1- आज़ादी चाहती हूँ बदला नहीं…

तुम कहते हो
अपनी कैद से आज़ाद हो जाओ,
बँधे हाथ मेरे
सींखचे कैसे तोडूँ ?
जानती हूँ उनके साथ
मुझमें भी जंग लग रहा है,
पर अपनी तमाम कोशिशों के बावज़ूद
एक हाथ भी आज़ाद नहीं करा पाती हूँ !

कहते ही रहते हो तुम
अपनी हाथों से
काट क्यों नहीं देते मेरी जंज़ीर,
शायद डरते हो
बेड़ियों ने मेरे हाथ
मज़बूत न कर दिए हों,
या फिर कहीं तुम्हारी अधीनता
अस्वीकार न कर दूँ,
या फिर कहीं ऐसा न हो
मैं बचाव में अपने हाथ
तुम्हारे खिलाफ़ उठा लूँ !

मेरे साथी,
डरो नहीं तुम
मैं महज़ आज़ादी चाहती हूँ बदला नहीं,
किस-किस से लूँगी बदला
सभी तो मेरे ही अंश हैं,
मेरे ही द्वरा सृजित
मेरे ही अपने अंग हैं,
तुम बस मेरा एक हाथ खोल दो
दूसरा मैं ख़ुद छुड़ा लूँगी,
अपनी बेड़ियों का बदला
नहीं चाहती
मैं भी तुम्हारी तरह
आज़ाद जीना चाहती हूँ !

तुम मेरा एक हाथ भी छुड़ा नहीं सकते
तो फिर आज़ादी की बातें
क्यों करते हो ?
कोई आश्वासन न दो
न सहानुभूति दिखाओ,
आज़ादी की बात दोहरा कर
प्रगतिशील होने का ढ़ोंग करते हो,
अपनी खोखली बातों के साथ
मुझसे सिर्फ छल करते हो,
इस भ्रम में न रहो कि
मैं तुम्हें नहीं जानती हूँ,
तुम्हारा मुखौटा
मैं भी पहचानती हूँ !

मैं इंतज़ार करुँगी उस हाथ का जो
मेरा एक हाथ आज़ाद करा दे,
इंतज़ार करुँगी उस मन का जो
मुझे मेरी विवशता बताए बिना
मेरे साथ चले,
इंतज़ार करुँगी उस वक़्त का
जब जंज़ीर कमज़ोर पड़े और
मैं अकेली उसे तोड़ दूँ !

जानती हूँ कई युग और लगेंगे
थकी हूँ पर हारी नहीं,
तुम जैसों के आगे
विनती करने से अच्छा है
मैं वक़्त और उस हाथ का
इंतज़ार करूँ !

2 – बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ…

वो कहते हैं –

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।

मेरे भी सपने थे

बेटी को पढ़ाने के

किसी राजकुमार से ब्याहने के

पर मेरे सपनों का कत्ल हुआ

मेरी दुनिया का अंत हुआ,

पढ़ने ही तो गई थी मेरी लाड़ली

खून से लथपथ सड़क पर पड़ी

जीवन की भीख माँग रही थी

और वह राक्षस

कैसे न पसीजा उसका मन

उस जैसी उसकी भी तो होगी बहन

वह भी तो किसी माँ का लाड़ला होगा

माँ ने उसे भी अरमानों से पाला होगा

मेरी दुलारी पर न सही

अपनी अम्मा पर तो तरस खाता

अपनी अम्मा के सपनों को तो पालता

पर उस हवसी हैवान ने मेरे सपनों का खून किया

मेरी लाड़ली को मार दिया

कहीं कोई सुनवाई नहीं

पुलिस कचहरी सब उसके

ईश्वर अल्लाह सब उसके।

आह! मेरी बच्ची!

कितनी यातनाओं से गुजरी होगी

अम्मा-अम्मा चीखती होगी

समझ भी न पाई होगी

उसके नाजुक अंगों को क्यों

लहूलुहान किया जा रहा है

क्षण-क्षण कैसे गुजरे होंगे

तड़प-तड़प कर प्राण छूटे होंगे।

कहते हैं पाप पुण्य का हिसाब इसी जहाँ में होता है

किसी दूधमुँही मासूम ने कौन सा पाप किया होगा

जो कतरे-कतरे में कुतर दिया जाता है उसका जिस्म

या कोई अशक्त वृद्धा जो जीवन के अंत के निकट है
उसके बदन को बस स्त्री देह मान
चिथड़ों में नोच दिया जाता है बदन।
बेटियों का यही हश्र है

स्त्रियों का यही अंत है

तो बेहतर है बेटियाँ कोख में ही मारी जाएँ

पृथ्वी से स्त्रियों की जाति लुप्त ही हो जाए।

ओ पापी कपूतों की अम्मा!

तेरे बेटे की आँखों में जब हवस दिखा था

क्यों न फोड़ दी थी उसकी आँखें

क्यों न काट डाले थे उसके उस अंग को

जिसे वह औजार बना कर स्त्रियों का वध करता है।

ओ कानून के रखवाले!

इन राक्षसों का अंत करो

सरे आम फाँसी पर लटकाओ

फिर कहो –

बेटी बचाओ

बेटी पढाओ।

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