मकान बनाने के लिए ईंटें कम पड़ गयी थीं | और ईंटों के इंतजार में काम बंद हुआ पड़ा था। इसी बीच, उन बची हुई ईंटों के मध्य घमासान वाक् युद्ध शुरू हो गया था | जो पास पड़ी हुई सीमेंट की बोरियों को भी सुनाई पड़ रहा था। लेकिन बोरियाँ, ईंटों के उस आपसी झगड़े में नहीं पड़ना चाहती थीं। इसलिए इत्मीनान से शांत बैठीं वो, ईंटों की आपसी लड़ाई समाप्त होने की बाट जोह रही थीं |
अजब बात तो यह थी कि ईंटों पर कुछ न कुछ लिखा हुआ था। किसी पर डॉक्टर, किसी पर इंजीनियर, किसी पर मजदूर, तो किसी पर फौजी | किसी पर किसान, किसी पर पुलिस तो किसी पर नेता और किसी पर शिक्षक। शायद इसी के कारण तू-तू, मैं-मैं अब गंभीर रूप ले चुका था |
सब अपनी-अपनी महत्ता का बखान करने में लगे थे। इन सभी ईंटों को लगता था कि उनके सहयोग के बिना दीवार, नहीं खड़ी हो सकती है। उनमें से एक ने भी असहयोग किया, तो बनी हुई पूरी की पूरी दीवार, भरभराकर गिर पड़ेगी।
अपनी लड़ाई का अंत होता न देख ईंटें, सीमेंट के पास जाकर बोलीं- “तुम ही बताओ कि किसकी महत्ता अधिक है ?”
सुनकर सीमेंट बोला- “निर्माण में तो मेरी महत्ता अधिक है।”
सीमेंट की बात सुनकर सब ईंटें एक दूसरे को हतप्रभ हो देखने लगीं। सीमेंट उनके खुले हुए मुख की तरफ देख, कारण समझता हुआ फिर बोला- “लेकिन नहीं, हम सब मिलकर ही अपना महत्व बरकरार रख सकते हैं । हम अलग-अलग होंगे, तो वो पाँच-लकड़ियों की कहानी तो सुने हो न, वही हाल होगा। संघ में ही शक्ति है ।”
ईंटों के बीच सन्नाटा पसर गया था। वे सब चुप हो, सीमेंट की बात को ध्यान से सुन रही थीं | ईंटों की चीख-चिल्लाहट से अब तक सहमा बालू, सीमेंट के हस्तक्षेप करते ही धीरे से बोला – “मैं भी तो हूँ !”
“हाँ भई ! तुम्हारे बिना भी, हम लोगों का कोई महत्व नहीं | आम आदमी के बिना तो दो कदम भी चलना मुश्किल है |” सीमेंट के मुख से यह सुनकर, बालू भी गर्व से इठलाने लगा |
सीमेंट आगे बोला- “देश को ताकतवर बनाने के लिए हर एक ईंट के साथ, बालू भी जरूरी है और सबको साथ में बांधे रखने के लिए, मैं भी बहुत जरूरी हूँ। यानी कि एक मज़बूत सिस्टम। इसलिए तुम सब अपने मन से यह बात निकाल दो कि सिर्फ तुम ही तुम जरूरी हो। सभी ईंटें ये बातें सुनकर, एक नई ऊर्जा के साथ निर्माण कार्य में लग गयीं |