कविता – “मैं”

  • डॉ. विदुषी शर्मा

 

मैं और मेरे एहसास, अब कोई नहीं है मेरे आस-पास,

मैं ही हूं अपनी स्वयं की आस,

लगता है यूं तो सब कुछ है मेरे पास,

पर फिर भी न जाने बाकी रह गई इक प्यास,

इस प्यार का एहसास सिर्फ है उन लोगों के पास,

कि मिटकर भी नहीं मिटते जिनके हौसले हैं खास,

एक आस है जो जिंदगी को देती नई परवाज,

वरना तो लगता है ये पूरी कायनात ही बकवास,

हर गम अपना भूलकर फिर उठते हैं कि चलना है हमें,

न चाह कर भी हर फर्ज तो निभाना है हमें,

जीवन के थपेड़ों ने चाहे तोड़ डाला है हमें,

फिर भी “मैं” में “मैं” कुछ बची थी और चल रही थी सांस।

 

फिर आया कि स्वयं सिर्फ स्वयं ही हूं “मैं” अपना विश्वास,

तोड़ डाले बंधन सभी फिक्र सबकी छोड़ दी,

हां मैंने कुबूल किया बेफिक्री मैंने ओढ़ ली,

सच कहूं तो पहले से हल्की हो गई हूं मैं,

सब को खुश करने का ख्याल पीछे छोड़ चुकी हूं मैं,

अपने इरादों, अपने एहसासों को, अपनी कामयाबी को रोज जीती हूं मैं,

कोई खुश हो ना हो खुद और मेरा खुदा बस इतना ही अब जानती हूं मैं,

क्योंकि मैं जानती हूं कि जाना है एक दिन ‘उसी के पास,

तो क्यों ना अभी मुलाकातों का दौर चलता रहे आसपास।

अब फिक्र नहीं है कि कोई क्या कहेगा,

कुछ अच्छा नहीं है तो कुछ बुरा ही कहेगा,

इस यकीन को अब पूरी तरह जान चुकी हूं मैं,

और तारीफ कभी मिलेगी नहीं इस सच को अब मान चुकी हूं मैं,

क्यों चाहूं मैं उनसे तारीफ, उनसे इजाजत जो है नहीं काबिल मेरे,

दिल में है एक जलन पर दिखाते हैं मुस्कुराते हुए चेहरे,

बस अब; बस अब और नहीं।

मैं स्वयं काफी हूं अपने अरमानों, अपने सपनों को परवाज देने के लिए,

अपनी खुद की कोशिशों का, कामयाबी का जश्न मनाने के लिए,

 

नहीं चाहिए मुझे जो झूठे सहारे देते हैं,

हर बार उस सहारे का एहसान जताते रहते हैं,

नहीं चाहिए मुझे एहसान, ये झूठे वादे,

क्योंकि मैं जानती हूं कि अटल रहे हैं हमेशा  से मेरे इरादे ,

बस अपने खुदा से यही मांगती हूं मैं,

मुझे शक्ति दो कि स्वयं का साथ देती रहूं मैं,

बस ‘मैं’ ही अपने लिए काफी बनी रहूं,

बस ‘मैं’ ही अपने को सदा जीती रहूं,

जीवन के इस पड़ाव में जब जीने का पता लगा,

बस अब यह ना हो कि कुछ करने से पहले ही यह जीवन ना जाए ठगा।

 

तो बस  यही अरमान है ,कि अपना ये जहान है,

हौसलों की उड़ान है,

फिर तो बस अपनी ही ज़मी और अपना आसमान है ,

बस अपना आसमान है,

अपने साथ उडूं जी भर के,

अपने साथ जियूं जी भर के,

क्योंकि मरने के बाद  तो सभी की हूं मैं,

तो जीते जी सिर्फ ‘मैं’ अपने साथ,

और सिर्फ अपने पास,

“मैं” और मेरे एहसास,

अब कोई नहीं है आस-पास,

सिर्फ मैं ही अपने पास,

अपने साथ……..

सिर्फ़ “मैं” और “मैं”।

 

डॉ विदुषी शर्मा, शिक्षा -M.A,  M.PHIL,  PH.D, PRABHAKR, B.ED, पता –  (एल)  l – 108 ऋषि नगर रानी बाग दिल्ली 11034, फोन नंबर 9625017478, Email drvidushisharma9300@gmail.com

 

2 टिप्पणी

  1. Bahot achha anubhav prakat Kiya he esh Kavita me aaapne , Jo aatma Ka mul swabhav he vaha tak aap pahuch Gaye ho aur ye apke atma aur gyan ki gehri samaj prakat huyi dikhayi deti he Apne Jo Likha he bahot achha aur ek aur matra ek yahi Satya he.

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