नदी किनारों की भाप सी
शब्दों के अद्भुत वितान में, असीम अम्बार में
विस्तार में, अनंत आकार में
रूप निराकार में
जैसे बसती है
ढेरो खुमारी
गरम प्रदेशों की विशाल नदियों के किनारों की भाप सी
जंगल के धुंध सी
सपनीली खुमारी
हो जाना उसी का बाशिंदा बस
बस जाना वहीँ
कि हो नहीं ठौर कोई और
कि कहाँ जाये कोई?
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चेरी छींट की फ्रॉक
चेरी फल की छींट वाली फ्रॉक में वह लड़की
उस तस्वीर में साथ उसके
सजा देने के बाद कमरे को जंगल के पोस्टर से
आगे खड़ी उसके, हल्का सा मुस्कुराती
थामे हाथों में आइसक्रीम एक
कुल्फी फ्लेवर की
दमकता हुआ जंगल का पोस्टर, तस्वीर में
दमकता हरा, भूरे जटा जूट
बस लड़की गायब ज़मीन से
नामो निशान गायब कोई पता नहीं
चेरी फल की छींट की फ्रॉक वाली लड़की गायब
बस गायब, तो गायब
आखिरी तस्वीर वह उसकी।
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अन्दर
पीली सी एक उजास
आभा सी
चमक सी कुछ कुछ
आंधी से पहले की
ऐन पहले की
दो दिन पहले की
कुछ कुछ चुभती सी
मिच मिच चुभती सी
रौशनी केवल
और सनसनाहट ये
कि आने वाली है
आंधी
कुछ कुछ डरावनी
बवंडर
पता रौशनी
आगाह करती
सूरज जैसी
आँखें बंद
आँखें खुली
आँखें पानी, पानी
जेठ का सूरज
कि पूस का
हिम्मत हो कि नहीं
बादलों की चादर पार
गुनगुनी सी रौशनी कोई
कि बरस कर छटने वाले हैं बादल
या उड़ाकर ले जाएगी हवा
बयार, आंधी
भीतर हम
भीतर सब
मीठी सी थरथराहट
कि दरवाज़े किवाड़ पीटती हो आंधी
झमाझम
बरबस
बरक्स
बेताल हो हवा
उत्ताल हो हवा
पाताल हो हवा।