“मॉम…..!” पौने पांच साल के बच्चे की आंखों में बालसुलभ उल्लास की इन्द्रधनुषी चमक थी| उसने नई क्रेटा के बाहर इंगत किया| मां ने नन्ही तर्जनी का अनुसरण करते हुए नजर दौड़ाई|
खिलते गुलाबी, सौम्य आसमानी और सजीले बैंगनी का अद्भुत रंग संयोजन| कुछ बड़े पहिए, छोटा-सा हैंडल, नन्हे पैडल और इत्ती-सी तिकोनी सीट| एक क्षण के लिए आधुनिक मां भी उस दिलकश खिलौना साइकल को अपलक निहारती रह गई|
“डेढ़ सौ में एक, दो सौ में दो,….!” 10-12 साल का दुबला-सांवला लड़का, ठेठ फुटपाथिए विक्रेताओं वाले अंदाज में बोलता प्रकट हुआ, दोनों हाथों में ढेर सारी रंगीन साइकलें थामें, जिन्हें वह सर्कस के कलाबाजों की फुर्ती से थिरका रहा था|
“एकदम मस्त है, मेडम| देख लो, देखने के पैसे थोड़े न लगते है|” पेट की आग वाचालता के लिए मानों ईंधन का काम कर रही थी|
“चलो, एक सौ पच्चीस दे देना|….अच्छा, आप बोलो, कित्ता दोगे?…..सौ..?” उसकी एक नजर सिग्नल पर सेकंड्स के घटते क्रम पर थी| 70 सेकंड में जीवनयापन की सम्भावना की तलाश के लिए अभ्यस्त आंखों, हाथों और जुबान में गजब का समन्वय और चपलता थी|
तब तक कार में बैठे बच्चे के हाथ में एक इन्द्रधनुषी साइकल आ चुकी थी| विस्मय और प्रसन्नता से प्रस्फुटित आंखों से वह एक बार साइकल को उलट-पुलट कर देखता और फिर मां को|
“फाइनल रेट, पचास लग जाएगा मेडम| जल्दी बालो|” लड़के के पास चंद पलों की मोहलत शेष थी|
तभी बाजू में एक ऑडी आकर रुकी और परिचित आवाज मां के कानों में आ पड़ी, “हाय डार्लिंग! व्हाट्स अप?”
अपनी संपन्न सहेली के ऐन वक्त पर टपकने से नवधनाढ्य मां बुरी तरह झेंप गई| उसने तुरंत बच्चे के हाथ से साइकल छीनकर लड़के को पकड़ाई और झिड़कते हुए जोर से बोली, “कितनी बार मना किया, समझ नहीं आता? जबरदस्ती पकड़ा दी, चलो हटो, नहीं तो थप्पड़ खाओगे|” लड़का ढीठ था, तुरंत तुनककर बोला, “ओ मेडम, नहीं लेना तो मत लो, थप्पड़ क्यों मारोगे…?” मां अनसुना कर सहेली की ओर मुखातिब हो गई, “यू नो, दिस वेंडर्स…! पता नहीं कैसे बच्चों को अटरेक्ट कर लेते हैं|” मां ने खिसियानी हंसी के साथ बिना पूछे सफाई दी| सहेली मुस्कराई कि तभी सिग्नल हरा हो गया| सहेली ने हाथ लहराया और ऑडी को गति दे दी|
सिग्नल के 70 सेकंड में घटित छोटी-सी घटना से दो चीजों को चोट पहुंची| पहली, बच्चे का इन्द्रधनुषी उल्लास, जिसका एक टुकड़ा छिटककर सीधे उसके दिल में जा धंसा और दूसरी, मां की हाई-सोसाइटी इमेज| मायूस बच्चा चुपचाप खिड़की के बाहर ताकने लगा| उसने आसमान में इन्द्रधनुष ढूंढने की कोशिश की पर आसमान बेरंग था| अचानक मां ने रफ़्तार बढाई और ऑडी को ओवरटेक करते हुए ‘टॉयज वर्ल्ड’ के शोरूम के सामने गाड़ी लगा दी| हालांकि जब वह ऑफिस के ब्रेक में बच्चे को स्कूल से घर छोड़ने आती है, तो बेहद जल्दी में होती है| इसीलिए बच्चे की सवालिया निगाह मां पर टिक गई|
“डोंट बी सैड, बेटा! चलो, एक टॉय ले लो| लेकिन जल्दी, ओके?” बच्चे की सूनी आंखों में एक जुगनू टिमटिमाया फिर बुझ गया, “नहीं चाहिए, मॉम|” मॉम व्यू मिरर में यह देखना नहीं भूली कि ऑडी वाली दोस्त ने उसका यहां रुकना नोटिस कर लिया है| मॉम की चोटिल इमेज को कुछ राहत मिली| “शुअर? फिर रोड साइड टॉयज के लिए जिद तो नहीं करोगे, प्रॉमिस?” बच्चे ने सिर हिलाया और फिर खाली आसमान में गुम हो गया|
घर आकर बच्चा अपने कमरे में चला गया| उसका कमरा बड़े शौक और करीने से सजाया गया है| दोनों ओर आदमकद टेडी बेयर, तकिये के पास मनमोहक सॉफ्ट टॉयज, दीवार पर लाल-नीला स्पाइडरमैन, एक पूरी अलमारी तो ब्रांडेड खिलौनों से पटी पड़ी है| (हालांकि बच्चे को सबसे प्यारा है, अपना पुराना बदरंग ‘बनी’|) छत पर चांद-सितारे टांके गए है, जो रात की मद्दिम रौशनी में झिलमिलाते हैं, ताकि उसे अंधेरे में डर न लगे| लेकिन फिर भी बच्चा कभी-कभी डर जाता है, जैसे उस रात डर गया| वह बगल में ‘बनी’ को दबाए मॉम के कमरे तक गया| उसने बाहर ही सुना, मॉम डैड को बता रही थीं कि कैसे एक सस्ते खिलौने के पीछे उसकी हाई सोसाइटी दोस्त के सामने किरकिरी हो गई| और यह भी कि बच्चे की ‘चॉइस और बिहेवियर अपग्रेड’ करने की जरूरत है| बच्चे को ये ज्यादा समझ नहीं आया| पर वह अंदर नहीं गया, वापस अपने कमरे में लौट आया| उस रात उसने सपने में देखा कि वह एक सफ़ेद पंछी बनकर आसमान में उड़ रहा है| उड़ते-उड़ते वह इन्द्रधनुष के पास जा पहुंचा, लेकिन जैसे ही उसे छूने को हुआ, धड़ाम से धरती पर आ गिरा|
रोज सुबह डैड बच्चे को स्कूल छोड़ते हैं और लौटते में वह मॉम के साथ आता है| बच्चा सुबह गाड़ी के बाहर नहीं देखता| उसे सुबह की सड़क अच्छी नहीं लगती| सिर्फ छोटी होटलों और ठेलों से निकलती चाय की भाप, सड़क पर सफाई के साथ उठता धूल का गुबार और हर नुक्कड़ पर स्कूल बस के इंतजार में अलग-अलग यूनिफार्म में एक-से बच्चे, होमवर्क और क्लासवर्क के बीच उलझे, कुछ अधजगे, कुछ अनमने| उसे तो लौटते वक्त की रौनक बहुत भाती है| बच्चों के अस्त-व्यस्त कपड़े, खुले बेल्ट, ढीली टाई, बचे टिफ़िन, खाली बोतलें और खिलखिलाती हंसी| उसे जल्दी बड़ा होना है, फिर वह भी स्कूल बस से आएगा, खूब मस्ती करते हुए| और दोपहर में उसे दिखती है, लोगों की चहल-पहल, बाजार की सज-धज, दौड़ता ट्रेफिक, रोकता सिग्नल और सिग्नल पर बिकते इन्द्रधनुषी खिलौने| जितनी देर गाड़ी रूकती, वह बस इन्हें निहारता रहता| किसी दिन तुरंत हरी बत्ती मिल जाए तो उदास हो जाता और दौड़ती गाड़ी से रंगीन खिलौनों की झलक, ओझल होने तक देखता| लेकिन इस घटना के बाद उसका यह पसंदीदा मन बहलाव छीन गया था| अब वह चोरी से, बस एक उड़ती निगाह डाल लेता पर जैसे ही कोई बेचने वाला उसे ताकते देख इधर आता, वह तुरंत दूसरी ओर देखने लगता| बच्चे की नजर अनायास उस साइकल वाले सांवले लड़के को ढूंढती, जो अक्सर वहीं घूमता मिलता| कहते हैं, गरीब की फटी झोली में स्वाभिमान ज्यादा देर नहीं टिकता| पर लड़का विरला था, स्वाभिमान मानों हथेली पर लिए चलता हो| अब वह उनकी कार के पास फटकता भी नहीं था, अनदेखा कर निकल जाता| जाने क्यों लड़के को लगता, जैसे बच्चे की सूनी आंखे उसका पीछा करती हों| वह भी कभी-कभी दूर जाकर कनखियों से बच्चे को देख लेता| नजर टकरा जाए तो दोनों झेंपकर इधर-उधर देखने लगते| बच्चा गौर करता, दूसरे लड़कों के पास अलग-अलग सामान थे, गुड़िया, टेडी, मोबाइल स्टैंड, कार के शीशों के कवर लेकिन लड़के जैसी इन्द्रधनुषी साइकल किसी के पास नहीं थी| और फिर एक दिन लड़के के हाथ में भी साइकल की जगह की-रिंग आ गए| बच्चे ने उस दिन सपने में देखा कि वह इन्द्रधनुष के पकड़ने के लिए दौड़ा, खूब तेज, पर इन्द्रधनुष आसमान से फिसलकर तालाब में डूब गया|
सब बच्चों की तरह, बच्चे के लिए साल का सबसे अच्छा दिन है, उसका जन्मदिन! इस बार पांचवा जन्मदिन था, सो खूब धूमधाम से मनाया जाना तय हुआ| दादू-दादी दो दिन पहले ही आ गए| जब वो दोनों आते हैं, बच्चे को घर खूब अच्छा लगने लगता है| मॉम ने बर्थ डे की खूब सारी तैयारियां की थीं| मॉम को पता है कि उसे कलरफुल चीजें कितनी अच्छी लगती हैं, खासकर इन्द्रधनुष| शायद मॉम ने उस दिन उसके आंखों में उगा इन्द्रधनुष देख लिया था, जो बाद में गायब हो गया| इसीलिए इस बार मॉम ने ‘रेनबो थीम’ सोची| डेकोरेशन, केक, कपड़े, गेम्स ….सब रेनबो थीम पर| और बर्थ-डे गिफ्ट भी… एक रंग-बिरंगी साइकल, बड़ी वाली, सच्ची की|
बर्थ-डे वाले दिन पूरे घर में सुबह से रौनक हो गई| उसे स्कूल से लेने दादू-दादी आए| वहीं से वे सीधे बर्थ- डे गिफ्ट लेने चले गए| मॉम चाहती थी कि बच्चा साइकल खुद पसंद करे| मॉम-डैड जब ऑफिस लौटे तो पोर्च में नई साइकल खड़ी दिखी, महंगी, गियर वाली, ब्रांडेड|
शाम की पार्टी शानदार रही| झिलमिलाते कपड़े, दमकते चेहरे, थिरकते कदम, महकते व्यंजन, बिखरती हंसी| आलीशान पार्टी होस्ट करने की तारीफें बटोर कर ममा- डैड थककर चूर हो गए| मॉम खास तौर पर खुश थीं, सब कुछ ठीक रहा, बच्चे के चेहरे की रौनक लौट आई| मॉम ने बच्चे को लाड़ से पास बुलाया और पूछा “हैप्पी..?” बच्चे के होठों पर नन्हीं मुस्कान थिरक गई और आंखो में वही इन्द्रधनुषी चमक| मॉम निहाल हो गई, अपनी सूझबूझ भरी परवरिश पर अभिमान हो आया| आज की पूरी ‘रेनबो थीम’ की मेहनत सफल हो गई और सबसे अहम, बच्चे की पसंद ‘अपग्रेड’ हो गई| बच्चा अपने कमरे में जा चुका था, जहां उसे आज मिले ढेर सारे सुनहले-रुपहले गिफ्ट पैक्स उसकी राह ताक रहे थे|
“काफी देर हो गई, आज न गिफ्ट्स दिखाने आया, न हमें बुलाया?” मॉम को कुछ देर बाद ध्यान आया|
“स्ट्रेंज! और नई साइकल….? वो चलाई या नहीं…?” डैड ने भी हैरानी जाहिर की|
“अरे, आज टाइम ही कहां मिला! हां, पर ….साइकल से याद आया….” दादी ने सोचते हुए कहा, “हम तीनों स्कूल से लौट रहे थे, तो सिग्नल पर एक बड़ी अजीब बात हुई| एक दुबला-सांवला-सा लड़का, होगा 10-11 साल का, दौड़ता हुआ आया और बेटू को एक खिलौना साइकल थमा दी, बोला कि ‘मेरे को पता है, बाबा को ये बहुत पसंद आई थी, सारी बिक गई, पर मैंने बाबा के लिए एक संभालकर रख ली थी कि कभी खरीदने को पूछेंगे तो झट-से दे दूंगा| आज शायद बाबा का हैप्पी बड्डे है| आज ईस्कूल के कपड़ों की जगह नए कपड़े जो पहने है| मेरा छोटा भाई भी स्कूल जाता है न, इसीलिए मेरे को मालूम है|’ मैंने पैसे देने के लिए पर्स खोला, सीधे पांच सौ का नोट हाथ में आया, सोचा, चलो आज के शुभ-दिन कुछ दान-पुण्य ही सही पर वह बोला, ‘नहीं अम्मा, आज पैसे नहीं, ये मेरी तरफ से है|’ और ‘हैप्पी बड्डे’ बोलकर भाग गया|”
मॉम कुछ पलों के लिए जड़ हो गईं, फिर बच्चे के कमरे की ओर दौड़ी पर बच्चे की हंसी की आवाज सुनकर बाहर ठिठक गईं, जरा-सा दरवाजा खोलकर अंदर झांका| सारे महंगे तोहफे एक ओर पड़े थे, बिना खुले| बच्चा हाथ में रंगीन साइकल लिए, ‘बनी’ को खिलौना साइकल मिलने की कहानी सुना रहा था और चारों तरफ एक अनोखी इन्द्रधनुषी आभा पसरी थी|