होम कविता पंखुरी सिन्हा की तीन कविताएँ कविता पंखुरी सिन्हा की तीन कविताएँ द्वारा Editor - April 18, 2019 154 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet पंखुरी सिन्हा 1. शांति की बहाली भूलकर सारा भाई भतीजावाद भूलकर सारी क्षेत्रीय पहचान भूल कर सारी भाषागत प्रतिबद्धता शांति बहाल करें भूलकर परिचय के सारे सूत्र भूल कर पिछली बहाली का जश्न भूलकर न हुई बहाली का मातम शांति बहाल करें कि इन बेहद कामकाज़ी गलियारों में कोई भर रहा है उठा पटक की हिंसक राजनीती बेहद हिंसक राजनीती नापाक करता इन ताक़तवर गलियारों को बना रहा है फाइल नामक एक कोड और चित्रित भी कर रहा है उसे मुखरित भी थामे एक फाइल को हाथों में अपने पेट के ऊपर नाभि के कुछ नीचे किसी की अनावश्यक चहलकदमी है अत्यधिक अनावश्यक भी और चहलकदमी भी एक ऐसी फुदकनी चाल में जो तमाम मेज़ कुर्सी पर बैठे लोगों के क्रोध में दांत किटकिटा दे खामोश वो गुहार करें पुकार करें शांति बहाल करें कि विचित्र सी हिंसा है सड़क पर घरों में शांति बहाल करें। 2. किसका प्रकोप केवल नदी की बाढ़ है या कि बरसात भी मौसम का प्रकोप है कि मौसम का युद्ध भी और सबसे ज्यादा तैयारी हमारी कि होगी बारिश तेज़ पर कितनी बुलंद थी इमारत हमारी? कितनी पुख्ता सडकें हमारी? कितने तैयार थे लोग? कहाँ था उनका बसेरा? 3. किसके प्रहलाद ये तो उम्दा है बहुत उम्दा कि मिटटी में है इतना संगीत प्रतिमाएं गढ़ लेती हैं खुद को सच है अगर यह फिर राह में स्थापित होने की या कि सिर्फ उस दिशा में इतने कंटक क्यूँ? इतने कंकड़ क्यूँ? अवरोध क्यूँ इतने? इतने रोड़े बिछाने वाले कौन? इतना आर्तनाद किसका इतने प्रहलाद किसके? इतना रक्तपात किसका? किसकी ये तलवार? कैसी इसकी धार है? कहाँ मिटटी का लेप है? कहाँ वह आँगन, स्पर्श, अतिरेक है? संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. हर्षा त्रिवेदी की तीन कविताएँ प्रेमा झा की कविता – माँ रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – सपने कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.