Friday, October 4, 2024
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डॉ मनीष कुमार मिश्रा की दो ग़ज़लें

(1)
कुछ गुनाह हो जाएं तसल्ली होगी
वरना तो जिंदगी कोई खिल्ली होगी ।
अपने हुक्मरानों से सवाल नहीं करती
कौम यकीनन वो बड़ी निठल्ली होगी ।
काम बनने बिगड़ने के कई कारण होंगे
पर दोहमतों के लिए काली बिल्ली होगी ।
झूठ के चटक रंगोंवाली चंचल लड़की
जितनी शोख उतनी ही चिबिल्ली होगी ।
वक्त के साथ जरूरतें बदल जाती हैं
घर के कोने में पड़ी जैसे सिल्ली होगी ।
आते – जाते मुझे जाने क्यों चिढ़ाती है
सोचना क्या शायद कोई झल्ली होगी ।
झूठ के रंगों से पूरी दुनियां गुलज़ार है
यह बात यकीनन बड़ी जिबिल्ली होगी ।
(2)
अफ़वाहें सच हैं शक के काबिल हूं
सच आ जाता है जुबां पर जाहिल हूं ।
सब अपने घरों के रंगीन पर्दों में कैद
मैं दुनियां जहान के दर्द में गाफिल हूं ।
यकीनन अभी कई आगाज़ बाकी हैं
ज़रा थके इरादों को लेकर बोझिल हूं ।
विरोध की जितनी भी संभावनाएं बनें
लिखो मेरा नाम मैं सभी में शामिल हूं ।
जितना मिटता उतना ही सुकून आया
मैं अपनी ही आहुतियों का हासिल हूं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
हिंदी और अंग्रेजी की लगभग 25 पुस्तकों का संपादन । अमरकांत को पढ़ते हुए – हिंदयुग्म नई दिल्ली से वर्ष 2014 में प्रकाशित । इस बार तुम्हारे शहर में – कविता संग्रह शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2018 में प्रकाशित । ( महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा संत नामदेव पुरस्कार 2021) अक्टूबर उस साल – कविता संग्रह शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2019 में प्रकाशित । राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्र – पत्रिकाओं /पुस्तकों इत्यादि में 67 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित । संप्रति : के एम अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध ) कल्याण पश्चिम ,महाराष्ट्र, में सहायक प्राध्यापक के रूप में 14 सितंबर 2010 से कार्यरत । संपर्क - 9082556682, 8090100900
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