भारत में वृत्तचित्र फ़िल्मों को अभी भी इतिहास और समय के ज्ञान और प्रलेखन के स्रोत के रूप में नहीं समझा जाता है। स्वतंत्र निर्माण (इंडी) बतौर तनिष्का मेरी पहली डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म थी जिसे बनाने में लगभग 3-वर्षों का समय लगा। वर्ष 2011 में जन्मी तनिष्का ढाई वर्ष की उम्र से अपनी मां गुरु मंजू मणि हतवलने से भरतनाट्यम सीख रही है और कलाकार बतौर रंगमंच पर भी सक्रिय है। इस अबोध उम्र में ही उसके लिए जीवन का मतलब कला है और यही उसकी दिनचर्या भी जब वह लगातार रंगमंच और नृत्य के कलाकारों से घिरी रहती है।
मेरा दृढ़ विश्वास है कि कला में हम बहुत आदान-प्रदान करते हैं और अपने शिल्प को सचेत और अवचेतन रूप से विकसित करते हैं। आधुनिक समय और बदलते जीवन में जहां न तो माता-पिता और न ही शिक्षक बाल कलाकारों को शिक्षित और मार्गदर्शन करने के बारे में जानते हैं, तनिष्का अपनी मां के निर्देशन में विधिवत शास्त्रीय नृत्य की तालीम ले रही है और अपनी कला को समृद्ध कर रही है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह फिल्म
तनिष्का की प्रतिभा किसी से छुपी नहीं है। उसके भीतर का कलाकार बचपन में क्या सोच रहा, कैसे पनप रहा, कैसे सीख रहा … यह सब तो है ही, उसका समय भी इस फ़िल्म में क़ैद है।’तनिष्का’ फिल्म की यात्रा हममें से कईयों के भीतर की यात्रा हो सकती है – ऐसा मुझे लगता है। बचपन हमारे भीतर कई सारी संभावनाओं को सहेज कर रखता है। सिनेमा या कला से मेरा जुड़ना इत्तिफ़ाक़ नहीं था लेकिन उम्र के एक मोड़ पर यह तय करना कि आगे जीवन को उसी तरह से देखना है, यह आसान नहीं था। मैं आज भी बार-बार अपने बचपन में जाता हूँ और सोचता हूँ ‘अरे मैं तब ऐसा कर लेता’ या ‘काश कोई मुझे उस रास्ते मोड़ देता’। यक़ीनन मैं आज जो कुछ भी कर पा रहा उसमें बचपन की ही, अवचेतन की ही कई सारी चीज़ें मौजूद हैं। मेरे अवचेतन में बचपन में पढ़ी किताबों/यात्राओं की कई सारी तस्वीरें हैं जो आज के किसी काम में अनायास आ जाती हैं। ऐसे में तनिष्का को जब देखा तो लगा कि इस लड़की के भीतर इस उम्र में क्या चल रहा होगा? जब वो सीख रही या perform कर रही? जब वो स्टेज पर नहीं भी होती तो क्या सोचती रहती है? इन्हीं सारे सवालों के साथ इस फ़िल्म की यात्रा शुरू हुई। तनिष्का अपने आगे के जीवन में क्या करेगी – यह मुझे नहीं मालूम। लेकिन उसका आज किसी तरह बचा लेना मुझे ज़रूरी लगा। यह तनिष्का एक ‘व्यक्ति’ से ज़्यादा तनिष्का एक ‘कलाकार और बच्चे और उसके बचपन’ की यात्रा को बचा लेने जैसा है। कोशिश यही है कि उसकी सीख, उसकी ज़िद, उसका समर्पण इस फिल्म में दिखाई दे। उसके बचपन, नृत्य और प्रशिक्षण को इस फ़िल्म में हमने दिखाने की कोशिश की है। उसके भीतर का कलाकार इस उम्र में क्या सोचता है, यह भी इस फिल्म में कहीं दर्ज करने की कोशिश रही।
इसके लिए हमने केवल उसके साथ समय बिताया। कोई स्क्रिप्ट नहीं। हाँ थोड़ा बहुत ज़रूर सोचा कि क्या होना चाहिए। कोई डायलॉग उसे नहीं दिया। सब कुछ त्वरित, spontaneous। महेश्वर, केरल, भोपाल के अलावा, तनिष्का के साथ रेल-बस यात्राओं, मंच व प्रदर्शन पूर्व सहित सीखने और उसके जीवन के दृश्य इस फिल्म में हैं। यह एक धीमी नॉन-लीनियर कथानक वाली प्रयोगधर्मी डॉक्यूमेंट्री फिल्म है जिसमें नाटकीयता सहित आम-प्रचलित तकनीक मसलन साक्षात्कार, पार्श्व विवरण भाष्य आदि नहीं है।
फिल्मांकन के दौरान
फिल्मांकन अपने आप में मेरे लिए एक अनूठा अनुभव था। मैं पटकथा लेखन का छात्र रहा हूं, लेकिन मैंने एक नियोजित कहानी के रूप में इस फिल्म को नहीं सोचा। हालाँकि, हमने कुछ अवधारणाएँ बनाई और उन्हें मंजू जी के साथ साझा किया जो तनिष्का के लिए कला अभ्यास के पाठ में बदल गया और फिर हमने शूटिंग की। लेकिन हमने कभी स्क्रिप्ट का इस्तेमाल ही नहीं किया। इसे फिल्म देखने के दौरान देखा और महसूस किया जा सकता है। मेरा अंतिम उद्देश्य उस समय को संरक्षित करना था कि कैसे एक बच्चा अपने कौशल को अर्जित कर रहा है,अपने शिल्प पर काम कर रहा है और साथ ही साथ अपना जीवन जी रहा है। मैं उस यात्रा को कैद करना चाहता था।
प्रदर्शन
दो साल की किसी तरह तो दो पैराग्राफ में समा जाते हैं, लेकिन स्वतंत्र सिनेमा के अपने संघर्ष हैं। सिनेमा बना देना ही ज़रूरी नहीं, उसके प्रदर्शन, प्रमोशन यह भी मायने रखता है। प्रदर्शन की शुरुआत हमने भोपाल के अलियांस फ़्रांसेस के साथ की। जहाँ फिल्म के आरंभिक 6 प्रदर्शन ‘केवल आमंत्रितों’ के लिए रखे गए जिनमें कला, साहित्य, संस्कृति, नृत्य, सिनेमा, रंगमंच से जुड़े दर्शक थे। उसके बाद केरल के 14वें SiGNS (साइन्स) फिल्म फेस्टिवल में अप्रैल 2022 में फिल्म का प्रदर्शन हुआ। फिर जुलाई में 19वें इंडियन फिल्म फेस्टिवल ऑफ स्टुटगार्त,जर्मनी में फिल्म का यूरोपियन प्रीमियर हुआ और वहाँ यह फिल्म जर्मन स्टार ऑफ इंडिया श्रेणी में नामांकित हुई। इसी बीच मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग ने भारत भवन के ‘युवा’ महोत्सव में फिल्म का विशेष प्रदर्शन किया। इसके बाद फिल्म ने शिमला, दिल्ली, मुंबई, बांग्लादेश, भोपाल, जयपुर आदि शहरों के समारोहों में शिरकत की। अब तक देश-दुनिया में 20 से ज़्यादा समारोहों/आयोजनों में फिल्म के प्रदर्शन हो चुके हैं। कोशिश ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ को लेकर भी की जा रही है।
किसी भी अन्य कलाकृति की तरह इस फिल्म की यात्रा तो अब तय होती है। कोई दावा नहीं कि यह बेहतरीन काम ही होगा। बहुत कुछ रह गया है, उसका भी अफ़सोस है। हाँ, फिल्म देखने का अनुभव और एक ईमानदार कोशिश ज़रूर दर्ज होगी, इतना भरोसा है।
फिल्म का नाम : तनिष्का
68 मिनट/ डॉक्यूमेंट्री/हिन्दी/
पटकथा, निर्माण व निर्देशन: सुदीप सोहनी
छायांकन: अशोक कुमार मीणा, अनिरुद्ध चौथमोल, सुदीप सोहनी