होम कविता कामिनी गुप्ता की कविता – माँ कविता कामिनी गुप्ता की कविता – माँ द्वारा कामिनी गुप्ता - November 15, 2020 65 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet तुम्हारे बिन तुम्हारी सुनाई कहानियां अच्छी नहीं लगतीं। बातें वो बीती हुई याद आती हैं ये विरानियां अच्छी नहीं लगतीं। तुम्हारे होने से घर पे सदा रहता था त्यौहार सा मौसम, हुए इतने समझदार कि अपनी नादानियां अच्छी नहीं लगतीं। मां ही तो थी जो जोड़े हुए थी घर में रिश्तों को अब तलक, तेरे जाने के बाद तेरी यूं बिखरी निशानियां अच्छी नहीं लगतीं। मां..तुम्हारी गोद और मेरा सिर रखकर बेपरवाह सो जाना, सुख आए या दुख ये बनावटी रोशनियां अच्छी नहीं लगतीं। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं कृष्ण कांत पण्ड्या की कविता रश्मि पाण्डेय की कविता – अधूरे सपने तोषी अमृता के निश्छल, शर्मीले, भोले मुक्तक Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.