुछ क्यों नहीं बोल रही है? काफी देर तक यूं चलता रहा तो कृति बोली, सारिका तुम बोलो न इसको, मना करो कि फिर कभी आएंगे।
अरे तब तक तो यशिका जी चली जाएंगी । सारिका के जवाब देने से पहले ही सम्राट बोल पड़ा ।
चल चलते हैं कृति, जब यह इतना कह रहा है । सारिका बोल पड़ी ।
मुझे इस तरह से जाना अच्छा नहीं लग रहा है किसी अंजान के घर जाकर खाना खाने के लिए लेकिन सबकी बात माननी पड़ी । हम लोगों ने ओला बुक की, जब तक वो आती, तब तक सारिका बताती रही कि हमलोग बचपन से एक ही स्कूल में पढे हैं फिर यह बी टेक के लिए दूसरे कालेज में चला गया और मैं बीएससी के लिए दूसरे कालेज में फिर जब मेरी जाब यहाँ लगी तो इसने मेरी बहुत मदद की । मैं अपने पापा के साथ शुरू में आठ दिन इसके घर में ही रही और तू तो जानती ही हैं यहाँ रहने की सबसे ज्यादा मुश्किल है । ओला आ गयी है, हम उसमें बैठ गए हैं, तब भी सारिका अपने स्कूल की बातें कर रही है  कि कैसे 9थ क्लास में आते ही हम इतने अच्छे दोस्त बन गए और याद है जब मैडम ने हमें क्लास से बाहर खड़े होने कि सजा दी तो बारिश आ गयी  और हम लोग बारिश में भीगने को ग्राउंड में आ गए  फिर तो दो दिन के लिए स्कूल से ही रेस्टीकेट कर दिया गया, और भी न जाने क्या क्या ……
उसकी बातें सुनकर मुझे भी अंकित का ख्याल आ गया कितना प्यारा है अंकित और मैं एक दम से कमअक्ल, फिर भी कितना प्यार करते हैं वे मुझे, उसे याद आया एक बार जब मैं अंकित के साथ कार में जा रही  , सीट बेल्ट लगा रखी, कितनी उलझन सी लग रही मुझे सीट बेल्ट लगाकर । मैं कभी लगाती ही नहीं तो अंकित मेरी उलझन समझ कर मुस्कुरा भर दिए ।
बोले, चलो रहने दो मत लगाओ बेल्ट और मैनें जल्दी से खोल दी, मानों बंधन से मुक्ति मिल गयी हो और उस बेवकूफी को याद करके आज हंसी आ रही है ।
बुद्धू कहीं की, खुद को कहकर खुद ही मुस्कुरा दी ।
उसका शहर इन बड़े शहरों से बहुत बढ़िया है !
कार दौड़े जा रही है । फिल्मों में देखे तमाम सीनों की तरह आज हम खुद यहाँ पर हैं और उसे जी रहे हैं, दूर से लुभाने वाला यह बड़ा शहर अंदर से खाली सा है तन्हा, एकदम अकेला सा ।
करीब एक घंटे के बाद सम्राट का घर आया । उसने एक जगह कार रुकवा कर पनीर खरीदा ।
यहाँ का पनीर बहुत ही अच्छा होता है । यह बहुत सफाई से बनाता है जब भी खरीदने जाओ, हमेशा फ्रेश ही मिलता है क्योंकि यह उतना ही बनाता है जितना बिक जाये ।
वो बोल रहा है और मैं उसकी बातें बड़े शांत मन से यह सोचते हुए सुन रही हूँ कि क्या बैंक वाले इतना ही बोलते हैं ?
हम लोग उसके घर पहुँच गए, बेहद खूबसूरत सोसायटी में उसे बैंक की तरफ से बड़ा प्यारा सा फ़्लैट मिला हुआ है लेकिन अंदर से बेतरतीब फैला हुआ । उसे देख कर ही लग रहा है कि  यहाँ यह अकेला ही रहता है मतल किसी बैचलर का घर है ।
मैं सुबह ही निकल जाता हूँ, नाश्ता खाना सब बैंक की कैंटीन में, बस रात का खाना कभी कभार बना लेता हूँ, साफ सफाई के लिए वीकेंड पर बाई आ जाती है । हमारे मन की बातें समझ कर उसने सफाई देते हुए कहा।
 रात के १२ बज चुके हैं अभी खाना बनेगा फिर खाने पीने में भी करीब एक घंटा और लग जायेगा । मैं घबरा रही हूँ, इतनी रात को कैसे चलेंगे ?
ओ दी चिल, अभी आप मुंबई में हो, चिंता न करो ।
ठीक है भाई, लेकिन मुझे अपना शहर ही पसंद है, नहीं करनी यहाँ जॉब, वापस लौट जाएगी, पापा तो पहले ही कह रहे, यही जॉब कर लो, कोई नहीं, अब रुक नहीं पाएगी वो यहाँ के माहौल में, बस अंकित की यादों से दूर जाने के लिए यह तरीका चुना मैंने लेकिन उसकी यादें तो यहाँ आकर भी अपना कब्ज़ा जमाये हुए हैं ।
 दी आप चाय पिओगी मैं अभी घर गया था तो मम्मी ने आसाम की फ्रेश चाय का पैकेट दिया है ।
ठीक है बना लो, थकान कम लगेगी और नींद भी उड़ जायेगी, अपने घर में जल्दी सो जाने की वजह से आँखें नींद से भारी हो रही हैं ।
सारिका तू चाय बना, मैं पनीर बनाता हूँ, कृति रोटी सेक लेगी और दी से कोई काम नहीं कराएँगे, वे हमारेी मेहमान हैं ।
जल्दी जल्दी सबने मिलकर खाना बना लिया, ठीक ही बना खाना ।
 चलो, अब जल्दी घर चलो । खाने की प्लेटें समेटते हुए सारिका ने कहा।
हाँ ठीक है , ओला बुक कर लेते हैं ! कृति बोली ।
अब रहने दो, सुबह चले जाना तुम लोग ।
अरे नहीं यहाँ कहाँ सोयेंगे, जाने दो ओला बुक कर ली है ।  सारिका जल्दी से बोली ।
ओला कार आने ही वाली है  कि सारिका बोली, सम्राट इन लोगों को नीचे ओला तक छोड़ आओ, मेरे सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है, अब मैं नहीं जा रही ।
नहीं जा रही, अरे अभी तो यही जाने की जल्दी कर रही  फिर अचानक क्या हुआ ? यहाँ यह अकेले सम्राट के साथ रहेगी? मेरा मन हुआ कहूं लेकिन कृति ने आँख के इशारे से चुप रहने को कहा,ओला में बैठते ही मैंने कृति से कहा, ये सारिका कैसी लड़की है ? उसे कोई शर्म नहीं है ? क्या यह जीवन है ? सिर्फ झूठे सच्चे प्रेम के नाम पर ऐसी जिंदगी जीना ! छीं उसे घिन का अहसास हुआ, लगा अभी उबकाई आ जायेगी …. वैसे यह सिर्फ मुंबई या बड़े शहरों में ही नहीं रहा छोटे शहर भी इसकी चपेट में आने लगे हैं । रीते मन, बोझिल तन के साथ जीना ही जिंदगी है?
ओह !!
दी, यह दोनों फ्रेंड्स हैं, इन्हें पता है, यह क्या करें और क्या नहीं, आप क्यों टेंशन ले रही हो ? मुझे परेशान देख कृति ने समझाने के लहजे में कहा ।
मुझे ध्यान आया, आते समय सारिका मुझसे कह रही, दी यही तो दिन होते हैं जीने के, फिर शादी हो जायेगी, तब कहाँ मस्ती कर पाएंगे लेकिन शादी से पहले किसी के साथ यूँ रात भर अकेले, यह बातें हजम नहीं हो रही हैं।
कृति बहन तू यहाँ संभल के रहना ! पापा ने कितने अरमान से तुझे पढ़ाया है ।
आप मेरी फ़िक्र न करो, मैं आपकी ही बहन हूँ न ?
लेकिन मैं यहाँ नहीं रह सकती, मुझे समझ नहीं आ रहा यहाँ का माहौल।
अरे ठीक है दी !
ओला अपनी पूरी रफ़्तार के साथ मुंबई की सड़कों पर दौड़ रही है, जो रात में भी जगमगा रही हैं और उसका दिमाग उससे भी तेज परेशान कर  रहा है । बांद्रा वर्ली सी लिंक पर चलती हुई कार हमारे उस ख्वाब को कुछ हद तक पूरा कर रही है जो मैं पंख लगाकर उड़ने का सोच रही, पंख फैलाकर न सही कार में बैठ कर ही, हूँ तो सागर के ऊपर ही न, अब मैं सागर के ऊपर चल रही हूँ और नीचे जोर जोर से ठाठें मारता हुआ सागर मानों ख़ुशी का इजहार कर रहा है । उस शांत नीरव वातावरण में सागर की लहरें तेज चलती कार में भी सुनाई आ रही हैं ।
अपने अंकित की बेहद याद आ रही मुझे, वो भी तो मुझे यूँ ही याद करता होगा जैसे मैं उसके लिए परेशान हूँ वो भी तो होता होगा । लौट जाऊंगी मैं अपने अंकित के पास, समां जाऊँगी उसकी बाहों में, मैं उसके लिए कितना रोयी और तरसी हूँ । क्या गलती की उसने ? बस इतनी ही तो, उसने शादी के लिए थोड़ा समय ही तो मांगा खुद को सेटल करने के लिए और मैंने उसे यह कहते हुए नकार दिया, तुम शायद शादी ही नहीं करना चाहते । मैंने उसकी मज़बूरी नहीं समझी, अब सब समझ आ गया है प्रेम सच्चा हो तो खींचे लिए चला जाता है । मैं आ रही हूँ अंकित, मुझे तुम्हारी हर बात मंजूर है । आ रही मैं…….
सुन कृति,  मैं कल ही जाउंगी, तू अभी फ्लाइट के टिकिट देख ।
अभी, आप भी न दी ,,,,कृति मुस्कुराई ।
फिर मुझे अपनी ही सोंच पर हंसी आ गयी, वाकई मैं बहुत सोचती हूँ, जीने दो, सबको उनका जीवन है । मैंने बेफिक्री से अपने खुले बालों को जोर से झटका दिया और खुल कर हंस दी ।
सीमा असीम सक्सेना मूल रूप से कथाकार और उपन्यासकार हैं और कविताएं लिखना इनको बहुत पसंद है । इनका लेखन थोड़ा  विस्तार लिये हुए है। इन्होंने लगभग 40  कहानियों के अलावा  सात उपन्यास लिखे हैं। उनके 4 कहानी संग्रह, 2 कविता संग्रह और पाँच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं! 
विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं परीकथा, कथाक्रम, कथादेश, साक्षात्कार,हरीगंधा, गगनांचल, पुस्तक संस्कृति, अमर उजाला दैनिक जागरण  आदि में नियमित रूप से कहानियां, कविताएं और आलेख आदि प्रकाशित होते रहते हैं।  इसके साथ ही आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से कहानियों व वार्ता आदि का प्रसारण साथ ही इनको घूमने व थिएटर में काम करने का शौक है । युवा कथाकार का सम्मान और वेस्ट विवुवेर्स अवार्ड मिल चुका है । अभी हाल ही में इंडिया नेट बुक से एक उपन्यास “जाग मुसाफिर” प्रकाशित हुआ है ॥ 
सीमा सक्सेना 
208डी, कॉलेज रोड निकट रोडवेज 
बरेली 243001 उ.प्र. 
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