होम कविता अलका ‘सोनी’ की कविता – सभ्यता वरदान नहीं कविता अलका ‘सोनी’ की कविता – सभ्यता वरदान नहीं द्वारा अलका सोनी - May 16, 2021 315 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet सभ्यता वरदान नहीं होती हमेशा कभी कभी बन जाती है अभिशाप भी वह नहीं सिखा पाती हमें अपने मन के घावों को धोना झूठी हंसी ओढ़े सीख लेता है आदमी चुप रहकर दर्द ढोना छद्म आवरण से ढका शरीर लेकर घूमते रहता है आदमी इस सभ्य समाज में इससे कहीं ज्यादा महान होता है आसमान का वह भव्य खुलापन और असभ्यता जहां नहीं छुपाते लोग स्वयं को इन आवरणों में जीवन की रुक्षता में सदियों तक सहेज कर रखते चले जाते हैं अपनी सरलता और स्निग्धता को यह नैसर्गिकता ही तो इनकी थाती होती है जिसे पीढ़ियों तक हस्तांतरित करते चले जाते हैं वे। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं बिमल सहगल की कविता- जागी आँखों के सपने योगेंद्र पाण्डेय की कविता – गुलमोहर के फूल आशीष मिश्रा की कविता – शून्य है कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.