1 – नाम
वो गांव का मजदूर खुशी से झूम उठा
फरमाइशी फिल्मी गीतों के रेडियो कार्यक्रम में
अपने नाम के उद्घोष पर,
शहर का एक दुकानदार हंस देता है,
वो शहर का दुकानदार खुश होता है,
अखबार में छपी बाजार एसोसिएशन के समूह की तस्वीर में,
खुद को देख कर,
जो लंगर बांटते समय की खबर में लगी,
एक युवा लेखक व्यंगात्मक मुस्कान बिखेरता,
युवा लेखक का मन गदगद हो उठता है,
साहित्यिक पत्रिका में छपी अपनी रचना को देखकर,
हृदय से बाहर छलकती खुशी संभालती नहीं,
प्रसिद्ध साहित्यकार पत्रिका का सस्ता कद देख तिरछी मुस्कान बिखेरता,
प्रसिद्ध साहित्यकार खुशी से झूम उठता है,
किसी पुरस्कार के लिए घोषित हुए अपने नाम की खबर पढ़,
बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट इसे फिजूल समझ ठहाका लगाता है,
बड़ा इंडस्ट्रियलिस्ट पार्टी रख देता है,
बिजनेस मैन ऑफ द ईयर चुने जाने पर,
फ्रेम करवाता खबर को,
और …
सब की चाहत है अपने अपने जरिए से,
अपने नाम को ऊंचाई पर देख पाने की,
आखिर सब नाम का ही तो खेल है……
2 – तीन टांगो वाला कुत्ता
तीन टांगो वाला कुत्ता, भोंकता है, आती जाती उन रेत ढोती ट्रालियों पर,
तीन पैरो पर अपना संतुलन बनाए,
अपने अपाहिज होने से बेखबर कुत्ते होने का फर्ज निभाता,
रेत ढोने वाली ट्राली के पीछे लिखा है,
करनी ड्राइवरी बिल्लो, बी ए पढ़ी काम ना आई,
ड्राइवर के चेहरे पर मुस्कान है, पर ग्रेजुएट होने का गुमान नहीं,
अखबार में छपे एक इंटरव्यू में सिविल सेवा का गर्वित विजेता, मेरिट में
पहले और आखिरी आने वाले की दक्षता एक समान बताता है,
और ग्रेजुएट बना रेत ढोने को छोड़ने वाली
हमारी तीन टांगो पर खड़ी शिक्षा प्रणाली
शान से भौंकते हुए करती है बखान उनका जो आगे आए
और बाकियों को मिलने देती है रेत में,
अपने अपाहिज होने से बेखबर….
दोनों ही रचनाएँ बहुत बढ़िया
हरदीप जी रचनाओं में मर्म है ।बहुत ख़ूब ।
प्रभा