होम कविता कामिनी गुप्ता की कविता – माँ कविता कामिनी गुप्ता की कविता – माँ द्वारा कामिनी गुप्ता - November 15, 2020 229 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet तुम्हारे बिन तुम्हारी सुनाई कहानियां अच्छी नहीं लगतीं। बातें वो बीती हुई याद आती हैं ये विरानियां अच्छी नहीं लगतीं। तुम्हारे होने से घर पे सदा रहता था त्यौहार सा मौसम, हुए इतने समझदार कि अपनी नादानियां अच्छी नहीं लगतीं। मां ही तो थी जो जोड़े हुए थी घर में रिश्तों को अब तलक, तेरे जाने के बाद तेरी यूं बिखरी निशानियां अच्छी नहीं लगतीं। मां..तुम्हारी गोद और मेरा सिर रखकर बेपरवाह सो जाना, सुख आए या दुख ये बनावटी रोशनियां अच्छी नहीं लगतीं। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं बिमल सहगल की कविता- जागी आँखों के सपने योगेंद्र पाण्डेय की कविता – गुलमोहर के फूल आशीष मिश्रा की कविता – शून्य है कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.