वह पूरे मुहल्ले में बदनाम था। हर कोई उससे किनारा करता, ऐरा-ग़ैरा तो उसका नाम भी डरते हुए लेता। पैसे वाले तो उसे गुंडा समझते। वह मुहल्ले का दादा समझा जाता था।
उसका नाम बिलावल था। मगर उसे बुलाते थे बिलू दादा। रंग का काला-कलूटा, घुँघराले बाल, छोटे पर सख़्त, कितना भी तेल लगाने से नर्म नहीं होते थे; और न ही कंघी करने से कभी ठीक होते। चेहरा बड़ा गोल, आँखें छोटी, अभद्र जिनमें हर वक़्त हरकत होती। नाक लंबा, पर नथुने चौड़े, होंठ मोटे, दाँतों के बीच रिक्त स्थान, मुसाक लगाने पर होंठ लाल और दाँत सफेद हो जाते थे। अगर पाना खाता तो दाँत और होंठ दोनों लाल। छाती चौड़ी, बाजू सख़्त और मजबूत, उसके चेहरे पर ऐसा रोब (दबदबा) रहता था, अगर किसी की ओर ग़ुस्से से निहारता भी था तो उस खंध को कँपकँपाहट महसूस हो जाती थी। कड़कती आवाज़ हर वक़्त गूँजती रहती। अगर बात करना शुरू करता तो फिर खुदा ही उसे बख़्शे। फुटबाल का चैम्पियन, ज़्यादातर खेल में सेंटर फारवर्ड खड़ा रहता। मुक्केबाजी में प्रवीण, हर वक़्त इसी बात पर तवज्जो कि दायाँ मुक्का कैसे लगाया जाए और बायाँ पंजा कैसे चूकना चाहिए।
मेरी उसके साथ पहचान कोल्हूवाड़ी में हुई थी। ज्यादातर मकरानी की कैबिन में बैठा रहता था। जाँघें टेबल पर और पीठ दीवार के साथ सटी हुई। पानी और चाय के ग्लास, कभी भरे, कभी खाली, हमेशा उसके आगे पड़े रहते थे। मैं गुज़रता तो ऊँची आवाज़ में कहता-मास्टर आओ, चाय पी लो।
मुझे कभी वह मास्टरऔर कभी साईंकहकर संबोधित करता। धीरे-धीरे हमारा नाता गहरा होता गया। मुझे उसका सिंधी में बात करने का लहज़ा बहुत अच्छा लगता था। चाहता था कि वह किस्से सुनाता रहे। अगर उसके करीब जाता तो प्यार से उसके गाल पर थाप देते हुए पुचकारता और उसके हाथ में अपना हाथ दे देता। मेरे दूसरे दोस्तों को हमारा साथ न भाता। पड़ोसियों को भी रंज था। रिश्तेदार भी तंग थे। मास्टरजी भी ठीक नहीं समझते थे। शार्गिद कुछ कहते तो नहीं थे, मगर बिलू दादा की दादागिरी के किस्से बढ़ा-चढ़ाकर बयान करते थे।
एक दिन हेड मास्टर ने भी आख़िर कह ही दिया-आपको अपने जैसे पढ़े-लिखे लोगों की सोहबत करनी चाहिए।रिश्तेदारों ने कहा-तुम्हें दूसरा कोई नहीं मिला, जो इस शेख़ीबाज़ के साथ दोस्ती कर ली।
दोस्तों ने तो डाँटते हुए कहा-यार, अगर तेरा साथ ऐसे गुंडों के साथ है तो हमारी ख़ुदाहाफ़िज़ है।
मैंने भी किसी की कोई परवाह नहीं की। आख़िर दोस्ती जो ठहरी।
एक दिन जैसे मैं कोल्हूबाड़ी पहुँचा, देखा तो भीड़ जमा थी। शेार मचा हुआ था। बिलू की गालियों की बौछार पड़ रही थी। मैंने सोचा, अब ख़ैर नहीं। जाने क्या हुआ है? भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ा। देखा तो एक कार खड़ी थी। उसके सामने बिलू एक मोटे सेठ को गर्दन से पकड़कर खड़ा था।
साला हरामी, अगर तुझे कार चलानी नहीं आती तो क्यों चलाता है?
सेठ मछली की तरह फड़फड़ा रहा था। क्या तुम सेठ लोग दुनिया के नशे में इतने अंधे हो गए हो कि आँखें बंद करके ग़रीबों के ऊपर कार चढ़ा लेते हो।
मैंने जाकर बिलू को पीछे से कसकर पकड़ा। मेरी ओर पलटकर कहा-साईं देखो, यह हरामख़ोर कैसी बेपरवाही से कार चलाता है। ग़रीब लड़की पर कार चढ़ा दी। उसे अस्पताल पहुँचाने की बजाय, कार भगाकर ले जा रहा था।ऐसा कहते हुए एक ज़ोरदार मुक्का उसे मारा। मैंने उसके हाथ को रोका। जब उसका जोश कुछ ठंडा हुआ तो सेठ से कहने लगा-ले चल इस छोकरी को कार में।उसे कार में लेकर अस्पताल आए। डॉक्टर की फीस के अलावा, लड़की के माँ-बाप को भी पचास रुपये दिलाए। तब जाकर सेठ की जान बख़्शी।
एक दिन, जैसे ही स्कूल में क़दम रखा, लड़कों ने कहा-साईं, कल रात हमारे मुहल्ले में बड़ा झगड़ा हुआ।मैं समझा, ज़रूर बिलू ने तीन-चार शरीफ़ों की खाल उधेड़ी है। विचारों की ख़ूब पिटाई की और उन्हें अधमरा कर दिया।
मुझसे अब पढ़ाया नहीं गया। बेचैनी ने घेर लिया कि कल रात न जाने कौनसी वारदात हुई। जैसे-तैसे समय बीता। जब स्कूल से छुट्टी मिली तो सीधे उसी ओर गया। देखा तो झाँगिया की कैबिन में भला आदमी सूजी हुई आँख लिए बैठा है। जाकर उसके पास बैठा तो उसने होटल के लड़के को चिल्लाकर कहा-चाय लेकर आओ।
मैंने कहा-मैं तुम्हारी चाय नहीं पिऊँगा।
आखिर क्यूँ?’
तुमने कितनी बार मुझसे वादा किया है कि तुम दादागिरी नहीं करोगे। मगर दिन दुगुनी, रात चौगुनी तरक्की करते जा रहे हो।
साईं, पहले मेरी बात तो सुन लो। रात क्या हुआ? तीन हरामज़ादे सूट-बूट में सजे हुए आए और पड़ोस की लड़कियों के आगे-पीछे फिरने लगे। ऐसे में तुम ही कहो साईं कि बिल्लू चुप करके बैठे? दो-तीन थप्पड़ लगाकर सालों को सबक़ सिखा दिया।
एक दोस्त की शादी में, मलीर जाने की दावत आई। बिलू दादा से कहा कि मिलकर चलेंगे। प्रोग़्राम बनाया कि यहाँ से शनिवार को, दिन के समय कोल्हूवाड़ी से निकलकर लीमार्केट के पास से बस पकड़कर मलीर चलेंगे। निश्चित दिन, अभी कोल्हूवाड़ी से सौ क़दम भी नहीं चले तो दीवार के किनारे किसी दरिद्र की लाश नज़र आई। समझ में तो यही आया कि कोई परदेसी बीमार है, जिसे रात की सर्दी ने जकड़ लिया है। देखते ही कहा-साले को आज और इसी जगह ही मरना था।
पल दो रुककर बोला-साईं! पहले इसे ठिकाने लगाएँ।मैं कुछ कहूँ उससे पहले ही बोल उठा-किसी की शादी में जाने के बजाय किसी की मौत में जाया जाए तो भला है।
मैं चुप होकर खड़ा रहा। बग्गीवाले को बुलाया। बग्गीवाला साफ जवाब दे गया, यह कहकर कि मैं अपनी बग्गी पर लाश नहीं ले जाऊँगा। पर सामना बिल्लू से हुआ था, जिसने उसे कमीज़ से पकड़कर नीचे उतारा। लाश को बग्गी में रखा। बग्गीवाला कुछ न कहकर दीवार की तरह मौन रहा। आख़िर बग्गी में मस्जिद तक पहुँचे। बिलू के पास पैसे नहीं थे। मेरी भी तंगी थी, क्योंकि महीने की आख़िरी तारीख़ें चल रही थीं। कफ़न-दफ़न का खर्च कहाँ से आए
बिल्लू, अब क्या होगा?’
साईं ये काले धंधे वालेसीमेंट की बनी खड़ी इमारत की ओर इशारा करते हुए कहा-हमारे ही पैसों से धनवान बने हैं। आज हमारी मौत पर उन्हें पैसे देने ही होंगे।मुझे लाश के पास खड़ा करके, खुद सीमेंट वाली इमारत में घुस गया। थोड़ी देर के बाद लौट आया। इसके एक हाथ में दस-दस के दो नोट थे और दूसरे हाथ में खुला हुआ चाकू।
बिल्लू यह चाकू!
साईं, पहले तो वे आनकानी करते रहे, मगर इसे देखकर राह पर आ गए।
जैसे ही छुट्टियाँ ख़त्म हुईं, मैं कराची चला गया। लौटने पर बहुत उत्सुक था कि बिल्लू से मिलूँ। जब झाँगिया की कैबिन के पास पहुँचा तो देखा वहाँ बिल्लू न था। झाँगिया ने बताया कि बिल्लू मकरान चला गया है।
क्यों?’ मैंने तत्परता से पूछा।
साईंसीमेंट की इमारत की ओर इशारा करते हुए कहा-सेठ साहब ने बिल्लू को गुंडा एक्ट के तहत निर्वासित घोषित करा दिया।
मैं सोच में पड़ गया। क्या बिल्लू सचमुच गुंडा था।
: परिचय :
अयाज़ क़ादरी 
जन्म: 19 जनवरी 1927- 15 दिसंबर 1997) 
उन्होंने हिंदी साहित्य में पी.एच.डी की; कराची विश्वविद्यालय में सिंधी विभाग के प्रधानाचार्य रहे। वे एक अच्छे कहानीकार, कवि एवं निबंधकार थे। उनके दो कहानी-संग्रह बिल्लू दादा (1957), कहानी हर दौर की (2008) प्रकाशित हुए। उनकी अन्य पुस्तकें हैं-सिंधी ग़ज़ल का विकास (1984), दो संग्रह प्रतिशष्ठि सिंधी समकालीन कवि शेख़ आयाज़ र लिखे- ‘शाह लतीफ़  की कविता’ (काव्य का गध्य में हिंदी अनुवाद) और ‘अब्दुल जुल्फ़ अयाज़’ (शायरी 2007)
पता: महलो मियां की गड, लारकाणो सिंध, पाकिस्तान।  
देवी नागरानी
जन्म: 1941 कराची, सिंध (तब भारत), 12 ग़ज़लव काव्यसंग्रह, 2 भजनसंग्रह, 12 सिंधी से हिंदी अनुदित कहानीसंग्रह प्रकाशित। सिंधी, हिन्दी, तथा अंग्रेज़ी में समान अधिकार लेखन, हिन्दीसिंधी में परस्पर अनुवाद। श्री मोदी के काव्य संग्रह, चौथी कूट (साहित्य अकादमी प्रकाशन), अत्तिया दाऊद, व् रूमी का सिंधी अनुवाद. NJ, NY, OSLO, तमिलनाडू, कर्नाटक-धारवाड़, रायपुर, जोधपुर, केरल व अन्य संस्थाओं से सम्मानित। डॉ. अमृता प्रीतम अवार्ड, व् मीर अली मीर पुरूस्कार, राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद व् महाराष्ट्र सिन्धी साहित्य अकादमी से पुरुसकृत। सिन्धी से हिंदी अनुदित कहानियों को सुनें @ https://nangranidevi.blogspot.com/   संपर्क : dnangrani@gmail.com 

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