1- सर-आँखों पर हैं मेरे वो
जब भी हम अपनी गाएँ, वे टेर देते हैं
ऐसा नशा पिलाती है मति फेर देती है
जब भी हौसला किया हम करें बेनकाब
बड़े हौसले से काट जाती है कह कर आदाब
अब हमने उसे चुना है अपना हुक्मरान
भुगतेंगे हर सितम अब होकर मेजबान
क्या विशप, क्या प्यादा, क्या वजीर
इस हुक्मरान की तो है हर बात तीर
सारे पैतरे उनके और सब केवल चाल
मोहरे किसी के हों, बजाएँ उनकी गाल
तुक्का समझने की जो हुई जरा-सी भूल
नाफरमानी कह चुभो गई जरा-सी शूल
खूबसूरत पंख जो कभी उड़ान पर थे
वे आवाज जो सातवें आसमान पर थे
असंतोष की हवा सेहत के लिए ठीक नहीं
वे हमारी स्वर में स्वर मिलाएँ, ठीक नही
अब सनम की बात है उनकी अदाबंदी है
सर-आँखों पर हैं मेरे वो, मुझ पर पाबंदी है
हँसना, बोलना, चलना, हाथ मलना
भौहों के उतार-चढ़ाव, सख्त होना, पिघलना
हर अदा से बताना है खुद को सनम
काटना है अदा से और मुस्कुराते हैं हम
काट लिए वे पंख जिनकी ऊँची उड़ान थी
कट गए, कट गए वे जिनमें बहुत जान थी
2- ये क्या हो रहा है?
मकड़ियों ने हर जगह
पेड़-पत्ते, कमरे-खिड़की-दीवाल
सजा रखा है मकड़जाल
कैमरे की तासीर क्या इतनी गर्म है?
निश्चेष्ट पड़ी मकड़ियाँ
कैमरे का शटर खुलते ही फिर बुनने लगी जाल
शटर बंद होते ही अटक जाती है दे ताल
मकड़ियों के क्या इतने रंग होते हैं?
जाल की रंगीनियों में खोए हम समझे नहीं
कैसा बुना है मकड़ियों ने जाल
शतरंज बिछी है और हम फँसे हैं इस चाल से उस चाल
देश में ये क्या हो रहा है ?