मोहेश कुमारे भारत सरकार को बरसों से दुहते आये हैं , पूरे देश के हर आलीशान हिंदी सम्मेलन में इनकी उपस्थिति उसी तरह अनिवार्य होती है जैसे नाई और पंडित के बिना सनातन विवाह सुचारू रूप से सम्पन्न नहीं हो पाते। बस दोनों के मन मे एक टीस रह  गयी थी कि कभी विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत सरकार के प्रतिनिधि मंडल में नहीं जा पाए  थे। साल भर साहबों के घर बुके और मिठाई भेजने के बावजूद अंतिम लिस्ट से उनका नाम नहीं आ पाता था । 
लेकिन बिल्ली के भाग्य का छींका टूटा । हिन्दी के एक बड़े  लेखक प्रेमिल प्रथम  की पत्नी का देहावसान सम्मेलन के ठीक तीन दिन पहले हो गया था। 
वैसे तो हिंदी के वो विद्वान घोर सनातनी थे और पिछले करीब दो दशक से निरन्तर दुनिया भर में होने वाले हर सम्मेलन में भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर जाते रहे थे। वो इस बार का मौका भी नहीं छोड़ने वाले नहीं थे, वो तेरहवीं तक के झंझट में रुकने वाले नहीं थे, तीन दिन में शॉर्ट कट तरीके से क्रिया कर्म करके निकल जाना चाहते थे।
उनका तर्क था कि पत्नी तो जा ही चुकी है सो सम्मेलन में जाना क्यों मिस कर दिया जाए।
तभी किसी ने उन्हें समझाया कि सरकार में उनकी छवि घोर सनातनी व्यक्ति की है, यदि उनके तीन दिन के शार्ट कट के क्रिया कर्म करने की खबर किसी ने वायरल कर दी तो सरकार की फजीहत होगी।
अब अगर सरकार की फजीहत हुई तो उनकी कायदे से फजीहत होनी तय है । अब जब सरकार ही उनसे नाराज हो जायेगी तो वो न सिर्फ आगामी हिंदी सम्मेलनों से वंचित हो सकते हैं बल्कि अपनी सनातनी और राष्ट्रवादी छवि से जुड़े हर प्रकार के लाभों से हाथ धो सकते हैं।
काफी सोच -विचार कर उन्होंने विदेश में होने वाले हिंदी सम्मेलन में जाने का विचार त्याग दिया और अपनी पत्नी के क्रिया -कर्म करने के लिये तेरह दिन के विधि -विधान को चुना ताकि उनकी घोर सनातनी और राष्ट्रवादी छवि न सिर्फ बनी रहे बल्कि और भी मजबूत हो जाये।
काफी सोच -समझ कर बरसों से अपनी चेलाही और चरण वंदना कर रहे मोहेश कुमारे की  गोटी फिट कर दी। आखिर मोहेश कुमारे ने जुगाड़ फिट कर लिया औऱ वो हिंदी सम्मेलन में भाग लेने के लिये विदेश जाने वालों की लिस्ट में आ ही गए।
ये खबर कन्फर्म होते ही व्हाट्सप्प पर उन्होंने स्टेटस लगाया “गोइंग फ़ॉर हिंदी, कॉनक्वयरेरीइंग फार हिंदी”।
जिस तरह सिकन्दर दुनिया जीतने निकला था उसी तरह ये हजरत हिंदी को जीतने निकले थे ,पहला स्टेटस अंग्रेजी में लगाकर ,दरअसल उन्होंने अंग्रेजी ब्रांड की  नीट स्कॉच लगाकर ही ये स्टेटस लगाई थी। 
मोहेश कुमारे फिजी पहुंचे , वहां भारतीय दल के लिए परम्परागत इंतजाम किए थे। मोहेश कुमारे ने कसम खा ली थी कि इस बार वो हिंदी दल में सिर्फ अंग्रेजी शराब पियेंगे और एरिस्ट्रोकेट कल्चर ही दिखाएंगे
क्योंकि उनके दल के जो मुखिया थे वो मन से  पूरे अंग्रेज थे उनका नाम था मैथ्यू हेलेन मोहन,उनके मां -बाप दोनों केरल के क्रिस्टानी थे लेकिन वो मोहन सर नेम क्यों लगाते थे ये बात उतनी ही हैरानी की थी जितना कि जूही चावला दुनिया भर के पुरुषों को गंजेपन से निजात पाने के लिये केशकिंग की वकालत करती हैं ,जबकि उनके पति को केशकिंग की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
ऐसे लोग जो रंगत में भारतीय थे मगर मन से पूरे अंग्रेज। उनके दादा अंग्रेजो के जमाने में न तो जेलर थे और न ही टेलर  , फिर भी उन्हें भी अंग्रेजियत की विरासत का जदीद गुमान था । वो खुद को अंग्रेज समझते हैं और अंग्रेज उनको खांटी हिंदुस्तानी।
तो फिर मोहेश कुमारे ने फ़ेसबुक पर रोमन में स्टेटस लगाया 
“हमारी चलती है ,सबकी जलती है “।
विदेश के हिंदी सम्मेलन सत्तर की फिल्मों के कुंभ के भाइयों के बिछड़ने फिर उनके मिलने की तरह स्थायी हैं। जैसे सबको पहले से पता होता है कि आखिर में कुंभ के मेले में बिछड़े भाई मिलेंगे ही , उसी तरह सबको पता है कि सरकार किसी की हो , हिन्दी सम्मेलन कहीं भी हो रहा हो ,जाएंगे वही दस -बीस चुनिंदा लोग । वही लोग तब तक विदेश के हिंदी  सम्मेलनों में जाते रहेंगे जब तक भगवान को प्यारे न हो जायें। इस बार एक सज्जन की पत्नी भगवान को प्यारी हो गयीं तो एक स्थान रिक्त हो गया तो उन्हीं की तरह उनके चेले मोहेश कुमारे का नम्बर लग गया ।
प्रेमिल प्रथम जी अपनी बैठकों में सीना ठोंक कर कहा करते थे कि सरकार किसी की भी हो सिस्टम तो अपना ही है ,और हम या हमारे लोग ही विदेशों में होने वाले हिंदी सम्मेलनों में जाते रहेंगे। 
विदेश में आयोजित हिंदी सम्मेलनों में  भारत से गए हुए अहिन्दी भाषी प्रान्तों के अधिकांश लोग हिंदी बोलने वाले प्रान्तों से गये लोगों से अंग्रेजी में बात करते  हैं। इनके लिये हिंदी का मतलब हिंदी फिल्में हैं और उसके कुछ लोकप्रिय गाने बजा या चला देने से इनकी हिंदी सेवाओं की इतिश्री हो जाती है ।
इन सम्मेलनों में आम तौर पर भारतीय और शाकाहारी भोजन ही परोसे जाते हैं जिन्हें देखकर  मोहेश कुमारे  की त्योरियां चढ़  गयीं। वो तो इस समुद्री देश में जी भर के सी- फूड खाने आये थे , प्रान और फ्रॉग खाकर तृप्त होना चाहते थे लेकिन यहां तो मंदिर के भंडारे की तरह उन्हें शुध्द -सात्विक भोज ग्रहण करना पड़ रहा है । 
उन्होंने सोचा कि पता नहीं सरकारें साहित्यिक आयोजनों में नान वेज और शराब क्यों नहीं देतीं , एक बार जब सरस्वती वंदना हो जाती है तो वो नान वेज क्यों नहीं खा सकते , उन्हें अपनी सोच पर गर्व हुआ और आयोजकों के नान -वेज न परोसे जाने पर खिन्नता।
हिंदी सम्मेलन में सबसे पहले राम की शक्ति पूजा का पाठ रखा गया । इतनी लम्बी कविता सुनकर उनका मन खिन्न हो गया ।
मन ही मन कुढ़ते हुए बोले –
“भले ही इस गवर्नमेंट ने मुझे यहां हिंडी को रिप्रजेंट करने को भेजा है , लेकिन ये प्रो सनातनी गवर्नमेंट में मुझे ये ओल्ड पोइट्री भी झेलनी पड़ेगी ये नहीं सोचा था “।
उन्हें हिंदी के साहित्यकारों की शुद्ध  हिंदी सुनकर बहुत उलझन हो रही थी, उन्होंने एक फ़ाइल उठा ली और उस फ़ाइल की आड़ में पेन घुमाने लगे ,जिससे देखने वालों को लगे कि वह कोई कविता के  महत्वपूर्ण बिंदुओं पर  फ़ाइल में कोई जरूरी नोट  लिख रहे हैं  ।
 थोड़ी देर तक ऐसा करने के बाद  उनको लगा कि सभी की तवज्जो अब उनकी उंगलियों की तरफ से हट गयी है और लोगों को तस्कीन हो गयी है कि वो कविता के महत्वपूर्ण बिंदु नोट कर रहे हैं जबकि वो प्रान,फ्रॉग और स्कॉच के बारे में सोच रहे थे ।
ये तो वही मिसाल हो गयी थी-
“वो इश्क पर कर रहे हैं संजीदा गुफ्तगू 
मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है”।
कविता सत्र खत्म हुआ तो भरनाट्यम का एक छोटा सा सत्र रखा गया । जिस होटल में वो रुके थे रात को उस होटल के नाईट क्लब में  एक डांसर ने शकीरा का प्रसिध्द डांस “हिप्स डोंट लाई “ करके दिखाया था बल्कि वो खुद भी डॉन्स स्टेप और ताल पर ताल मिलाते रहे थे ।
उनके दिमाग में तो शकीरा और उनका लाउड म्यूजिक चल रहा था और यहां पर उन्हें भरतनाट्यम झेलना पड़ रहा था । मरता क्या न करता की तर्ज पर उन्हें न सिर्फ भरनाट्यम देखना पड़ रहा था  बल्कि सम्मेलन में उपस्थित जन समूह को भरतनाट्यम पर ताली बजाते देख कर बीच- बीच में उनको भी ताली बजानी पड़ती थी ।
 उन्हें परदेस में हिंदी कविता का इतना लंबा सत्र और भरतनाट्यम का नृत्य देखने को बाध्य होने पर बेहद ग्लानि हुई , ये सब देखने -सुनने की विवशता पर उनके आंसू निकल पड़े। लोगों ने उनके आंसू देखे तो वाह वाह कहना शुरू कर दिया। नृत्य -संगीत की इतनी समझ ,इतना गहन रसास्वादन, इतनी आत्मीयता से डूबकर सुनना , लोगों ने उनकी समझ -संवेदना की मिसाल दी। 
उन्हें मुल्ला नसीरूद्दीन याद आ गए , जो किसी शास्त्रीय संगीत के प्रोग्राम में गए थे , गायक ने जब लंबे लंबे आलाप भरने शुरू किए , तो थोड़ी देर बाद मुल्ला नसीरुद्दीन की आंखों से आंसू बहने लगे। लोगों ने शास्त्रीय संगीत की रंगत में डूब जाने और उस पर आंसू निकल आने पर मुल्ला की खूब तारीफ की।
मुल्ला से संगीत से आत्मसात होने के कारण रोने -सुबकने की वजह पूछी तो मुल्ला नसीरुद्दीन ने कहा –
“ गायकी नहीं मैं तो ये सोचकर रो रहा था कि अब ये गायक मर जायेगा तो उसके बीवी- बच्चों का क्या होगा, क्योंकि जिस तरह से ये आलाप भर रहा था उसी तरह पिछले महीने मेरा बकरा भी लंबे- लंबे आलाप भर रहा था और वो चल बसा। उसी तरह ये गायक भी ठीक मेरे बकरे की तरह आलाप भर रहा है , सो अब ये भी नहीं बचेगा”।
मुल्ला की सच्चाई सुनते ही लोग उनकी लानत -मलानत करने लगे। लेकिन यहाँ सच्चाई इसके उलट थी, इनसे किसी ने पूछा नहीं बस अनुमान लगा लिया । जिस तरह हमारा मीडिया किसी शादीशुदा हीरोइन के बच्चों की दुकान में घुसते ही आयडिया लगा लेता है कि वो प्रेग्नेंट है । उसी तरह  और फ्रॉग-स्कॉच मिलने में हो रही देरी  और ग्लानि से सुबकते मोहेश कुमारे के आंसू देखकर किसी ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया । भारत का मीडिया विदेश से आयी हुई खबरों को वेरीफाई किये बिना तिल का ताड़ बनाता ही है , सो खबर उड़ गई कि हिंदी की दशा और दिशा से दुखी होकर फूट फूट कर रोये विदेश में हो रहे हिंदी सम्मेलन में  अहिन्दी भाषी, हिंदी प्रेमी  साहित्यकार मोहेश कुमारे।
रातों रात उनकी प्रसिद्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ी। मंत्रालय में उन्हें प्रमोशन देकर किसी बड़े पद पर बैठाने को लेकर विचार विमर्श चल रहा है ।
उन्होंने ये सब सुनकर खुद को शाबासी दी कि अच्छा हुआ वो कि कविता और भरतनाट्यम का पूरा प्रोग्राम वो झेल गए और अपने ग्लानि के आंसुओं की सच्चाई किसी को नहीं बताई वरना उनकी समझ की भी कायदे से लानत -मलानत होती मुल्ला नसीरुद्दीन की तरह ही। 
अपने अभिनय और भाग्य पर इतराते हुए उन्होंने फ्रॉग फ्राई को मुंह में डाला और स्कॉच को चूमते हुए बोले “ आई लव हिंडी”।

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