महाभारत के युद्ध में अर्जुन की बराबरी के एकमात्र योद्धा कर्ण थे। लेकिन समस्या यह थी कि कौरवों के पास कृष्ण की बराबरी के सारथी नहीं थे। कृष्ण की बराबरी के कोई सारथी थे तो वे थे नकुल-सहदेव के मामा मद्र नरेश शल्य।
दुर्योधन ने जाल बिछाकर महाराज शल्य को कर्ण का सारथी बनने को मजबूर कर दिया। यह समाचार पाते ही कृष्ण ने नकुल सहदेव को मामा से एक वचन मांगने को कह दिया। वचन यह कि जब वे रथ सञ्चालन करें तो ऐसे वचन बोलें जो कर्ण का मनोबल तोड़ दें। आधा युद्ध तो योद्धा का मनोबल ही जीत जाता है।
युद्ध में जब भी कर्ण अर्जुन पर भारी पड़ते, शल्य कहते, “अरे छोड़ो। गलती से तुम्हारा निशाना लग गया तो सर्जिकल स्ट्राइक कहते हो। यह तो फर्जीकल स्ट्राइक है। सबूत दिखाओ।” तो कभी कहते, “अरे अरे! ये पत्थरबाज नहीं हैं, निर्दोष नागरिक हैं। इनको मत मारो। क्या हुआ जो आतंकवादी हैं, हैं तो मानव ही। इनके भी मानवाधिकार हैं।”
जब कभी अर्जुन कर्ण पर भारी पड़ते, शल्य कहते, “तुम्हारी सुरक्षा में चूक हो गई। मैंने तो पहले ही कहा था कि बुलेटप्रूफ रथ मंगवा लो। हेलीकॉप्टर मंगवा लेते तो क्या हो जाता?”
इस कथा के आलोक में वर्तमान का अवलोकन करें तो कहना पड़ता है कि आज जब हमारे सरहद पर तैनात सिपाही पलट कर देखते होंगे कि वे किन नामाकूल लोगों की सुरक्षा कर रहे हैं तो क्या उनका मनोबल टूटता नहीं होगा?