70 के दशक में उपहार सच में मन से दिये जाते थे। उन दिनों उपहार बोझ समझकर नहीं, बल्‍कि अपनापा जताने के लिये दिये जाते थे। थे। सहेलियों के जन्‍मदिन होते थे तो छ: या तीन रूमालों का सेट और वह भी रूमाल के किनारे पर हाथ से एक फूल काढ़ दिया या अपना नाम काढ़ दिया। लेनेवाली खुश कि उसकी सहेली ने जो उपहार दिया है, वह रोज़ इस्‍तेमाल होनेवाला है। उन दिनों सहेली की शादी में यदि उपहार देना होता था तो इंडियन टोपाज़ परफ्यूम का खूब चलन था। उसकी कीमत होती थी मात्र पन्‍द्रह रुपये। यह परफ्यूम उपहारस्‍वरूप देना बहुत बड़ी बात मानते थे और इस राशि का जुगाड़ भी बड़ी मुश्‍किल से होता था।

याद आता है 1984 में उपहारस्‍वरूप जूट की बने टिकोजी सेट की बड़ी धूम थी। क्रोशिये के मेजपोश, टी सेट, लेमन सेट भी खूब चलन में थे। ये सब बजट के अंदर होते थे। कई बार लोगों को विभिन्‍न अवसरों पर उपहार मिलते थे, वे किसी और को देने की चाहत में खुलते ही नहीं थे और नये के नये वे रैप्ड उपहार दूसरे घरों में पहुंच जाते थे। यहां तक तो ठीक था। डब्‍बे को खोलने पर पता चल जाता था कि यह नया है, इस्‍तेमाल नहीं किया गया है। 

अब 21वीं सदी के उपहारों के लेन-देन में बड़ा घालमेल है। सीधे मुद्दे पर आया जाये। जिन्‍हें उपहार मिलते हैं और वे उपहार उन्‍हें पसंद नहीं आते या उनकी नाक के नीचे नहीं उतरते तो वे उन्‍हें फेंकते नहीं हैं…बल्‍कि किसी और को पेल देते हैं। इसका मज़ेदार वाक़या तो हमारे साथ हुआ। हुआ। हमें स्‍कर्ट ब्‍लाउज उपहार में दिया गया, वह भी यह कहकर कि उन मेजबान ने इसे बहुत इस्‍तेमाल किया है और उन्‍हें बहुत पसंद है।

हमें उसकी ज़िप फिट नहीं आ रही थी..सो उनको बताये बिना हम उधर ही छोड़ आये। बाद में उनका नाराज़गीभरा फोन आया कि हमने उनके दिये स्‍कर्ट को स्‍वीकारा नहीं, अत: वह स्‍कर्ट चेरिटी में भेजे जानेवाले कपड़ों में शामिल कर दिया गया है। याने चेरिटी में दिये जानेवाले और मेहमान को दिये जानेवाले उपहार में कोई फर्क़ नहीं था उनके लिये। 

एक सहेली का और अनुभव है हमारे पास। उनकी एक महिला मित्र हैं। ख़ासी अमीर हैं। वे उपहार में छोटे छोटे चमकीले पर्स देती हैं, आपको पसंद है या नहीं, इससे उन्‍हें कोई सरोकार नहीं होता। मेरी ये सहेली ऐसे पर्स इस्‍तेमाल नहीं करतीं। सो उन्‍होंने चेरिटी में दे दिये। आठ दिनों बाद चेरिटी से वे पर्स इस ज़ुमले के साथ वापिस आ गये कि ये चमकीले पर्स अंदर से फटे हैं और लड़कियों ने यह कहकर वापिस कर दिये हैं कि वे लड़कियां ग़रीब हैं, भिखारी नहीं..भिखारी को भी ढंग की चीज़ दी जाती है ताकि वे इस्‍तेमाल कर सकें। दरअसल वे फुटपाथ से सस्‍ते उपहार खरीदती हैं उपहार में देने के लिये। कुछ सहेलियों ने उन्‍हें उपहार देने के लिये विनम्रतापूर्वक मना कर दिया है और उन्‍होंने यह सोचकर मान भी लिया है कि वे जो थोड़ा बहुत खर्च करती थीं, वह भी बचा। 

किसीने एक महिला को शराब पीने के गिलास उपहार में दे दिये, यह जाने बिना कि उस घर में शराब पी/परोसी जाती है या नहीं। उन्‍होंने दो घरों में फोन किया कि यदि उनके घर में शराब पी जाती है तो ये गिलास वे एंवई उपहार दे देंगी, बिना किसी प्रयोजन के। वे बहुत  खफ़ा हैं ऐसे उपहार देनेवालों से। उन्‍होंने बताया है कि आजकल तो घर में यूज करनेवाले मग, फ्लावर पॉट ही चमकीली पन्‍नियों में लपेटकर दे दिये जाते हैं..याने खरीदने की खिटखिट नहीं। उनके लिये घर में जो चीज़ें बेकार की हैं या आउटडेटेड हैं, वे ही बांध-बूंधकर दे देते हैं। इस्‍तेमाल हों..न हों, उनकी बला से। 

पाठक बुरा न मानें, अब उपहारों का स्‍तर पीने पिलाने की ब्रांडेड शराब की बोतलों पर आ गया है। इन उपहारों को लेने-देने से बड़े बड़े काम होने लगे हैं। पुरुष तो पुरुष, महिलायें भी वाइन बॉटल्‍स उपहार में देने लगी हैं और इसमें उन्‍हें कुछ असहज नहीं लगता। भविष्‍य में यदि कुछ काम पड़े तो इन बोतलों की सहायता से करवाया जा सकता है। ख़ैर…शायद उनका यही स्‍टैण्‍डर्ड है काम करवाने और निकलवाने का। 

अपना मानना है है कि उपहार सामनेवाले को अपमानित करने के लिये न दिया जाये और न उसे बेवक़ूफ समझा जाये कि आप या हम जो भी दे देंगे, वह उसको सर्वश्रेष्‍ठ मानकर ले लेगा। चेरिटीवाले भी ढंग का सामान लेते हैं। उन्‍हें अपने घर का कूड़ा मत दीजिये क्‍योंकि वे वहां भी फेंक दी जाती हैं। कुछ न जुड़े तो उपहार में एक फूल या एक रावलगांव दे दीजिये, काफी है। फूल से घर महकेगा और रावलगांव से मुंह मीठा होगा।

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