Saturday, July 27, 2024
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हरदीप सबरवाल की दो कविताएँ

1- रिटायरमेंट
पुल बनने के बाद से
नीचे की सड़क ने खो दी है
पहले सी चहल-पहल,
फाटक पर रुकने के झंझट,
और छोटी हुई दूरी ने,
सब को पुल पर ही ला दिया है,
वहां खोमचे, रेहड़ी, पटरी लगाकर,
चाट-पकौड़ी, गोलगप्पे, फल-सब्जी,
मेकअप का सामान और बच्चों के खिलौने,
बेचने वाले हॉकर्स ने,
अब नए और चहल-पहल वाले ठिकाने ढूंढ लिए है,
सड़क में भी जहां-तहां गड्ढे पड़ गए हैं,
जहां मजे से सुस्ताता रहता है अकसर
बरसात का रुका हुआ पानी,
पर फिर भी वहां,
यदा-कदा आ ही जाते हैं,
सैर करने
चंद अवकाश प्राप्त वरिष्ठ नागरिक,
मानो जश्न मना रहे हो,
अपने और उस सड़क के रिटायरमेंट का…….
2- साथ
बुरा महसूस होता है,
जब कोई खो देता है अपना कुंवारापन,
किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जिसे आप प्यार नहीं करते,
या नहीं रहा उससे कोई भावात्मक लगाव
उससे भी बुरा तब लगता है,
जब कोई खो देता है अनचाहे ही,
अपना चरित्र उन लोगों के साथ,
जिनसे मन का नाता न जुड़ पाया हो,
पर बदतर तो तब होता है,
जब आप खो सकते थे अपना कुंवारा पन,
उसके साथ, जिसके आप प्यार में पड़े,
लेकिन फंसे रहे बस
सही और गलत के बीच,
अपनी ही वर्जनाओं के घेरे में कैद होकर,
और जब वक्त फिसल जाता है हाथ से,
तब उम्र भर का पछतावा,
बदतर से बदतरीन होता हुआ…..
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