Tuesday, October 8, 2024
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अरूणा सब्बरवाल का लेख – हॉस्पिस

जीवन के अंतिम चरण में जब इंसान अपनी असुरक्षित भावनाओं को लेकर अंधेरी सुरंग से गुज़रता है तब अचानक एक छोटी सी प्रकाश की किरण उसे आगे से  आती दिखाई देती है  (ST Luke’s -hospice ) हॉस्पिस तो उसके मन में आशा की किरण का आभास होने लगता है ।तब वही सुरंग की यात्रा उन्हें सुखद लगने लगती है ।
ब्रिटेन के निवासियों ने अपने मन में बुढापे को लेकर  झूठी आशाएँ नहीं पाल रखीं हैं ।जैसा की हमारे भारत में माता-पिता अपने बुढ़ापे के बारे में न सोच कर अपनी सारी उम्र की कमाई अपने बच्चों के  भविष्य को सँवारने में लगा देते हैं।केवल पैसा ही नहीं अपना तन-मन -धन ,ऐशों आराम क़ुर्बान कर देते हैं और ख़ुद बेशक दो जोड़े कपड़े में जीवन बिता देते हैं। यहाँ तक कि एक दिन  का वेतन पाने वाला मज़दूर भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए सोलह – सोलह घंटे काम करके अपनी जान को जोखिम में डाल कर उनके के भविष्य के लिए जान नयोंछावर कर देते हैं ।इसी उम्मीद में  कि एक दिन बुढ़ापे में बच्चे उनका  ध्यान रखेंगे ।वह भूल जाते है , कि समय निरंतर बदलता रहता है और समय के साथ सोच भी और बच्चे भी ।
ब्रिटेन की परम्परा बिलकुल  विपरीत है ।यहाँ माँ-बाप ने अपने  बच्चों से कोई आशा नहीं बांधी  ।उन पर अपनी ख़्वाहिशें नहीं थोपते ।स्कूल छोड़ते ही बालक  वही करता है जो वह चाहता है  , माँ बाप का उसमें कोई हस्ताक्षेप नहीं होता , न ही कोई आशा ।उन्होंने बच्चों से कोई भ्रांतियाँ नहीं पाल रखी हैं ।वह उस यात्रा के लिए पूर्ण रूप से तैय्यार रहते हैं। इसीलिये माँ-बाप अपने जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं ।
ब्रिटेन निवासी जानते हैं की ज़रूरत पड़ने पर या अंतिम समय में ब्रिटेन में सोशल सर्विसिज़ है , सामाजिक सुरक्षा  की व्यवस्था है , वृद्धआश्रम है जिनका पूरा ख़र्चा गवर्मेंट की ओर से होता है ।कभी -कभी G.P ( उनके पारिवारिक डॉकटर ) की ओर से भी referal आता है ।कुछ प्राइवट वृद्धआश्रम भी हैं । इनके अतिरिक्त बहुत सी भिन्न -भिन्न  ( charitable organisations )परोपकारी संस्थाएँ भी हैं ।जैसे माइंड (mind), हॉर्ट ,(Su Ryder)इत्यादि ।
हॉस्पिस वह संस्था  जिसके बारे में सुनकर आप चकित रह जाएँगे । यह संस्था St Luke  के नाम से जानी जाती है ।जो  ग्रीक के एक physician थे जिनका नाम  ( lukas mannual) था जो  लुकस मैन्यूल से बिगड़ कर St Luke से जाना जाने लगा ।जिनका ज़िक्र बाईबल में एक डॉकटर के नाम से है ।ग्रीक में (Lukas ) का मतलब है ‘( The man who heel ) द मैन हू हील ‘ पर बाईबल में St Luke’s का मतलब है (Light giving )प्रकाश देने वाली । लोगों ने इसे और सार्थक नाम दे दिया ‘ हार्ट ओफ होप्स ‘(Heart of Hopes ) 
St Luke,s  हॉस्पिस सचमुच जीवन में  प्रकाश देने वाली ही संस्था है यह अस्पताल या होम नहीं , न  ही कोई वृद्धाश्रम ।
…. हॉस्पिस यह एक परोपकारी संस्था है । यहाँ लोग जीवन के आख़री मोड़ पर आते हैं ।उन्हें यहाँ भावात्मक …..,सामाजिक आध्यात्मिक तथा आर्थिक सहायता निशुल्क  प्रदान की जाती हैं ।
……इनका उद्देश्य है  रोगियों के बचे हुए जीवन को सर्वोतम ढंग से जीने के लिए सहायता करना और उनके             ……जीवन में कुछ और दिन ख़ुशी के  जोड़ना ।इसीलिये माँ-बाप अपने जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं ।
….यह देखभाल उनके घर और अस्पताल और क्लीनिक में भी दी जा सकती है ।कितनी  अवधि के लिए यह ……अलग – अलग होस्पिस पर निर्भर करता है ।
….रोगियों के धार्मिक , और सांस्कृतिक अनुभवों का आदर किया जाता है ।
….उनके आत्मनिर्भरता के लिए ,उनके रचनात्मक ,कलात्मक हित का भी ध्यान रखा जाता है ।
….अंतिम अवस्था में रोगी का स्वयं पर विश्वास होना , बहुत आवश्यक है कि वह ,अकेले नहीं मरेंगे ।
….यह अंतिम कड़ी नहीं , सहायता की पहली कड़ी है 
….कयी बार G.P ( फ़ैमिली डॉक्टर ) के परामर्श से हॉस्पिस में लिया जाता है ।
…..हॉस्पिस का उद्देश्य है की मरीज़ों की गरिमा को सुरक्षित रखना ।
…. उनकी ऊर्जा को क़ायम रखना ।
….उनके आत्मसम्मान को  चिरमिराने न देना ।
इनकी सभी सेवाएँ निशुल्क हैं ।यहाँ  स्वास्थ्य  हेतु शिक्षा भी दी  जाती है ।रोगी  तथा उनके परिवार को हर प्रकार की सहायता मिलती है । अगर मरीज़ घर पर ही रहना चाहें तो उन्हें चौब्बीस घंटे या फिर कुछ घंटों की सहायता का भी प्रबंध होता है । जैसे उनकी शोपिंग करना ,उन्हें नहलाना धुलना ,खाना बनाना इत्यादि ।हॉस्पिस के डे सेंटर भी हैं ,हॉस्पिस की ट्रांसपोर्ट उन्हें डे सेंटर ले जाने और लाने का काम करती ।इनके साथ बाहर की  दूसरी संस्थाएँ भी इनसे जुड़ी हैं जैसे सोशल सर्विसिज़ ,नैशनल हेल्थ सर्विस जिनका अंशदान तीस प्रतिशत है ।इनकी टीम में डॉकटर ,नर्स , सोशल वर्कर , थेरपिस्ट, पूरी टीम की सभी सेवाएँ समुदाय के लिये सदा उपलब्ध रहती हैं ।
अब प्रशन उठता है कि इस परोपकारी संस्था के लिए दान कहाँ से आता है ? ब्रिटेन का समाज बहुत दयालु है ।पूरा  पैसा  जनता  (public ) के दिए दान-प्रदान किए समान को बेच कर इकट्ठा किया जाता है ।दान में आप इस्तेमाल किया घर का कोई  भी समान दान दे सकते हैं जैसे कपड़े ,बर्तन ,किताबें , फ़र्निचर , सी डिज, वीडीयो, बिजली का समान , जूते ,बच्चों के कपड़े खिलोने इत्यादि ।बशर्ते समान अच्छी हालत में हो । समान को साफ़ करके कपड़ों को प्रेस करके ,बहुत सुंदरता से प्रस्तुत किया जाता है ।इसके अतिरिक्त आप अपने बैंक से direct debit द्वारा भी दान दे सकते हैं ।चंदा एकत्र करने के लिए लम्बी – लम्बी ग्रूपस की सैर का भी प्रबंध किया जाता है ।
अपनी विविधताओं और विशेषताओं के कारण ये संस्था परोपकारी , दयालु और निष्काम भावना से नागरिकों को आकर्षित करती है ।हॉस्पिस में मैनेजर के अतिरिक्त बाक़ी लोग सभी कार्यकर्ता निशुल्क  अपनी सेवाएँ स्वेच्छया से अर्पित करते हैं । सेवा दान देने में बहुत फ़्लेक्सिबिलिटी (flexibility ) है एक घंटे से ले कर आठ घंटे तक , आप  जब और जितने घंटे चाहें उतना काम कर सकते है ।समय समय पर संस्था की ओर से स्वयं सेवक  ( volunteers ) को धन्यवाद का पत्र आता है । कार्य अनुभव के लिए स्कूलों के सोलहं वर्ष के बच्चे भी निष्काम सेवा में योगदान करके स्कूल का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
हॉस्पिस में स्पेशल एजुकेशनल नीड्ज़ के नागरिकों को भी उनकी योग्यता के अनुसार काम करने के लिये उत्साहित किया जाता है । जिसका उद्देश्य है कि ऐसे लोग स्वयं को  समाज का लाभकारी नागरिक समझें ।प्रत्येक सेंटर में पच्चीस से तीस ऐसे कार्यकर्ता ज़रूर  होते हैं। जिनके आत्मविश्वास को बहुत प्रोत्साहित किया जाता है , ताकि उनकी भाषा और  सामाजिक विकास के साथ -साथ वह मुख्य धारा का अंग बन सकें ।
अपनी -अपनी सांस्कृतिक से जुड़े रहने के लिए सभी धर्मों को बराबर की महता दी जाती है । यहाँ मल्टीफ़ेथ सेंटर है वहाँ मंदिर ,चर्च, गुरुद्वारा इत्यादि आस्था और विश्वाश के रूप में स्थापित हैं । जहाँ जो चाहे जब चाहे जा कर प्रार्थना कर सकता है ।
“ Respite “  : राहत की सेवा भी प्रदान की जाती है । जो लोग अपने प्रिय जनो की देखभाल घर पर करते हैं उन्हें  दो तीन दिन या दो तीन सप्ताह  की “ ब्रेक “ राहत देने के लिए हॉस्पिस उनके प्रिय जनो का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ले लेते हैं ।
यहाँ मरीज़ों की  हर सुविधा का पूरा ध्यान रखा जाता है ।एक बड़ी सी भव्य बैठक  में ,आराम दायक सोफ़े , टेलिविज़न ,भाँति भाँति की खेलें , चाय कौफ़ी की सुविधाएँ , बिलकुल घर जैसे । सबके लिए है ।सप्ताह में एक  दोपहर को तक़रीबन सभी निवासी वहाँ हाई टी (ब्रिटेन में हाई टी  में छोटी – छोटी सेंडविच , स्कोन , केक ,क्रम्पट  आदी )होते हैं । के लिए वहाँ  एकत्र होते हैं ताकि एक दूसरे से जान- पहचान हो जाएँ । जो स्वयं आने की स्थित में नहीं होते …. उन्हें स्टाफ़ लाने की कोशिश करते हैं । मरीज़ों को खुली आज़ादी होती है कि वह हॉस्पिटल में पूरी आज़ादी से घूम  सकें।बग़ीचे में रंग- बिरेगे फूलों की क्यारियाँ , भिन्न – भिन्न प्रकार के वृक्ष  , वहाँ सेव, नाशपाती और अंजीर के वृक्ष ,जिन पर ख़ुशी के मारे डाल-डाल झूमती गिलहरियाँ दिखाई देती हैं ।बैठने के लिए बैंच और आरामदायक कुर्सियाँ भी पड़ीं  होती हैं जहाँ मरीज़ बैठ कर प्रकृति का आनंद  ले सकते हैं ।मरीज़ों को स्टाफ़ के सहयोग से अपनी मर्ज़ी से रहने की पूरी छूट है ।
यहाँ तो हर नया मरीज़ अपनी -अपनी यातनाओं से जूझता हुआ अपने चेहरे पर एक अजीब सी उदासी ले कर आता है । सबकी अपनी-अपनी पीड़ा है । अपनी -अपनी कहानी है । सब जानते हैं कि वह यहाँ क्यूँ हैं  ? उनकी यातनाओं को कोई दूर तो नहीं कर सकता , किंतु दो चार घड़ी उनके पास बैठ कर उनके दुःख उनका अकेलापन तो बाँट ही सकता है ,मलहम तो लगा सकता है ।हॉस्पिस के निवासियों को अपना कुत्ता या बिल्ली रखने  की सुविधा हैं।
अब प्रशन यह है कि क्या होस्पस एक आश्रम  है ? धर्मशाला है ? मरणासन्न रोगियों का आश्रम है ? या मरणासन्न रोगियों का अस्पताल ?
महत्वपूर्ण  बात यह है कि  हॉस्पिस  संस्था ज़रूर अंतिम समय में रोगियों के बचे हुए जीवन को सर्वोतम ढंग से जीने के लिए सहायता करती है और उनके जीवन में कुछ और दिन जोड़ देती है ।
यह मेरा सौभाग्य है की मैं भी सप्ताह में दो दिन कार्य कृत हूँ ।
आज इस आलेख को लिखते हुए मैं स्वयं को गौरवानित महसूस करही हूँ कि यह मेरा सौभाग्य है कि मैं भी सप्ताह में दो दिन यहाँ कार्यरत  हूँ और  इस संस्था की सदस्य हूँ ।
अरूणा सब्बरवाल
2, Russettings
Westfield Park
Hatch End
Pinner  HA5  4JF
United Kingdom
0447557944220 
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