कविता कामिनी गुप्ता की कविता – माँ द्वारा कामिनी गुप्ता - November 15, 2020 0 176 तुम्हारे बिन तुम्हारी सुनाई कहानियां अच्छी नहीं लगतीं। बातें वो बीती हुई याद आती हैं ये विरानियां अच्छी नहीं लगतीं। तुम्हारे होने से घर पे सदा रहता था त्यौहार सा मौसम, हुए इतने समझदार कि अपनी नादानियां अच्छी नहीं लगतीं। मां ही तो थी जो जोड़े हुए थी घर में रिश्तों को अब तलक, तेरे जाने के बाद तेरी यूं बिखरी निशानियां अच्छी नहीं लगतीं। मां..तुम्हारी गोद और मेरा सिर रखकर बेपरवाह सो जाना, सुख आए या दुख ये बनावटी रोशनियां अच्छी नहीं लगतीं।