आज मेरी मेहंदी का दिन है। 
मगर न कोई डी.जे. है… न डेकोरेशन और न ही पार्टी। बात 1980 की  है जब घर का कोई भी  सदस्य दुल्हन को मेहंदी लगा देता था। मैंने शर्माकर अपनी कज़िन को कहा कि मेहंदी में राहुल का नाम ज़रूर लिख देना। 
राहुल के साथ बहुत सी यादें जुड़ी हैं। मेरा बचपना का साथी था। हम साथ-साथ खेले पर जब थोड़े बड़े हुए दूरियां बनती गईं। अब जवानी की तरफ कदम बढ़ रहे थे। समाज की नज़र तो सब पर लगी रहती है। मगर हम दोनों के दिलों में तो एक कशिश मौजूद थी। ज़ाहिर है  आते-जाते एकदूसरे को देखकर हाय-हेलो हो जाती थी।
उस दिन बहुत ही बुरा लगा जब ख़बर मिली कि राहुल नौकरी के सिलसिले में बम्बई जा रहा है। चाहती थी कि जाने से पहले मुझे ज़रूर मिल कर जाए। आँखें उसके आने का इंतजार करतीं। मगर वह तो अब बम्बई में था। कसक थी जो शिकायत कर रही थी कि जाने से पहले मुझे मिल कर क्यों नहीं गया।  
कुछ साल ऐसे ही निकल गए। मुझे महसूस होने लगा कि कि राहुल मुझे भूल चुका है। मगर अचानक एक दिन उसके मम्मी-पापा मेरे घर उसका रिश्ता ले आए। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि आख़िर हो क्या रहा है। मगर दोनों के माता-पिता ने हमारी बात पक्की कर दी।
यानि कि अब बेझिझक हम एक दूसरे से मिल सकते थे। जब भी मिलते बहुत सी बातें करते। ऐसा प्यार का रिश्ता कायम हो गया था कि जिसने कभी छुआ तक नहीं फिर भी अपने को पूरा सौंप दिया था और उस दिन का इंतज़ार करते रहे कि कब हम एक दूसरे के हो जाएंगे। 
फिर वो दिन भी आ गया। मैं डोली में बैठ कर राहुल के घर चली गयी और दो दिन बाद हनीमून के लिए कश्मीर चली गयी। कश्मीर से पहलगाम का रास्ता बहुत सुहाना था और राहुल का साथ, उसकी बातें, उसके गाने और उसका स्पर्श मन को गुदगुदा रहा था। पहलगाम पहुँचते ही पता लगा जिस रेसॉर्ट में बुकिंग कराई थी कंपनी के थ्रू, उस कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया था। सब बातें फ़ोन पर ही हो रही थीं। राहुल मुझे इन्क्वायरी बूथ में बिठाकर खुद रेसॉर्ट में बात करने चले गए और आधे घंटे के बाद एक वेल एजुकेटेड सा कश्मीरी मेरे पास आया और बोला – मि. राहुल ने आपको बुलाया है। पहले तो मैं हिचकिचाई, हल्का सा अंधेरा भी हो गया था। मैंने पूछा – राहुल कहाँ हैं ? वो बोला कि मि. राहुल कुछ फॉर्मेलिटीज पूरी कर रहे हैं। अंधेरा होने की वजह से उन्होंने मुझे भेजा है। मैं उसके साथ चल दी, क्या पता था मेरे जीवन में एक भयंकर मोड़ आने वाला है। 
मैं एक आलीशान घर पर पहुंची। वहाँ देखा कि दूसरे कमरे में कश्मीरी बुजुर्ग और एक अरबी में बातचीत हो रही थी। मैं परेशान थी कि राहुल कहां है। मैंने दो तीन बार ज़ोर सी पूछा भी मगर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। “अरे आप आराम से बैठिये, राहुल आते ही होंगे।” 
मुझे पीने के लिये कहवा दिया गया। मैं तो टेंशन में थी। कहवा पी गयी। मगर पीते ही मुझे बेहोशी आ गयी। बेहोश होते होते यही सुनने को मिला, ‘माफ़ करना बेटी’। मालूम नहीं कब तक बेहोश रही।  मगर बेहोशी में ही मेरा निकाह भी हो गया। जब थोड़ा होश आया तो पाया कि मैं खाड़ी की किसी देश में थी। 
व्हील चेयर पर बिठाकर मुझे बाहर लाया गया। बहुत ही आलीशान कार में बैठकर महल जैसे घर पर पहुंची। आदर सत्कार से एक कमरे में ले गए, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर याद आया कि चलते से उस बुज़ुर्ग ने एक पत्र दिया था। कमरे में जब अकेली हुई तो वो पत्र खोला। उसमें लिखा था, “बेटी मुझे माफ़ कर देना। मैंने इरफ़ान अब्बा को वचन दिया था और जब वह निकाह करने आया तो मेरी बेटी घर से भाग गयी थी। इरफ़ान और उसके अब्बा के बहुत एहसान हैं हम पर। मुझे कुछ नहीं सूझा और मैंने अपनी बेटी कहकर तुम्हारा निकाह कर दिया। तुम अपनी पुरानी ज़िन्दगी भूलकर इरफ़ान के साथ बहुत खुश रहोगी। माफ़ कर देना बेटी।” 
मैं हतप्रभ रह गयी। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ। अनजान लोग! अनजान भाषा! मेरी हालत कुछ विचित्र सी थी। न रो पा रही थी और न ही सहज हो पा रही थी। मैं यह सोच सोच कर मरे जा रही थी कि मैं अचानक मुसलमान हो गयी थी। मुझे राम जी का नाम याद करने में भी डर लग रहा था। दिमाग़ में एक ही बात बार बार फन उठा रही थी ‘मेरे राहुल का क्या हुआ होगा?… मुझे न पा कर वो कैसा महसूस कर रहा होगा! ’
आठ-दस दिन बाद जब मेरी तबियत ठीक हुई तो एक आलीशान पार्टी रखी गयी मेरे स्वागत में। हीरे जवाहरात से सजाया गया और ऐसा महसूस हुआ कि इरफ़ान यहाँ का बहुत अमीर और बड़ा आदमी है, पर ये सब चीजें राहुल के प्यार के आगे मेरे लिए मिट्टी के ढेर के बराबर थीं। रात हुई, सेज सजाई गई और वहाँ मैं राहुल के साथ अपनी सुहागरात की यादों में खोई हुई थी तभी इरफ़ान बहुत प्यार से मेरे पास आया और मेरे बालों में अंगुली घुमाते हुए कुछ बोला। मुझे कुछ समझ नहीं आया और मैंने मुँह फेर लिया। उसने प्यार से गाल सहलाए और उधर मुँह करके सो गया। 
मैं रात भर वहाँ से भागने के मंसूबे बनाती रही। एम्बेसी जाऊंगी, दिल्ली फोन करुँगी या भाग जाऊंगी जैसे तमाम विचार मन में आ रहे थे, पर कुछ करने की हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी। सुना था, सऊदी अरब में औरत को दबाकर रखा जाता है और उन्हें किसी से बातचीत करने की भी इजाज़त नहीं होती। 
सोचते-सोचते सुबह हो गयी और पता चला कि एक लेडी टीचर आई है जो अरबी पढ़ाएगी और मुझे वहां के रंग ढंग में ढालने लगेगी। मगर मैं तो तन-मन से राहुल की पत्नी थी, इरफ़ान की नहीं। एक महीना बीत गया। अबतक मैं थोड़ी अरबी बोलने और समझने लगी थी। और वो रात भी आई जब इरफ़ान ने मुझे बाँहों में भरते हुए कहा कि – मैंने सुहागरात वाले दिन भी कहा था कि मैं तुम्हें सब सुख और भरपूर प्यार दूंगा, पर तुम्हें पति का सुख नहीं दे पाऊंगा। शायद ही ये किसी पत्नी के लिए खुशख़बरी हो, पर हाँ, मेरे लिए ये किसी खुशख़बरी से कम नहीं थी। मेरी आँखों में खुशी के आँसू आ गए और मैं इरफ़ान से लिपट गयी। 
“राहुल चाहें मैं इरफ़ान की बांहों में लिपट जाऊं पर तन-मन से मैं तुम्हारी ही रहूंगी।” मैंने मन ही मन कहा। 
समय बीतता गया और मैं उस माहौल में रमती गयी। कैद तो अवश्य थी, पर पिंजरा नहीं। तीस साल बीत गए और फिर एक दिन पता चला कि इरफ़ान को कैंसर है। मैंने उनकी तन-मन से सेवा की और आखिरी समय में इंडिया वापस जाने की इज़ाज़त मांगी। उन्होंने प्यार से सिर पर हाथ फेरा और आँखें मूँद ली। 
सौ दर्द छिपे हैं सीने में, 
खुद को सज़ा दी हँसकर जीने में।
एक महीने बाद मैं भारत की फ़्लाइट पर बैठी थी। दिल में जो तूफ़ान चल रहे थे उन्हें स्वयं समझ नहीं पा रही थी।  दिल्ली लैंड करते ही सारे शरीर में सिहरन-सी हो उठी। होटल में चेक-इन करके वहीं की एक दुकान से मैंने एक साड़ी-ब्लाउज और एक बड़ी-सी बिंदी का पैकेट लिया। रूम में आईने के सामने चेहरे से नकाब उतारा, बुर्का फेंका, साड़ी-ब्लाउज पहनी और बड़ी-सी बिंदी लगाईं। फिर एक लंबी-सी सांस लेते हुए पल भर में नूर फातिमा से एकता खन्ना हो गयी। 
टैक्सी बुक कराई और सीधे अपनी मम्मी के घर पहुँच गयी। मन तो अपनी ससुराल जाने का था। जब मम्मी के घर पहुंची तो पता लगा कि मेरी शादी के कुछ ही दिन बाद एक्सीडेंट में वो चल बसे। तब मुझे एहसास हुआ कि जब मैं वहाँ से छुपकर फोन करती थी तो आउट ऑफ़ ऑर्डर का जवाब क्यों आता था। निराश होकर मैं टैक्सी में बैठकर अपनी बहन के घर पहुंची। एक दूसरे से मिलकर बहुत रोए और ऐसा अनुभव हुआ कि इन आँसुओं ने मेरी पुरानी ज़िन्दगी बहा दी और मैं बहुत हल्का महसूस कर रही थी। 
मैंने अपनी बहन से राहुल के बारे में पूछा तो वो बोली कि दो-तीन साल तो टच में रहे फिर वो लोग कहीं और शिफ्ट कर गए। मैंने पूछा, “राहुल आजकल रहता कहा हैं?” 
“क्या करोगी राहुल से मिलकर? तीस साल हो गए हैं। उसने भी तो दूसरी शादी कर ली होगी, उसका अपना परिवार होगा और वो तुम्हें भूल भी गया होगा।” बहन ने अपनी बात कह ली। 
पर मेरी जिद्द के आगे वो चुप हो गयी और बोली कि कुछ समय पहले अशोक विहार में किसी फ़्लैट की बालकनी में दिखा था एक बार। 
“दीदी मुझे वहाँ ले चलो… अभी।” 
दीदी ने बहुत समझाया मगर मैं राहुल से एकबार मिलना चाहती थी। तब दीदी ने कहा कि कल सुबह चलेंगे। सारी रात राहुल के साथ बीते पलों को याद करती रही। उसका हँसना, उसका मेरी ओर देखना, उसका स्पर्श और न जाने क्या क्यों चेहरे पर एक मुस्कुराहट देता रहा। 
सुबह उठ, जल्दी से नहाकर दीदी की पिंक साड़ी पहनी क्योंकि राहुल को पिंक कलर बहुत पसंद था। बड़ी-सी बिंदी लगाईं और राहुल को लंबे बाल बहुत पसंद हैं, इसलिए जूड़ा न बनाकर खुले बालों के साथ दिल में अरमान लिए निकल पड़ी। टैक्सी में भी दीदी समझाती रहीं। मैंने कहा कि बस एकबार मिलकर आ जाऊंगी। आधे घंटे में अशोक विहार पहुँच गए। एक शानदार बिल्डिंग के सामने छोड़ दीदी चली गईं।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं जो कर रही हूँ वो ठीक है या गलत तभी वाचमैन ने पूछा – मैडम आपको कहाँ जाना है? मैंने कहा – खन्ना साहब के यहाँ। उसने पूछा कि कौन से खन्ना साहब? मैंने कहा – राहुल खन्ना। वो बोला कि साहब तो अभी पंद्रह मिनट पहले ही गए हैं, पर मैं आपकी बात मैडम से करा देता हूँ। 
“मैडम? राहुल ने दूसरी शादी कर ली क्या ?” मैंने सोचा।
“मैडम, एक मैडम आई हैं, वो राहुल सर से मिलना चाहती हैं।” वाचमैन ने फ़ोन पर कहा। फिर मुझसे बोला कि मैडम नीचे ही आ रही हैं, तबतक आप लॉबी में बैठ जाइए। पांच मिनट बाद ही एक सुन्दर सी महिला मेरे सामने खड़ी थी। बोली – “सॉरी, मैं बहुत जल्दी में हूँ, आप पंद्रह मिनट वेट कर लीजिये वो आ जाएंगे। वाचमैन फैन खोल दो और पानी दे दो।” मैं स्तब्ध थी। बस एकबार मिलने की चाह कुछ और सोचने ही नहीं दे रही थी। इतनी ही देर में राहुल की आवाज आई – “कहाँ हैं, मैडम ?” 
(मेरी आँखों के सामने तीस साल पहले वाला राहुल खड़ा हो गया और मैं ख्यालों में ही उससे लिपट गयी।) 
“बोलिए, किससे मिलना है?” मैं अपने ख्यालों से बाहर निकल एक तरफ खड़ी हो गयी। राहुल के सिर पर खिचड़ी बाल हो गए थे, थोड़ी झुर्रियां आ गयी थीं। कितना बदल गया था वो! 
“एकी तुम!” राहुल प्यार से मुझे बुलाते थे। वो मुझे देखते रहे और मैं उनको तभी वाचमैन बोला – “सर, मैडम चाभी दे गयी थीं।”
“आओ ऊपर चलो।” राहुल ने कहा। फ़्लैट के बाहर खन्ना लिखा था (काश मेरा नाम भी होता)। सोफे पर बैठे, उसने ए.सी. चला दिया और पूछा कहाँ चली गयी थी तुम? मैंने कहा – तुम कहाँ चले गए थे मुझे छोड़कर ? 
राहुल ने बताया कि जब वह रेसॉर्ट पहुँचा तो मैनेजर जा चुका था, वहाँ पर काम करने वालों ने बताया कि पास ही में रेसॉर्ट का मालिक रहता है, उससे बात कर लीजिये। जब मैं वहाँ पहुँचा तो वो किसी अरबी से बात कर रहा था। दस मिनट बाद जब वो बाहर आया तो उसको मैंने सारी बात बताई और कहा कि मेरी वाइफ इन्क्वारी बूथ पर बैठी है, अंधेरा होने वाला है, इसलिए आप आज के लिए रूम दे दीजिये। उन्होंने कहा कि आप रेसॉर्ट जाइए, अपनी फॉर्मेलिटीज पूरी करिए और रूम ले लीजिये। आधे घंटे बाद वापस आया तो तुम वहाँ नहीं थी। बहुत ढूँढा पर तुम नहीं मिली। तुम कहाँ चली गयी थी ?
मेरी आँखें आँसुओं से भर गयी थीं। मैं बोली – जो अरबी वहाँ था, उसीके साथ मैंने ज़िन्दगी के तीस साल बिताए हैं और रोते-रोते सारी कहानी सुना डाली। राहुल की आँखों से भी आंसू छलक गए और मेरे पास आकर उसने मेरे आंसू पोछे और पानी लेने उठा। 
अपने भीतर से बाहर निकल कर मैं और उठी और राहुल की पीठ से लिपट गयी। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगी राहुल! तभी दरवाजे की घंटी बजी है और मैं सोच से बाहर आकर सहज होने का प्रयास करने लगी।
“ये मैं क्या सोच रही थी। अब मुझे चलना चाहिए।“ मैंने मन ही मन कहा। 
तभी सामने राहुल की पत्नी आ गयी। बहुत ही बातूनी। बोली – “सॉरी, मुझे ज़रूरी कहीं जाना था। मेरी 25वीं एनिवर्सरी आ रही है, उसके लिए मैंने साड़ी ऑर्डर की थी उसी की डिलीवरी लेने जाना था।” 
“25वीं एनिवर्सरी यानी राहुल ने कुल पांच साल मेरा इंतज़ार किया!” ये सोचकर मैं मायूस हुए जा रही थी। राहुल अंदर चला गया और उसकी वाइफ मुझसे बात करने लगी। मैंने कहा, मैं चलती हूँ। वो बोली – अरे मैं समोसे लेकर आईं हूँ, चाय पीकर जाइएगा। 
मैं मन ही मन खुद को कोस रही थी कि मैं यहाँ क्यों आई, तीस साल बीत गए हैं. दीदी ठीक ही कह रही थीं, मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था। मेरे लिए राहुल के मन में कोई जगह नहीं है। तभी उसने आवाज लगाईं, भैया आज तो चाय में चीनी पी ही लीजिये, आज तो आपकी फ्रेंड आई है। अंदर से राहुल बाहर निकलते हुए बोले – “फ्रेंड नहीं, तुम्हारी भाभी आई है। एकी ये छोटे भाई राकेश की वाइफ़ है।”
ज़िन्दगी में बहुत मोड़ आए पर इतना सुखद मोड़ भी आएगा, इसकी आशा नहीं थी। राहुल ने प्यार से मुझे गले लगा लिया और बोला – “जितना तुमने इंतज़ार किया उससे ज्यादा मैंने तुम्हारा इंतज़ार किया। मुझे पता था, हमारे प्यार में इतनी ताकत है कि हम फिर मिलेंगे।” उसने मेरा हाथ पकड़ा, कमरे में ले गया और अलमारी खोलकर दिखाई। मेरे कपड़े, मेरा परफ्यूम, मेरी चूड़ियाँ सब संजोकर रखी हुई थीं। मेरी आँखें नम थीं… होंठ फड़फड़ा रहे थे… शब्द बाहर नहीं आ पा रहे थे… 
राहुल ने अपने पुराने अंदाज़ में कहा, “एकी आज तो तुम्हारे ही हाथ की चाय पीएंगे।”

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