भारत सरकार ने यह  पेशकश पहले से ही कर दी है कि वे 18 महीनों के लिये इन तीन कानूनों को लागू नहीं करेगी। सरकार ने किसानों को बातचीत के लिये बुलाया है। सरकार ने यह नहीं कहा कि 18 महीने ख़त्म होते ही कानून लागू कर दिये जाएंगे। जब एक बार बातचीत शुरू हो जाएगी तो जबतक हल नहीं निकलेगा, क़ानून मुलतवी रहेंगे ही। इसलिये किसानों को चाहिये कि वे कानून वापिस लेने की अपनी माँग पर न अड़े रहें। 

पॉप सिंगर रेहाना, पर्यावरणविद ग्रेटा थनबर्ग, पूर्व पॉर्न स्टार मिया ख़लीफ़ा और अमरीकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी ने भारत में चल रहे किसान आंदोलन पर टिप्पणियां करके मामले को अंतर्राष्ट्रीय ट्विस्ट दे दिया है। 
पूर्व वित्त मन्त्री पी.सी. चिदम्बरम ने रेहाना और ग्रेटा के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह अच्छा है कि रेहाना और ग्रेटा थनबर्ग विदेश मंत्रालय को जगाने में सफल होंगी। जागिये विदेश मंत्रालय, आपको कब समझ आएगी कि जो लोग मानवाधिकार और रोज़गार के बारे में चिंतित होते हैं, वे देशों की सीमाओं की परवाह नहीं करते।”
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि अपनी सरकार के “अलोकतांत्रिक व्यवहार” से देश की वैश्विक छवि को जो नुकसान हुआ है, वह सेलिब्रिटी को ट्वीट करने के लिए कहकर बहाल नहीं किया जा सकता है। थरूर ने कहा कि पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया पर भारतीय हस्तियों का प्रतिक्रिया देना शर्मनाक है।”
मीडिया पूरी तरह से बंटा हुआ है। जो मोदी के साथ हैं उनका स्थितियों का देखने का चश्मा दूसरा है। जो मोदी के विरोधी हैं उन्हें लालकिले की हिंसा में भी कुछ ग़लत नज़र नहीं आता। भारत के लिये यह चिन्ता का विषय है कि मीडिया अपना किरदार पूरी तरह से भूल गया है। 
दिल्ली के मुख्यमन्त्री कब अपने पद से हट कर एक्टिविस्ट बन जाते हैं, समझ नहीं आता। जब उन्होंने दिल्ली पुलिस के यात्रा करने के लिये दी गयी दिल्ली ट्रांस्पोर्ट की बसें हटा लीं, तो समझ नहीं आया कि क्या वे दिल्ली पुलिस को किसी अन्य राज्य की पुलिस समझते हैं। 
भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर रिहाना का नाम लिए बिना कहा, “ऐसे मामलों पर टिप्पणी करने से पहले, हम आग्रह करेंगे कि तथ्यों का पता लगाया जाए और मुद्दों की उचित समझ पैदा की जाए… मशहूर हस्तियों द्वारा सनसनीखेज सोशल मीडिया हैशटैग और टिप्पणियों के प्रलोभन का शिकार होना, न तो सटीक है और न ही ज़िम्मेदारीपूर्ण है.”
भारत सरकार के मंत्रियों समेत कई खिलाड़ियों, फ़िल्मी हस्तियों, गायिकाओं ने भी सरकार के समर्थन में ट्वीट किए।
रिहाना की ये बात बॉलीवुड ‘क्वीन’ कंगना रनौत को रास नहीं आई और उन्होंने इस ट्वीट का जवाब काफी तीखे अंदाज में दिया है। कंगना हमेशा से ही कृषि कानून के पक्ष में नजर आईं हैं, अब उन्होंने रिहाना को ‘मूर्ख’ कहा और कहा कि प्रदर्शनकारी किसान नहीं थे, लेकिन ‘आतंकवादी जो भारत को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं’।
न तो सरकार मामला सुलझाने में पहल कर रही है और न ही किसान टस से मस हो रहे हैं। 26 जनवरी को लालकिले पर हुई हिंसा और तिरंगे के अपमान की घटनाओं की दिल्ली पुलिस जाँच कर रही है। कुछ लोग गिरफ़्तार भी हुए है। किसान संगठन एक तरफ़ कहते हैं कि लालकिले पर हिंसा करने वाले भाजपाई थे। मगर दूसरी तरफ़ गिरफ़्तार किये लोगों को छोड़ने की माँग कर रहे हैं। पँजाब काँग्रेस ने गिरफ़्तार किये गये तथाकथित हिंसक उपद्रवियों के लिये वकील मुहैया करवाने की पेशकश भी कर दी है। 
हरसिमरत कौर बादल, सचिन पायलट, सुप्रिया सुले, अरविंद केजरीवाल और शरद पवार किसान आन्दोलन को पूरी तरह से राजनीतिक रंग देने में व्यस्त हैं। शरद पवार को रिहाना, ग्रेटा, मिया आदि के किसान आन्दोलन का समर्थन करने में कोई परेशानी नहीं। मगर जैसे ही भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने उनके विरुद्ध ट्वीट किया तो शरद पवार ने सचिन को नसीहत दे डाली कि अपने क्षेत्र पने क्षेत्र से अलग विषय पर बोलने में सावधानी बरतें। 
एक बात तो तय है कि जो लोग कानून का समर्थन कर रहे हैं और जो लोग उसका विरोध कर रहे हैं, उनमें से अधिकांश को मालूम ही नहीं कि तीन कानून हैं क्या। डॉ. सुशील शर्मा ने किसान आन्दोलन पर वह्ट्सएप पर एक अच्छा और संतुलित संदेश दिया है। उनका कहना है – किसान जिन तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं, वे इस तरह से हैं-
  1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून – 2020
  2. कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून – 2020
  3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून – 2020 
किसान आंदोलन के पक्ष की कुछ बातें 
  1. किसान की माँग यही रही है कि उसे ज़्यादा मंडियाँ चाहिए, लेकिन नए क़ानून के बाद ये सिलसिला ही ख़त्म हो सकता है। 
2 .माँग रही है कि प्रोक्यूरमेंट सेंटर ज़्यादा क्रॉप्स के लिए और ज़्यादा राज्यों में खोलें जिससे अधिकतम किसानों को इसका लाभ मिले. लेकिन सरकार ने प्रोक्यूरमेंट सेंटर ज़्यादातर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में ही खोल के रखा है. इसकी वजह से वहाँ ज़्यादा प्रोक्यूरमेंट होता है और दूसरे प्रदेशों में कम. माँग ये भी रही है कि कॉंट्रैक्ट फ़ार्मिंग कई जगह पर हो रही है लेकिन उसका कोई रेगुलेशन नहीं है, उसका रेगुलेशन लाइए। 
3 MSP को कानून बनाया जाए। 
किसान आंदोलन के विरुद्ध कुछ बातें 
  1. जब सरकार संशोधन के लिए तैयार है तो कानून वापसी की जिद क्यों।
  2. एक ही जिद पर अड़े होने के कारण देश के एक बहुत बड़े तबके का समर्थन लेने में नाकाम।
  3. 26 जनवरी की घटना से देश के लोगों में विश्वास हो गया कि इस आंदोलन के पीछे देश को तोड़ने वाली शक्तियां काम कर रहीं हैं।
अब प्रश्न उठता है कि समस्या का हल कैसे हो। भारत सरकार ने यह  पेशकश पहले से ही कर दी है कि वे 18 महीनों के लिये इन तीन कानूनों को लागू नहीं करेगी। सरकार ने किसानों को बातचीत के लिये बुलाया है। सरकार ने यह नहीं कहा कि 18 महीने ख़त्म होते ही कानून लागू कर दिये जाएंगे। जब एक बार बातचीत शुरू हो जाएगी तो जबतक हल नहीं निकलेगा, क़ानून मुलतवी रहेंगे ही। इसलिये किसानों को चाहिये कि वे कानून वापिस लेने की अपनी माँग पर न अड़े रहें। 
बातचीत के दौरान सरकार किसानों की एम.एस.पी की माँग को अधिक संवेदनशील ढंग से निपटाने का प्रयास करे।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

1 टिप्पणी

  1. व्यवस्थित और शानदार
    संपादकीय लेख
    यशस्वी लेखक तेजेन्द्र शर्मा के नेतृत्व में, इस पुरवाई पत्रिका की ख़ुशबू पूरे विश्व में महकती रहे ।
    अनंत शुभकामनाएं!

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